वा-थो-हुक यानी चमकीले पथ का राही
(गूगल से साभार)
ज़िंदगी कभी एकरेखीय नहीं चलती। सीधी सरल नहीं होती। इसमें इतने उच्चावच होते हैं और ये इतनी जटिल होती है कि कई बार चकित रह जाना पड़ता है। ये सुख-दुख के महीन रेशों से इतनी जटिल बुनावट वाली होती है कि इन दोनों को कैसे और कितने भी प्रयासों से कहां अलगाया जा पाता है। उम्मीदी और नाउम्मीदी की धूप छांव इस तरह एक दूसरे के गले में हाथ डालकर चलती हैं कि पता ही नहीं चलता कि किस पल धूप आए और किस पल छांव। जिदंगी एकदम सुफैद या स्याह नहीं होती। ये महानताओं और विडंबनाओं से बनी धूसर धूसर सी होती है। ये आम ओ खास हर एक किसी की ज़िंदगी की सच्चाई है।
जिम थोर्प दुनिया के महानतम एथलीटों में शुमार हैं। वे ओक्लाहोमा के 'सैक एंड फॉक्स' कबीले के नेटिव अमेरिकी थे। वे चाहते थे उन्हें मृत्यु के बाद यहीं उनके मूल जन्म स्थान पर दफनाया जाए। लेकिन विडंबना ये कि 1953 में मृत्यु के बाद वहां से डेढ़ हजार किलोमीटर दूर पेंसिल्वेनिया के दो छोटे कस्बों मोच चंक और ईस्ट मोच चंक, जहां वे कभी गए ही नहीं, के बीच उनको दफनाया जाता है।
भूरे रंग के पत्थर से बनी उनकी कब्र पर उनके जीवन को प्रतिबिंबित करने वाली कुछ आकृतियां उकेरी गई हैं। एक दौड़ते एथलीट की,कूदते एथलीट की,हर्डल करते एथलीट की,डिस्कस फेंकते एथलीट की,एक बेसबॉल खिलाड़ी की, फुटबॉल खिलाड़ी की,एक नेटिव अमेरिकी की और एक साफा बांधे घुड़सवार की। अगर आप इन्हें ध्यान से देखेंगे और जिम के जीवन को उलटे पलटेंगे तो लगेगा कि ये आकृतियां जिम थोर्प के जीवन की सुसंगत गति और लयकारी वाले क्षणों को ही रेखांकित करती हैं। लेकिन जीवन की लय हमेशा सुर में कहां होती है। कितना भी प्रयास करो जीवन लय को साधने में वो अक्सर बेसुरी हो ही जाती है। जिंदगी में तमाम ऐसे मौके आते हैं जब वो मृत्यु की तरह गतिहीन हो जाती है या फिर झंझावातों की तरह बेकाबू। अक्सर जीवन इतना जटिल हो जाता है कि कलम, कूँची या फिर छैनी हथौड़ा उसे अभिव्यक्त कर पाने में खुद को असहाय महसूस करने लगते हैं। शायद थोर्प की कब्र पर उसके जीवन को उकेरने वाले औजारों ने भी ऐसा ही महसूस किया होगा। तभी तो ये आकृतियां उनकी महानताओं को तो दिखाती हैं लेकिन उनके जीवन की विडंबनाओं को दिखाने वाली आकृतियां वे नहीं बन पाती।
आधुनिक ओलंपिक 1896 में शुरू हुए। 16 साल बाद पांचवें ओलंपिक 1912 में स्वीडन की राजधानी कोपेनहेगन में हुए। पेंटाथलॉन और डिकाथलॉन स्पर्धाओं में अमेरिका की ओर से जिम थोर्प ने भाग लिया।
07 जुलाई को पेंटाथलॉन में जिम ने पहला स्वर्ण पदक जीता। इन खेलों में पदक जीतने वाले वे पहले नेटिव अमेरिकन थे। पेंटाथलॉन की 5 स्पर्धाओं (लंबी कूद,200 मीटर दौड़,जैवलिन थ्रो,डिस्कस थ्रो,1500 मीटर दौड़ और ) में से 4 में जिम थोर्प पहले स्थान पर रहे और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी नॉर्वे के फेर्डिनेन्ड बे से 400 से भी ज़्यादा अंकों का अंतर था।
