Thursday 14 July 2022

दादा की दादागिरी और क्रिकेट



                                                 (गूगल से साभार)

खेल मैदानों पर कुछ ऐसे दृश्य बनते  हैं जो अपनी अंतर्वस्तु में इतने शक्तिशाली होते कि वे खेल प्रेमियों के दिलों पर हमेशा  के लिए अंकित हो जाते हैं और अविस्मरणीय बन जाते हैं। एक ऐसा ही दृश्य 13 जुलाई 2002 को लॉर्ड्स के मैदान पर बना था।

उस दिन नेटवेस्ट सीरीज का फाइनल मैच खेला गया। इंग्लैंड ने भारत को 326 रनों का मुश्किल लक्ष्य दिया था। लेकिन मो.कैफ और युवराज ने शानदार बल्लेबाजी की जिससे अंतिम 4 गेंदों में जीत के लिए भारत को 2 रन की दरकार थी। फ्लिंटॉफ के अंतिम ओवर की तीसरी गेंद ज़हीर खान ने  शार्ट कवर की ओर हल्के से पुश की और बराबरी के रन के लिए दौड़ पड़े। क्षेत्ररक्षक  रन आउट करने के प्रयास में ओवर थ्रो कर बैठे। कैफ और ज़हीर ने जीत के ज़रूरी एक रन भी बना लिया। भारत दो विकेट से जीत गया और क्रिकेट के मक्का लॉर्ड्स के पवेलियन की बालकॉनी में खड़े कप्तान सौरव गांगुली ने जीत की खुशी में अपनी शर्ट उतारकर हवा में लहरा दी।

गांगुली द्वारा शर्ट उतार कर हवा में लहराने का ये दृश्य अब ऐतिहासिक दस्तावेज बन चुका है। दरअसल गांगुली का शर्ट उतारकर हवा में लहराना  बंगाल के 'भद्रलोक' के बाबू मोशाय की इमेज और लॉर्ड्स की क्रिकेटिंग परंपराओं से ही विचलन नहीं था बल्कि ये क्रिकेट के भद्रलोक की 'जेंटलमेन्स  खेल' इमेज और भारतीय खिलाड़ियों में मारक क्षमता और आक्रामकता ना होने वाली इमेज का ध्वस्त होना भी था। ये भारतीय क्रिकेट इतिहास की एक विभाजनकारी घटना थी। इससे आगे की भारतीय क्रिकेट आक्रामकता और जीत से लबरेज क्रिकेट थी।

क्या ही संयोग है कि भारतीय क्रिकेट इतिहास के दो सबसे बड़े और मील के पत्थर कहे जाने वाले दृश्य लॉर्ड्स के मैदान पर ही बनते हैं। पहला, 1983 में कपिलदेव द्वारा विश्व कप ट्रॉफी को हाथ में लेने वाला दृश्य और दूसरा, गांगुली द्वारा शर्ट लहराने वाला दृश्य। ये दो घटनाएं(1983 में विश्व कप जीतना और 2002 में विदेशों में जीतने का सिलसिला और विरोधियों को उन्हीं की भाषा में उनकी आंखों में आंखें डालकर जवाब देना) भारतीय क्रिकेट इतिहास की युगान्तरकारी घटनाएं हैं। कपिल देव और सौरव गांगुली दो ऐसे क्रिकेटर हैं जिहोंने भारतीय क्रिकेट को ना केवल सबसे अधिक प्रभावित किया बल्कि उसके चरित्र को बदल दिया। भारतीय क्रिकेट की दिशा और दशा को बदलने की दृष्टि से कपिल और सौरव देश के सबसे बड़े क्रिकेटर ठहरते हैं।

1983 में विश्व कप में जीत और एक क्रिकेटर के रूप में कपिल के व्यक्तित्व का भदेसपन क्रिकेट के इलीट चरित्र को मास में रूपांतरित कर देते हैं। अब क्रिकेट लोकप्रियता की सोपान चढ़ने लगता है। क्रिकेट मेट्रोपोलिटन क्लबों से निकलकर छोटे छोटे शहरों और कस्बों की गली कूंचों तक पहुंच जाता है। और इस दृष्टि से कपिल भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े खिलाड़ी ठहरते हैं।

