वो हमेशा से दो सीमांतों पर ही रहती आयी है
इसीलिए हाशिये पर बनी हुई है
वो या तो "यत्र नार्यस्ते पुज्यन्तू....."वाली देवी है
जौहर और सती होकर"देवत्व"को प्राप्त करती हैं
या फिर दीन हीन होकर रहती है
ढोल और पशु के समान
ताड़ना की अधिकारी बनती है
आखिर कब वो संतुलन के केंद्र में आएँगी
केवल मनुष्य कहलाएंगी
अपनी समस्त
सम्वेदनाओ,
सम्वेदनाओ,
भावनाओं,
इच्छाओं,
राग विरागों,
कमियों और खूबियों से लैस
हाड मांस का साक्षात्
साधारण मानव बन पाएगी।
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