पहला स्वर्ण पदक जीतने के एक हफ्ते बाद 15 जुलाई को डिकाथलॉन (दस स्पर्धाएं- 100 मीटर दौड़,लंबी कूद डिस्कस थ्रो,शॉट पुट,ऊंची कूद,400 मीटर दौड़,110 मीटर बाधा दौड़,पोल वॉल्ट,जैवलिन थ्रो और 1500मीटर दौड़) में जिम थोर्प ने कुल 8413अंकों के साथ नए रिकॉर्ड के साथ अपना दूसरा स्वर्ण पदक जीत रहे थे। उन्होंने स्वीडन के ह्यूगो वाइजलैंडर को लगभग 700 अंकों से पीछे छोड़ा। उनका ये रिकॉर्ड 1948 तक अजेय रहा। इन दोनों खेलों की कुल 15 स्पर्धाओं में से 8 में वे अव्वल रहे। ये एक अविस्मरणीय असाधारण प्रदर्शन था।
उनको पदक प्रदान करते हुए डेनमार्क के सम्राट गुस्ताव पंचम उनसे कह रहे थे 'श्रीमान,आप विश्व के महानतम एथलीट हैं।'उसके बरसों बरस बाद 1950 में भी लोग सम्राट की बात की ताईद कर रहे थे। उस साल अमेरिका की एसोसिएटेड प्रेस ने लगभग 400 खेल पत्रकारों के साथ एक पोल किया कि बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध का सर्वश्रेष्ठ एथलीट कौन है। इस पोल में जेसी ओवेन्स,बेब रुथ,जो लुइस, रेड़ ग्रेंज,जॉर्ज मिकन और बॉबी जोंस जैसे लीजेंड एथलीट थे। लेकिन थोर्प को इस पोल में बाक़ी सारे एथलीटों को मिले कुल वोट से अधिक वोट मिले। उसी साल ही एसोसिएटेड प्रेस ने उन्हें अर्द्ध सदी का सर्वश्रेष्ठ अमेरिकन फुटबॉलर घोषित किया। 1963 में उन्हें 'प्रो फुटबॉल हॉल ऑफ फेम' में शामिल किया गया। 1967 में 'प्रो फुटबॉल हॉल ऑफ फेम वोटर्स ने एनएफएल की 50वीं वर्षगांठ के अवसर पर आल टाइम टीम में स्थान दिया। और फिर साल 2000 में भी एबीसी स्पोर्ट्स के पोल में बेब रुथ,जेसी ओवेन्स, मुहम्मद अली और माइकेल जॉर्डन से आगे उन्हें सदी का महानतम एथलीट घोषित किया गया।
वे केवल एथलीट ही नहीं थे। वे बेसबाल और अमेरीकन फुटबॉल के बेहतरीन खिलाड़ी थे। वे इनकी प्रोफेशनल लीग खेले हॉकी,टेनिस, बास्केटबॉल, सहित कुल 11 खेलों में प्रतिनिधित्व किया। उन्होंने बॉलरूम डांस प्रतियोगिता भी जीती। इतना ही नहीं, वे कोच रहे,खेल प्रशासक रहे और एक अभिनेता भी। एक बहुआयामी व्यक्तित्व था उनका। उनपर दो पुस्तक लिखने वाले बॉब रेजिंग लिखते हैं 'उनका व्यक्तित्व इतना असाधारण और आकर्षक था कि अगर उनके समय में विज्ञापनों का चलन होता तो वे टाइगर वुड और माइकल जॉर्डन दोनों कुल कमाई से अधिक धन अर्जित करते।'
लेकिन उनके जीवन की कहानी उनकी महानताओं के किस्सों की रोशनी के बावजूद उस समय तक अधूरी है जब तक उसमें स्याह विडंबनाओं के किस्से नहीं जुड़ जाते। उनके जीवन की सबसे बड़ी विडंबना ही यही थी कि वे नेटिव अमेरिकन थे। एक नेटिव अमेरिकन होना उस समय कितना त्रासद होता था ये इस बात से समझा जा सकता है कि वे अपने देश में ही अजनबी बन गए थे और उन्हें अक्सर अपने देश के नागरिक होने का दर्जा नहीं मिलता था। उन्होंने अपना पूरा जीवन इसी भेदभाव के साथ बिताया। तमाम लोगों का मानना है उनके जीवन की विडम्बनाएं उनके नेटिव अमेरिकन होने के कारण ही थीं।