अब भारत में क्रिकेट अपूर्व लोकप्रियता तो धारण करता है लेकिन विश्व कप में जीत और लोकप्रिय होने के बाद भी भारत विश्व क्रिकेट का सिरमौर नहीं बन पाता। विदेशों में जीत का कोई सिलसिला नहीं बनता। खिलाड़ियों के कंधे अभी भी अक्सर झुके रहते।

तब 1992 में भारतीय क्रिकेट परिदृश्य पर सौरव गांगुली का पदार्पण होता है। लेकिन एक मैच के लिए। एक ओडीआई के बाद ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। उनसे अपने व्यवहार में परिवर्तन लाने की अपेक्षा की जाती है। दरअसल वे बंगाल के भद्रलोक से आते थे और उनका व्यक्तित्व आभिजात्य से लबरेज था। लेकिन गांगुली ने बदलने से इनकार कर दिया। महान व्यक्तित्व ऐसे ही होते हैं। वे स्वयं नहीं बदलते बल्कि अपने समय और समाज को बदल देते हैं। गांगुली भी ऐसा ही करते हैं। वे स्वयं नहीं बदलते बल्कि भारतीय क्रिकेट और उसके चरित्र को ही बदल देते हैं।

उन्हें भारतीय टीम में रेगुलर जगह बनाने के लिए अगले चार साल इंतज़ार करना पड़ता है। ये वर्ष 1996 की बात है। अज़हरुद्दीन के नेतृत्व में भारतीय टीम इंग्लैंड के दौरे पर जाती है। वहां से ओपनर नवजोत सिंह सिद्धू कप्तान पर खराब व्यवहार करने का आरोप लगाकर भारत लौट आते हैं। तब सौरव की किस्मत पलटा खाती है और भारतीय क्रिकेट की भी। सौरव को भारतीय टीम में जगह मिलती है।

पहले टेस्ट मैच में सौरव को पहले 11 खिलाड़ियों में जगह नहीं मिलती। लेकिन दूसरे टेस्ट में सौरव को टीम में जगह मिलती है और वे सैंकड़ा ठोंक देते हैं। फिर अगले मैच में एक और शतक बनाते हैं। टीम में अपनी जगह पक्की कर लेते हैं। उसके बाद साल 2000 आता है। फिक्सिंग को लेकर भारतीय क्रिकेट में एक भूचाल आता है। कई खिलाड़ियों पर आरोप लगते हैं। उधर व्यक्तिगत कारणों से सचिन कप्तानी से हाथ खींच लेते हैं। ऐसे में टीम के उपकप्तान गांगुली को कप्तान बनाया जाता है। फिक्सिंग और बेटिंग से आक्रांत भारतीय क्रिकेट में ये  एक नए युग की शुरुआत थी।

गांगुली में टीम का नेतृत्व करने की अद्भुत क्षमता थी। दरअसल वे जन्मना लीडर थे। उन्होंने कप्तान बनते ही भारतीय क्रिकेट में बड़े बदलाव ला दिए।

पहला,उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम का नए सिरे निर्माण किया। इसमें अनुभव और युवा जोश का अद्भुत समन्वय था। एक तरफ सचिन, द्रविड़, कुंबले और लक्ष्मण थे। दूसरी तरफ तमाम नए खिलाड़ियों को टीम में जगह दी,उन्हें ग्रूम किया और उन्हें भरोसा दिया। सहवाग ,ज़हीर,हरभजन नेहरा,युवराज उनमें से कुछ नाम हैं। 

