लगभग महीने भर बाद फिर दफ्तर जाना शुरू हो गया है। मेरे साथ साथ मां और बेटी की रिपोर्ट भी नेगेटिव आयी है। दिल में सुकून है। लेकिन ये सुकून खुशी से आवृत ना होकर भय,आशंका और संत्रास घिरा है।
ऐसे समय में जब हमारे चारों ओर अपनों के साथ लाखों लोग जीवन राग के सुरों को साधने का अनथक प्रयास कर रहे हों,उस प्रयास में उनकी सांसे छूट रही हों,उनमें से बहुत सारे लोगों ने इस जीवन राग को साधते साधते मृत्यु राग को साध लिया हो और जब जीवन राग की मधुरता मृत्यु राग की कर्कशता में दबी जाती हो,तो आपका सुकून किसी खुशी का वाहक हो भी कैसे सकता है।
ये मई का उत्तरार्द्ध है। सामान्य दिनों में ये समय अधिक ऊष्मा,ऊर्जा और उजास से भरा होता है। दिन का उजास कुछ ज्यादा लंबा होता है। उजास कुछ जल्द आता है और शाम को देर तक ठहरता है। अंधेरा कुछ कम समय का होता है। मई की इस ऊर्जा को,इस ऊष्मा को तमाम चीजें अपने अपने ढंग से बढ़ाती हैं। इन तमाम चीजों में खेल,खिलाड़ी और मैदान भी शामिल होते हैं। तमाम खेल मैदानों में खिलाड़ियों का कौशल और उनका संघर्ष इस गरम मौसम को अतिरिक्त उष्मा देता है।
ये ही वो समय होता है जब मोंटे कार्ले,मेड्रिड और रोम के मिट्टी के मैदानों पर दुनिया भर के टेनिस दिग्गज अपने तरकश के तीरों की आजमाइश कर रहे होते हैं और अपने दूसरे हथियारों को भी परख रहे होते हैं कि जिनसे उन्हें लाल मिट्टी के अजेय योद्धा राफा को परास्त करना है। पर रोलां गैरों तक आते आते उनके वे सारे हथियार भोथरे पड़ जाते और वे खेत रहते। लोग राफा के जादू पर विस्मित होते जाते। पर इस बार कहां इसकी सुध है कि माटी की सतह पर एक और प्रतिद्वंदिता जन्म ले रही है और मेड्रिड में ज्वेरेव ने राफा को हरा दिया है। कहाँ इस बात को जान पाए कि रोम में राफा ने ज्वेरेव को हरा दिया है और फिर फाइनल में एक और क्लासिक मैच में राफा ने जोकोविक को हरा दिया है। कि रोम जीत कर राफा रोलां गैरो के अजेय किले को बचाने निकल पड़ा है। कहां इस बार जानने की मन में उत्कंठा है कि रोलां गैरों में इस बार क्या होगा। कि पीट सम्प्रास ने कुल 14 ग्रैंड स्लैम जीते हैं और इस बार अगर राफा रोलां गैरों में जीत जाता है तो वो केवल इस मैदान पर ही उसकी बराबरी कर लेगा। ऐसा कोई विचार अब कहाँ आपको उत्तेजना से भर पाता है कि ग्रैंड स्लैम की जीत की प्रतिस्पर्धा और कितना आगे जाएगी। कि कौन सार्वकालिक महानतम खिलाड़ी है-फेडरर,जोकोविच या फिर राफेल नडाल। अब ऐसी कोई बहस कहां आपमें उत्तेजना ला पाती है। दुख से सीले मन को सुखाने की वो ऊष्मा इस खेल में इस बार कहां है।