(गूगल से साभार)1912 में कोपेनहेगन में शानदार प्रदर्शन कर दो गोल्ड जीतने के बाद वे पूरी दुनिया में जाने गए। पर 2013 के आते आते उनपर आरोप लगे कि उन्होंने वर्ष 1909 और 1910 में सेमी प्रोफेशनल लीग में भाग लिया है और सैलरी ली। उस समय ओलंपिक आंदोलन अपने आरंभिक दौर में था और उसको एमेच्योर बनाए रखने के लिए कड़े नियम थे। जिम थोर्प ने ओलंपिक कमेटी को लिखा 'मैं इसके लिए आंशिक रूप से ही दोषी हूँ। मैंने ऐसा पैसे के लिए बल्कि खेल के प्रति अनुराग में किया। मेरी गलती इतनी ही थी कि मैंने छद्म नाम से नहीं खेला जैसा अन्य लोग करते हैं।' लेकिन उनकी दलील नहीं मानी गई और उनसे दोनों गोल्ड छीन लिए गए और पेंटाथलॉन का गोल्ड नॉर्वे के फर्डिनेंड बे को और डिकाथलॉन का गोल्ड डेनमार्क के ह्यूगो वाइजलैंडर को दे दिया गया। इसे 'खेल दुनिया का पहला स्केंडल' कहा गया। और जिम थोर्प बिना किसी गलती के ताउम्र इस अपमान के दंश को लिए जीते रहे। अंततः 1953 में गरीबी की अवस्था और शराब की लत के साथ इस फानी दुनिया को विदा कहा। एक खिलाड़ी के जीवन की इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती थी कि एक ऐसा असाधारण प्रदर्शन करने के बावजूद ओलंपिक भावना को तोड़ने के आरोप और पदक छीने जाने के अपमान को सीने में छिपाए जीता रहे और अंततः मृत्यु को प्राप्त हो जाये।
लेकिन ये 'पहला खेल स्केंडल' नहीं बल्कि 'पहला बड़ा अन्याय' था जो जिम थोर्प के प्रति किया गया था। उनके समर्थक उनके लिए न्याय हेतु प्रयास करते रहे। ओलंपिक नियम के अनुसार कोई भी आपत्ति एक महीने के अंदर दर्ज होनी चाहिए थी लेकिन ये 6 महीने से भी ज़्यादा समय के बाद दर्ज की गई थी। ओलंपिक कमेटी को अपनी गलती मानने में 69 वर्ष लगे। उन्हें सहविजेता घोषित किया गया। उनके एमेच्योर दर्ज़े और रिकॉर्ड को मान्यता दी। थोर्प को अपनी मृत्यु के 29 साल बाद न्याय मिला।
थोर्प के साथ न्याय तो हुआ पर आधा अधूरा। उन्हें सहविजेता घोषित किया गया था। 1912 के ओलंपिक में उनकी जीत इतनी बड़ी थी कि दोनों सहविजेताओं ने खुद को कभी विजेता स्वीकार नहीं किया। इसी को आधार बनाकर उनके प्रशंसकों ने ओलंपिक कमेटी से पुनः अपील की। अंततः ओलंपिक कमेटी ने इस बीते शुक्रवार 15 जुलाई 2022 को, पदक जीतने के 110 साल बाद उनको 1912 की दोनों ओलंपिक स्पर्धाओं का एकमात्र विजेता घोषित किया। लेकिन कानून का एक सिद्धान्त है 'जस्टिस डिलेड इस जस्टिस डिनाइड'। जिम थोर्प को ये न्याय उनकी मृत्यु के 69 साल बाद मिला।
मुश्किलें उनका पीछा यहीं नहीं छोड़ती। वे 1928 में खेल और खेल मैदान को अलविदा कहते हैं। 1929 में अमेरिका में आर्थिक मंदी का भयावह दौर शुरू होता है। जिम थोर्प घोर आर्थिक संकट में घिर जाते हैं। वे अपनी विपन्नता दूर करने और परिवार के पोषण के लिए फिल्मों में 'एक्स्ट्रा'के रोल सहित बहुत सारे काम करते हैं। पर विपन्नता से पार नहीं पा पाते। उन्हें शराब की लत लग जाती है। और अंततः 1953 में शराब के नशे में कैलिफोर्निया में उनकी मृत्यु हो जाती है।
