Friday, 7 May 2021

जाना क्रिकेट की आवाज का


 

         यूं तो शायद ही कोई ऐसा कोई खेल होगा जिसके विकास में,उसे आगे बढ़ाने में,उसे ओर अधिक लोकप्रिय बनाने में इलाहाबाद का योगदान ना रहा हो। पर क्रिकेट को लोकप्रिय बनाने में जो योगदान इलाहाबाद का है उससे क्रिकेट का खेल शायद ही उऋण हो पाए। उसने क्रिकेट को मो.कैफ, ज्योति यादव,आशीष विंस्टन ज़ैदी,ज्ञानेंद्र पांडेय,हैदर अली,कमाल उबैद जैसे बेहतरीन खिलाड़ी तो दिए ही पर उसका क्रिकेट को सबसे बड़ा योगदान कुछ सर्वश्रेष्ठ कमेंटेटर देना रहा है।

       इलाहाबाद ने क्रिकेट को हिंदी कमेंटेटर की एक शानदार चौकड़ी दी। मनीष देब,स्कन्द गुप्त,अमरेंद्र कुमार सिंह और इफ्तेखार अहमद। किसी एक शहर ने इतने सारे उच्च कोटि के कमेंटेटर शायद ही दिए हों। इन चारों ने मिलकर रेडियो क्रिकेट कमेंट्री की विधा को नई ऊंचाइयों पर ले गए और उसके माध्यम से क्रिकेट की लोकप्रियता को बलन्दी पर पहुंचाया। मनीष देब और स्कन्द गुप्त इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में प्राध्यापक थे तो अमरेंद्र कुमार सिंह अर्थशास्त्र विभाग में। स्कन्द गुप्त और मनीष देब  अंग्रेजी के प्राध्यापक होते हुए भी हिंदी में ही कमेंट्री किया करते थे। इफ्तेखार अहमद जिन्हें प्यार से सब 'पापू' भाई कहकर बुलाते थे रेलवे में कार्यरत थे और कुछ दिन पहले ही सेवा निवृत्त हुए थे। मनीष,स्कन्द और अमरेंद्र के बाद आज इस चौकड़ी के अंतिम स्तंभ पापू भाई ने भी इस संसार को अलविदा कहा।

         वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक थे और विश्वविद्यालय स्तर तक उन्होंने क्रिकेट खेली थी।जिस समय वे क्रिकेट खेल रहे थे उस समय रेडियो पर क्रिकेट कमेंट्री अपना स्वरूप ग्रहण कर रही थी और वे खुद क्रिकेट खेलने से ज़्यादा क्रिकेट कमेंट्री की ओर आकर्षित हुए। वे पहले स्थानीय मैचों में शौकिया कमेंट्री करने लगे और जल्द ही इस विधा में माहिर हो गये। अपने पहले ही प्रयास में वे रीजनल स्तर के  पैनल के चुन लिए गए। बाद में वे राष्ट्रीय पैनल में शामिल कर लिए गए।

        हालांकि वे विश्वविद्यालय स्तर तक ही क्रिकेट खेले थे,लेकिन उन्हें क्रिकेत की गहरी समझ थी और उसकी बारीकियों को समझते थे। उनकी भाषा पर भी बढ़िया पकड़ थी और इसके चलते वे धाराप्रवाह कमेंट्री करते। जो कोई भी उन्हें सुनता उनका दीवाना बन जाता।

        मेरी उनसे पहली मुलाकात खेल पर एक परिचर्चा की रिकॉर्डिंग के दौरान हुई थी। उस परिचर्चा में उनके अलावा तीन और खेल जगत के बड़े नाम थे और मुझे रेडियो जॉइन किये हुए बहुत ज़्यादा दिन नहीं हुए थे। उस परिचर्चा का संचालन मैं खुद करना चाहता था और मैंने की भी। हालांकि रिकॉर्डिंग से पहले सभी लोगों को ये बात नागवार लग रही थी कि उन सीनियर लोगों के बीच ये 'कल का लौंडा'कैसे संचालन कर सकता है। लेकिन रिकॉर्डिंग के बाद इफ्तेखार भाई ने पीठ थपथपाई और उसके बाद जब भी वे आते तो कहते आप ही संचालन करो या इंटरव्यू करो।

       दरअसल वे शानदार कमेंटेटर तो थे ही पर उससे भी शानदार वे एक व्यक्ति थे। बहुत ही सहज और सरल। वे बहुत मोहब्बत से मिलते। उन्हें जब भी मैंने अपने कार्यक्रम के लिए याद किया वे तुरंत चले आते। जितनी बार उन्हें स्टूडियो में रिकॉर्ड किया उससे कहीं अधिक बार उन्हें फोन पर रिकॉर्ड किया। जब भी रिकॉर्डिंग के बाद उनको चाय ऑफर करते तो वे कहते नहीं कमरे में नहीं और फिर  आकाशवाणी गेट के बाहर चाय की दुकान पर जाकर महफ़िल जमती जहां इलाहाबाद के खेलों पर लंबी बहस चलती।

          मैंने उन्हें आखरी बार अपने कार्यक्रम के लिए फोन पर देहरादून आकाशवाणी स्टूडियो से रिकॉर्ड किया था जब जसदेव सिंह का निधन हुआ था। और रेडियो पर आखरी बार उन्हें कमेंट्री करते हुए सुना 13 से 17 फरवरी तक भारत और इंग्लैंड के बीच दूसरे टेस्ट मैच के दौरान। शायद रेडियो के लिए ये उनकी आखरी कमेंटी थी। वे सिगरेट बहुत पीते थे। अभी कुछ साल से उन्हें स्वास्थ्य संबंधी संबंधी समस्या थी। उन्हें हृदयाघात हुआ था। वे जल्द ही थक जाते थे। इसका असर उनकी कमेंट्री पर भी पड़ा था। वे अब थोड़ा फम्बल करने लगे थे। लेकिन कमेंट्री के प्रति उनका गहरा अनुराग था,उनका पहला प्यार था और उसका दामन उन्होंने आखिरी वक्त तक नहीं छोड़ा। वे लगातार  कमेंट्री करते रहे। उन्हें मैदान से सीधे कमेंट्री करने के बजाय ऑफ ट्यूब कमेंट्री कभी नहीं भायी। वे उसकी खूब आलोचना करते लेकिन वे उसमें भी सिद्धहस्त हो गए थे और जब भी कमेंट्री करते लगता सीधे मैदान से बोल रहे हैं।

       इलाहाबाद की क्रिकेट की हिंदी कमेंट्री की समृद्ध परंपरा के आखरी स्तंभ को आखरी सलाम। इलाहाबाद का खेल जगत थोड़ा और सूना हुआ और हमार हृदय भी। आप बहुत याद आएंगे इफ्तेखार सर। 

--------------------

विनम्र श्रद्धांजलि।


No comments:

Post a Comment

अकारज_22

उ से विरल होते गरम दिन रुचते। मैं सघन होती सर्द रातों में रमता। उसे चटकती धूप सुहाती। मुझे मद्धिम रोशनी। लेकिन इन तमाम असंगतियां के बीच एक स...