Wednesday 26 May 2021

अकारज_10

 




उस रात छत पर लेटे हुए वो देर तक आसमाँ को देखती रही। फिर सहसा उसने कहा ' कितने सुंदर झिलमिलाते तारे!'

मैंने कहा 'हमारी इच्छाएं। सुंदर तो बहुत हैं पर हाथ नहीं आतीं।'

उसने पूछा 'और ये जुगनू ?

मैंने कहा 'हमारी उम्मीद। हर पल जलती बुझती। जिस पल जले ज़िन्दगी रोशन,जिस पल बुझे ज़िन्दगी अंधेरा।

उसने कहा 'अच्छा छोड़ो। पूर्णिमा का चांद देखो। कितना सुंदर। वो तो चांद ही है ना?

मैंने कहा 'हमारा जीवन। हर रोज घटता जाएगा और फिर अमावस आ जाएगी।'

चारों और सन्नाटा था,हम थे और दो धड़कनें एक साथ कदमताल करते हुए सन्नाटे से लड़ रही थीं।


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