Sunday, 15 September 2013

बेटी



मेरे आँगन में गौरय्या

फुदकती चहकती

करती तृप्त अपनी स्वर लहरियों से

चाह उसमें उड़ने की उन्मुक्त 

आकाश में

पंख फैलाकर उड़ती है अनंत गगन में



पर लौट आती है

लहुलुहान होकर

गिद्धों से भरा पड़ा  है पूरा आसमान

जिनकी (गिद्ध )दृष्टि क्षत विक्षत देती है उसकी आत्मा  को

तार तार कर देती हैं उसकी सारी उमंगें 

पस्त कर देती हैं उसके सारे हौंसले



वो लौटती है हाँफती  हाँफती

आ बैठती है मेरे कन्धे  पर

उदास उदास सी  

आँखों में प्रश्न लिए देखती है मेरी और

क्या होगा मेरा जब तुम नहीं रहोगे।

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