दूसरे, टीम को आक्रामकता प्रदान की जो अब तक टीम में अनुपस्थित थी। उनका मानना था आक्रमण श्रेष्ठ रक्षण है। वे खुद भी आक्रामक खेल के हिमायती थे और टीम को भी इस भावना से अनुप्राणित किया। अब टीम स्लेजिंग से घबराती नहीं थी बल्कि मैदान में विपक्षियों की ईंट का जवाब पत्थर से देना शुरू किया। इतना ही नहीं टीम हित में ऐसे निर्णय लिए जो और कोई नहीं ले सकता था। जैसे ओडीआई में राहुल से विकेटकीपिंग कराना,सहवाग मध्यक्रम से प्रोमोट करके ओपनिंग कराना। कोलकाता के ऐतिहासिक टेस्ट में लक्ष्मण को नंबर तीन पर भेजना भी एक साहसिक जोखिम भरा निर्णय था।

तीसरे,विदेशों में जीत का सिलसिला शुरू करना। सौरव ने अपनी कप्तानी की शुरुआत ही जीत से की और लगातार इस क्रम को बनाए रखा। कप्तानी में पहली ओडीआई सीरीज दक्षिण अफ्रीका से खेली और जीती। उसी साल आईसीसी नॉकआउट प्रतियोगिता में भारत को फाइनल में पहुंचाया जहां वे न्यूज़ीलैंड से हारे। ये 1983 के बाद पहला फाइनल था भारतीय क्रिकेट टीम का। भारत में ऑस्ट्रेलिया को टेस्ट सीरीज में 2-1 से हराया। 2002 में इंग्लैंड को नेटवेस्ट सीरीज में हराया।  2003 के विश्व कप में भारत को फिर फाइनल तक पहुंचाया जहां वे ऑस्ट्रेलिया से हारे। उसके बाद 2004 में पाकिस्तान को पाकिस्तान में ही टेस्ट और ओडीआई में हराया। 2004 तक आते आते वे भारत के सर्वश्रेष्ठ कप्तान के रूप में स्थापित हो चुके थे। वे अपनी कप्तानी में 49 में से 21 टेस्ट मैच में जीत दिलाते हैं जिसमें से 11 विदेशी धरती पर जीतते हैं,जबकि 15 ड्रा होते हैं। वे 146 एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में कप्तानी कर 76 मैचों में जीत दिलाते हैं।

कई बार महेंद्र सिंह धोनी और विराट कोहली को एक कप्तान के रूप में उनसे अधिक सफल और बड़ा क्रिकेटर के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया जाता है। ये सही है कि धोनी  और कोहली ने भारत को कहीं अधिक सफलता दिलाई। लेकिन भारतीय क्रिकेट के चरित्र को बदलने और भारतीय क्रिकेट को दिशा देने का काम गांगुली ने ही किया। धोनी और कोहली ने गांगुली द्वारा बनाए गए आधार  पर इमारत खड़ी करने का काम किया। गांगुली ने जिस रास्ते का निर्माण किया वे दोनों उस पर आसानी से आगे बढ़ सके। इन दोनों ने उस तरह से टीम का नवनिर्माण करने और भारतीय क्रिकेट को नई दिशा देने का काम नहीं किया जैसा सौरव ने किया। यही सौरव की महानता है और भारतीय क्रिकेट को देन है। दरअसल सौरव जिस नई राह का निर्माण करते हैं, धोनी और कोहली उस पर चलकर ही भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाते हैं।

सौरव अपने समकालीन सचिन,द्रविड़,कुंबले और लक्ष्मण के साथ मिलकर 'फेबुलस फाइव' की निर्मिति करते हैं। ये चारों क्रिकेटर भारत के महानतम खिलाड़ियों की श्रेणी में आते हैं। उनकी वैयक्तिक उपलब्धियां सौरव से कहीं अधिक हैं।उन्होंने क्रिकेट को अपने व्यक्तिगत प्रदर्शन से बहुत अधिक प्रभावित और समृद्ध किया है। लेकिन उन सबमें लीडरशिप का अभाव था। एक कप्तान के रूप में ये सभी असफल रहे या कोई उल्लेखनीय सफलता हासिल नहीं कर सके। भारतीय क्रिकेट को एक दिशा देने और उसके चरित्र को बदल देने का काम सौरव ही कर पाते हैं और इसी कारण  भारतीय क्रिकेट में कपिल के बाद दूसरे सबसे बड़े खिलाड़ी सौरव गांगुली ही ठहरते हैं। 

