मेरे आँगन में गौरय्या
फुदकती चहकती
करती तृप्त अपनी स्वर लहरियों से
चाह उसमें उड़ने की उन्मुक्त
आकाश में
पंख फैलाकर उड़ती है अनंत गगन में
पर लौट आती है
लहुलुहान होकर
गिद्धों से भरा पड़ा है पूरा आसमान
जिनकी (गिद्ध )दृष्टि क्षत विक्षत देती है उसकी आत्मा को
तार तार कर देती हैं उसकी सारी उमंगें
पस्त कर देती हैं उसके सारे हौंसले
वो लौटती है हाँफती हाँफती
आ बैठती है मेरे कन्धे पर
उदास उदास सी
आँखों में प्रश्न लिए देखती है मेरी और
क्या होगा मेरा जब तुम नहीं रहोगे।
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