संवाद
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'हाय! कितनी नर्म मुलायम सी सुबह!'
''तुम्हारी मुस्कान'
'अहा! कैसी सोने सी धूप!'
' तुम्हारा रूप'
'ओह! एक अलसाई सी शाम!'
'तुम्हारी अंगड़ाई'
'ओहो! कैसा रूपहला चाँद'
'तुम्हारी हँसी'
'आह! कितनी अंधेरी रात'
'तुम्हारी उदासी भरी कोई बात'
फिर इक दिन उसने कहा 'आज कुछ तुम कहो'
वो गुनगुनाई 'दो दिल, बहती उमंगें और एक
मंज़िल'
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'हाय! कितनी नर्म मुलायम सी सुबह!'
''तुम्हारी मुस्कान'
'अहा! कैसी सोने सी धूप!'
' तुम्हारा रूप'
'ओह! एक अलसाई सी शाम!'
'तुम्हारी अंगड़ाई'
'ओहो! कैसा रूपहला चाँद'
'तुम्हारी हँसी'
'आह! कितनी अंधेरी रात'
'तुम्हारी उदासी भरी कोई बात'
फिर इक दिन उसने कहा 'आज कुछ तुम कहो'
वो गुनगुनाई 'दो दिल, बहती उमंगें और एक
मंज़िल'
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