आज कामनवेल्थ खेलों के दूसरे दिन भारोत्तोलन में भारत ने दो पदक जीते हैं। 56 किलोग्राम वर्ग में संकेत महादेव सरगर ने रजत और 61 किलोग्राम में पी गुरुराजा ने कांस्य पदक जीतकर जीतकर भारत के लिए पदकों का खाता खोला। ओलंपिक या विश्व प्रतियोगिता की तुलना में यहां रजत और कांस्य पदक जीतना बड़ी बात नहीं हो सकती और ये भी कि इन्हीं खेलों में आज देर रात तक चानू के स्वर्ण पदक जीतने की खबर आ जाए।
दरअसल इन पदकों का उल्लेख इसलिए जरूरी है कि गुरुराजा एक ट्रक चालक के बेटे हैं और संकेत के पिता चाय/पान की दुकान चलाते हैं। ये दोनों अपनी गरीबी से छुटकारा पाने के लिए खेलों में आते है और शीर्ष पर पहुंचते हैं। उनकी इस सफलता में जितना योगदान इनकी योग्यता,मेहनत और लगन का है उतना ही उनके कोच,कोचिंग स्टॉफ और उस सिस्टम का भी है जिसने सबसे निचली पायदान के बच्चों को भी शिखर पर पहुँचने का मौका दिया।
साई और 'टॉप्स प्रोग्राम' ने देश में खेल का एक माहौल तैयार किया है। हाँ,ये सिस्टम अभी भी इतना मजबूत नहीं है कि अमेरिका/यूरोप/चीन जैसे खिलाड़ी नहीं दे पाए। सिस्टम में कमियां भी कम नहीं है। लेकिन देश में खेल सिस्टम के अस्तित्व को ही पूरी तरह से नकार देना एकांगी सोच और दृटिकोण को ही ज़ाहिर करता है।
नीरज या उस जैसे किसी खिलाड़ी को केवल 'संयोग' मानना और भारत में खेल ढांचे को पूरी तरह से नकारना कोच, सपोर्टिंग स्टाफ और पूरे सिस्टम को ही आहत करना नहीं है बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से उस खिलाड़ी की मेहनत और योग्यता को आहत करना भी है। क्रिकेट, बैडमिंटन, शूटिंग, तीरंदाजी, बॉक्सिंग कुश्ती जैसे खेलों में सफलता संयोग से नहीं बल्कि खिलाड़ी की अपनी योग्यता,परिश्रम और लगन के साथ साथ पूरे सिस्टम के प्रयास से ही संभव होती है।
आवश्यकता से अधिक नकारात्मकता भी अच्छी बात थोड़े ही ना है।
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