कपिल क्रिकेट के आभिजात्य को मास में रूपायित करके उसे लोकप्रियता के रथ पर सवार कर देते हैं तो गांगुली एक रक्षात्मक और हारों से सहमे क्रिकेट को हद दर्ज़े की आक्रामकता और सेल्फ बिलीफ के रथ पर सवारकर विजयपथ पर अग्रसारित कर देते हैं। बाकी सब खिलाड़ी इन दोनों का अनुगमन करते हैं।

इतना ही नहीं एक खिलाड़ी के रूप में भी सौरव महान ही ठहरते हैं। वे 113 टेस्ट मैच खेलते हैं जिसमें 16 शतकों की सहायता से 7212 रान्त और 311 एक दिवसीय मैचों में 22 शतकों की सहायता से 11373 रन बनाते हैं। वे मध्यम गति के उपयोगी गेंदबाज भी थे जिन्होंने टेस्ट में 32 और ओडीआई में 100 विकेट लिए।

 वे दाएं हाथ से गेंदबाजी करते और बांए हाथ से बल्लेबाजी। खब्बू खिलाड़ियों के खेल में एक खास तरह की मोहकता,एक एलिगेंस होती है,फिर वो चाहे जो खेल हो। सौरव की बल्लेबाजी में भी कमाल की मोहकता थी। ये अलग बात है वो उतनी और उस तरह की मोहक नहीं थी जैसी युवराज की बैटिंग थी। लेकिन थी तो अवश्य ही। इसका कारण शायद ये हो कि वे उस तरह के स्वाभाविक खब्बू खिलाड़ी नहीं थे जैसे जन्मना खिलाड़ी होते हैं। वे मूलतः दाएं हाथ के खिलाड़ी थे और उन्होंने सायास बाएं हाथ से खेलना सीखा। उनका फुटवर्क कमाल का था और वे समान अधिकार से फ्रंटफुट और बैकफुट पर खेलते। उनकी टाइमिंग लाजवाब थी और हैंड-आई कॉर्डिनेशन भी कमाल का था। ऑफ साइड में क्षेत्ररक्षकों के बीच गैप ढूंढने में वे माहिर थे। उनके ऑफ साइड पर स्कवायर कट और ड्राइव दर्शनीय होते थे। वे इसके मास्टर थे। तभी द्रविड़ उनको 'गॉड ऑफ ऑफ साइड' जैसे विशेषण से नवाजते हैं। और गेंद को बाउंड्री से बाहर मारने में तो उनका कोई सानी नहीं था।

        फिर भी, बिला शक सौरव गांगुली एक अद्भुत नेतृत्वकर्ता थे, एक शानदार बल्लेबाज थे और उपयोगी गेंदबाज तो थे ही। वे एक महान क्रिकेटर थे। आप उनके प्रशंसक हो सकते हैं या आलोचक भी हो सकते हैं। आप उनसे प्यार कर सकते हैं या घृणा भी कर सकते हैं। आप उनके खेल पर फिदा हो सकते हैं या उनकी उपेक्षा भी कर सकते हैं। आप उनकी तारीफ में कसीदे पढ़ सकते या या उन्हें गालियों से भी नवाज सकते हैं। पर एक बेहतरीन बल्लेबाज, शानदार कप्तान और भारतीय क्रिकेट को आक्रामक तेवर देने के उनके योगदान को नहीं नकार सकते। वे एक सम्पूर्ण क्रिकेटर थे।  वे भारतीय क्रिकेट के मील के पत्थर हैं।

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लव यू दादा।

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