यही वो समय है जब इस गर्म मौसम को एनबीए के प्ले ऑफ मुकाबले भी अतिरिक्त ऊष्मा प्रदान कर रहे होते हैं। सामान्य दिनों में आपकी रुचि होती है कि पिछली बार खिताब जीतने वाली टीम इस बार भी पिछला प्रदर्शन बरकरार रख पाएगी या फिर कोई पुरानी टीम ये खिताब जीतेगी या फिर कोई टीम छुपी रुस्तम साबित होगी। इस बार कौन जानना चाहता है कि अपने पावर प्ले से लेब्रोन जेम्स कौन से रिकॉर्ड ध्वस्त कर रहा है या फिर स्टीफेन करी अपने 3 पॉइंटर से कौन सी कविता रच रहा है। कौन इस बात से हतप्रभ हो रहा होगा कि पिछली चैंपियन टोरंटो रप्टर्स की टीम इस बार प्ले ऑफ में भी जगह नहीं बना पाई है। कि हज़ारों मौत के मातम से मुरझाए मन को खिलाने की ताकत इस खेल में इस बार कहां है।
इस समय यूरोप की तमाम फुटबॉल लीग अपने चैंपियन तय करने की जद्दोजहद में गर्मी पैदा कर रही होती हैं। प्रीमियर लीग हो या ला लीगा, बुंदेस लीगा हो या सीरी ए और लीग वन, जोरदार संघर्ष और बेहतरीन खेल की गर्मी सभी उत्सर्जित करती हैं। दुनिया भर की फुटबॉल सेलेब्रिटी पैरों के जादू से लोगों में मदहोशी भर रहे होते हैं। फिर चाहे बार्सिलोना का मेस्सी हो या जुवेंतस का सीआर 07,बेयर्न म्यूनिख का लेवेंदोसकी हो या चेल्सी का जोरजिन्हो हो,रियाल मेड्रिड का टोनी क्रूस हो या मैनचेस्टर सिटी का रुबेन डियास। पर इस बार कौन जानना चाहता है कि मेस्सी का जादू अभी भी बरकरार है और 21 ला लीगा मैचों में 23 गोल किए हैं या कौन रिकार्ड्स में रुचि रखने वाला अपनी रिकॉर्ड बुक में नोट कर रहा होगा कि इस बार अभी तक 40 गोल करके लेवेंदोसकी ने गर्ड म्युलर के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है। कौन जानना चाहेगा कि पेप गार्डियोला ने कौन सी रणनीति से मैनचेस्टर सिटी को पांचवी बार प्रिमीयर लीग का चैंपियन बनाया या एंटोनियो कोंते ने इंटर मिलान को कैसे सीरी ए का चैंपियन बनाया या 29 गोल करने के बाद भी सीआर 07 जुवेंतस को सीरी ए का चैंपियन नहीं बना पाया। इस खेल की तमाम गतिविधियों में मृत्यु की आशंका से डरे मन को आश्वस्त करने की ऊष्मा इस बार कहां है।
ये समय इंडियन प्रीमियर लीग का भी है जो तमाम क्रिकेट प्रेमियों को ऊर्जस्वित करने का काम करती है और मौसम में अतिरिक्त गर्मी पैदा करती है। भले ही ये खेल से ज़्यादा मनोरंजन का सबब बन गयी हो,लोगों की दिलचस्पी चौकों और छक्कों को देखने में और नए चैंपियन को जानने की जिज्ञासा से गर्मी तो बनी ही रहती है। पर इस बार दुख की मार वो खुद ही कहाँ झेल पाई और औंधे मुँह जा गिरी है।
दरअसल इस बार अलग मौसम है इस जहान का। ये उदासियों से घिरा है,ग़मों से सहमा है,आंसुओं से गीला है। इस बार के मौसम में ऊष्मा नहीं है। आसमान से बादल बरस रहे हैं और धरती पर मौत। शरीर ठंडे मौसम से सहम रहे हैं और आत्मा दर्द और ग़मों से करहाते लोगों की चीत्कारों से।
