'मुझे मौन मधुर लगता। उसे मौन बोरिंग सा लगता। मौन मुझे अन्यतम अभिव्यक्ति लगता, उसे मौन संवादहीनता की पराकाष्ठा। मौन मुझे असीम शांति से भर देता,उसे मौन उदासी का सबब लगता। वो कहती शब्दों से मधुर क्या हो सकता है, मैं कहता शब्दों से गैर जरूरी क्या!
और जब भी हम मिलते तो
मैं अपने शब्दों से मिलन का मधुर गीत लिखता और वो अपने मौन से उस गीत की सुरीली धुन रचती।
यकीनन जुदा जुदा थे हम। पर एक ही नींद के दो ख़्वाब थे हम।
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