Sunday, 12 April 2020

अकारज_2


उसे सांझ उदासी से भरती, मुझे सांझ उम्मीद से लबालब करती। उसे लगता ये दिन का अंत है। मुझे लगता ये रात का आरंभ है,रात की सुबह है। उसे लगता दिन का उल्लास और स्पंदन खत्म होने को है। मुझे लगता रात का एकांत और संगीत शुरू होने को है। दोनों खयालों से भरे थे। कितने जुदा जुदा पर कितने एक थे हम।



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अकारज 23

वे दो एकदम जुदा।  ए क गति में रमता,दूजा स्थिरता में बसता। एक को आसमान भाता,दूजे को धरती सुहाती। एक भविष्य के कल्पना लोक में सपने देखता,दूजा...