क्या ही विडंबना है कि हम जितना आगे बढ़ते हैं उतना ही पीछे जाते हैं। जितना सभ्य होते जाते हैं उतना ही असभ्य भी होते जाते हैं। जितना श्लील बनने का प्रयास करते हैं उससे ज़्यादा अश्लील होते जाते हैं। नहीं तो कोई कारण नहीं था कि उन जगहों पर जहां हज़ारों हज़ार लोग काल कवलित हो रहे हों,जहां ज़िंदगी और मृत्यु के बीच संघर्ष चल रहा हो,वहां स्टेडियम की चारदीवारी के भीतर खेल हो रहे हों। जब दिल्ली,मुम्बई,अहमदाबाद और चेन्नई सबसे ज़्यादा हाहाकार मचा था उस समय बीसीसीआई और दुनिया भर के क्रिकेटर देश के लिए नहीं बल्कि पैसों के लिए मनोरंजन कर रहे थे। पिछली बार उनमें इतनी शर्मो हया तो बाकी थी कि विदेश चले गए। इस बार तो वे लाशों के बीच तांडव कर रहे थे। वे खुद को खुदा समझने लगे थे। उन्होंने बायो बबल बनाया था। उनका मानना था उन्हें कुछ नहीं हो सकता। दरअसल जब तक खुद पर नहीं आ पड़ती तब तक दूसरों के दर्द का अहसास नहीं होता। उन्हें भी नहीं हुआ। लेकिन जब उन पर आ पड़ी तो दुम दबाकर भाग खड़े हुए।
खेल हमेशा मनुष्यता के पक्ष में खड़े होते हैं। कितने उदाहरण हैं जब खेल पीड़ितों के पक्ष में खड़ा हुआ। खुद क्रिकेट और क्रिकेटर भी। फुटबॉलर सादियो माने को याद कीजिए। वे अपने अपनी कमाई अपने शहर के लोगों की भलाई में खर्च कर देते हैं। फुटबॉलर मार्कस रशफोर्ड को याद कीजिये जिसने ब्रिटेन के 13 लाख गरीब बच्चों के पक्ष में अभियान चलाकर ब्रिटिश सरकार को घुटनों के बल ला दिया। पिछला अमेरिकन ओपन याद कीजिए जिसमें चैंपियन ओसाका नोआमी ने अमेरिका के अश्वेतों के विरुद्ध हिंसा के विरोध में हर मैच में एक पीड़ित के नाम का मास्क लगाकर हिंसा का विरोध किया। वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के बीच खेले जाने मैच को याद कीजिए जिसमें खिलाड़ियों ने घुटनों के बल बैठ कर 'ब्लैक लाइव्स मैटर्स' अभियान का समर्थन किया। भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेले गए उस टेस्ट मैच को याद कीजिए जिसमें ऑस्ट्रेलिया टीम ने दिल के असाध्य रोग से पीड़ित बच्चे आर्ची शिलर की इच्छा पूर्ण करने के लिए उसे बाकायदा 12वां खिलाड़ी और मानद सह कप्तान बनाया। वे तमाम मौके याद कीजिए ज़ब दुःख की किसी घड़ी में खिलाड़ी काली पट्टी बांधकर खेले। ऐसा कुछ भी आईपीएल में हुआ क्या। नहीं हुआ। इसलिए नहीं हुआ कि ये खेल नहीं व्यापार है। जो लोग इसे अभी भी खेल समझते हैं वे या तो हद से ज़्यादा भोले हैं या फिर नासमझ।
कहना सिर्फ इतना है कि इस बार गर्मी के मौसम में खेलों में भी वो ताब है ही नहीं कि मौसम में या लोगों के दिलों में अतिरिक्त उष्मा भर दें। दरअसल इस बार मौसम खुद ही उदास उदास सा है। सूरज हर सुबह उष्माविहीन उदासी लिए उगता है और थका मांदा सा छिप जाता है तो हवा कुछ बैचैन सी, भागी दौड़ी सी,हेराइ सी लगती है और आसमाँ है कि दुख से गीला हो बरसता जाता है।
ये उदासियों का मौसम है,बेबसी का मौसम है,बेचैनियों का मौसम है।
और हमें इंतज़ार है उल्लास,उमंग,ऊर्जा और उष्मा से भरे उस पहले वाले मौसम का जिसमें खेल हममें अतिरिक्त उत्साह का संचार करते थे और हम खुशियों से, रोमांच से,हार-जीत के आवेगों से सराबोर रहते थे।
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काश वे दिन जल्दी लौट आते।
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