बहुत दिनों से उससे कोई संवाद ना हुआ था। लगा मौन उसे रास आ गया।
फिर एक दिन अचानक उदास स्वर में बोली 'तुम्हें पता है पहले बहुत दिनों तक आसमान में बादल छाए रहते थे। उनसे रिमझिम पानी बरसता रहता था। वो पानी नहीं ज़िन्दगी होता था जिसे धरती धीमे धीमे अपने भीतर सींझती रहती थी।'
मुझे संवाद का एक सूत्र मिला। मैंने कहा 'है तो आज भी कुछ वैसा ही। देखो ना ज़िन्दगी के आसमान पर कितने दिनों से दुख के स्याह बादल छाए है। फर्क़ सिर्फ इतना कि इनसे ज़िन्दगी नहीं मौत बरस रही है।'
वो कुछ और उदास हुई। उसने कहा 'पता है उस पानी में लगातार काम करते करते माँ बाबा के पैर की उंगलियों के बीच खार हो जाते'
मैंने कहा 'हां पर आज तो बरसते दुखों से दिलों पर ही खार हुए जा रहे हैं।'
उसके चेहरे पर उदासी और गहरी हुई। वो बोली 'पता है उस लगातार बारिश से घर सील जाते'
मैंने कहा 'पर दुख की इस बरसात से घर ही नहीं आत्माएं भी सील सील जा रही हैं। बेबसी की उमस से आत्मा पर फफोले हो रहे हैं।'
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अब उसकी आँखों से गंगा जमुना बह रही है। इससे वो आसमाँ से बरस रहे मौत के तेजाब को जीवन के अमृत में बदल देना चाहती है।
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