मृत्यु केवल जीवन का अंत ही नहीं बल्कि समस्त सांसारिक आवेगों संवेगों से मुक्ति भी है। लेकिन जिम थोर्प के लिए उनकी सबसे बड़ी त्रासद घटना मृत्यु के बाद ही घटनी थी। मृत्यु के बाद उनके संबधी उनकी इच्छानुसार उनके जन्मस्थान ओक्लाहोमा लाते हैं जहां उनके कबीले की परंपरा के अनुसार तीन दिन के विधि विधान के बाद उनको दफनाया जाना था। लेकिन इस विधि विधान के बीच उनकी तीसरी पत्नी दृश्य पर पदार्पण करती हैं और शव को अपने कब्जे में लेकर अपने साथ ले जाती हैं। अंत्येष्टि संस्कार अधूरे रह जाते हैं। यहां उल्लेखनीय है कि उनकी तीसरी पत्नी पैट्रिशिया एसकेव 'व्हाइट' थीं।
अगले छह महीनों तक उनका शव ताबूत में ऐसे ही रखा रहता है। उनकी पत्नी तमाम सरकारों,संस्थाओं और लोगों से बात करती हैं कि महान एथलीट को दफनाने के लिए एक ऐसी उपयुक्त ज़मीन मिल सके जिस पर न केवल जिम को दफनाया जा सके बल्कि एक ऐसा स्मारक भी बनाया जा सके जिसे देखकर आने वाली पीढ़ियों की स्मृति में वे बने रहें। पर वे असफल रहती हैं। अंततः वे पेंसिल्वेनिया के दो छोटे कस्बों मोच चंक और ईस्ट मोच चंक के साथ अनुबंध करती हैं,जिम का शव उन्हें सौंप देती हैं और वहां उनका समाधि स्थल और स्मारक बनाया जाता है।
उधर उनके पुत्र रिचर्ड थोर्प अब भी हार नहीं मानते। वे जिम थोर्प की इच्छानुसार उनके अवशेषों को ओकलाहोमा लाने और उनके अंत्येष्टि संस्कार को पूर्ण करने के लिए विधिक लड़ाई लड़ते हैं,पर असफल रहते हैं।
जिम थोर्प आज भी पेंसिल्वेनिया की उस अंजान जगह पर ब्राउन ग्रेनाइट पत्थर के नीचे अधूरी इच्छा और अधूरे संस्कारों के साथ चिरनिद्रा में अवस्थित हैं।
मई 1887 में उनके जन्म पर जिम थोर्प को 'वा थो हक' के नाम से पुकारा गया। जिसका अर्थ होता है 'चमकीला पथ'। निःसंदेह वे अपने इस नाम को चरितार्थ करते हैं और खेल आकाश पर एक चमकता सितारा बन पूरे खेल आकाश को अपनी प्रतिभा की रोशनी से भर देते हैं। लेकिन ये नाम भी उनके आधे सच को ही सार्थक करता है। उनका जीवन सिर्फ रोशनी का पर्याय भर नहीं है,उसमें अंधेरा भी बराबरी का है।
मानव जीवन हमेशा अपूर्णताओं में रिड्यूस होता है। तभी वो मनुष्य कहलाता है। अगर उसके जीवन में सब कुछ महान होता,पूर्ण होता तो देवत्व को ना प्राप्त हो जाता। तब मनुष्य मनुष्य कहां रहा पाता। जिम थोर्प भी हमारे बीच के ही मनुष्य हैं जो अपूर्णताओं में जिए और उसी में मर गए। वे अपनी प्रतिभा के कारण बीसवीं सदी के महानतम एथलीट बनते हैं लेकिन उस महानता के प्रतीक दो स्वर्ण पदकों से ही वंचित नहीं रहते हैं,बल्कि अंतिम इच्छा के भी अपूर्ण रह जाने के लिए भी अभिशप्त होते हैं।
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दुनिया के महानतम एथलीट और उसकी स्मृतियों को नमन।
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