Sunday, 12 April 2020

अकारज_3



दरअसल ये ज़िन्दगी तुम्हारे और मेरे अस्तित्व के समीकरण से बने सुलझे अनसुलझे सूत्रों से युक्त गणित है। तुम्हारी उम्मीदों और मेरी इच्छाओं का योग तुम्हारे एक स्पर्श भर से अनगिनत सपनों में बदल जाता हैं। किसी अलसुबह तुम्हारे अधरों से फूटी एक स्मित सी मुस्कान किसी त्रिज्या सी मेरी खुशियों की परिधि से छूकर उसका आयतन नापने की कोशिश करती है। और किसी शाम तुम्हारे चेहरे की एक उदास रेखा मेरे चेहरे पर एक समानांतर रेखा उकेर जाती है। 
यूं तो जीवन रेखाओं का बनना किस्मत का खेल है। पर अपनी खुशियों की प्रमेय मैं खुद की खींची रेखाओं से हल करना चाहता हूँ। बोलो,मेरा संबल बनकर तुम इति सिद्धम बन हमेशा मेरे साथ दोगी ना।




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