दरअसल ये ज़िन्दगी तुम्हारे और मेरे अस्तित्व के समीकरण से बने सुलझे अनसुलझे सूत्रों से युक्त गणित है। तुम्हारी उम्मीदों और मेरी इच्छाओं का योग तुम्हारे एक स्पर्श भर से अनगिनत सपनों में बदल जाता हैं। किसी अलसुबह तुम्हारे अधरों से फूटी एक स्मित सी मुस्कान किसी त्रिज्या सी मेरी खुशियों की परिधि से छूकर उसका आयतन नापने की कोशिश करती है। और किसी शाम तुम्हारे चेहरे की एक उदास रेखा मेरे चेहरे पर एक समानांतर रेखा उकेर जाती है।
यूं तो जीवन रेखाओं का बनना किस्मत का खेल है। पर अपनी खुशियों की प्रमेय मैं खुद की खींची रेखाओं से हल करना चाहता हूँ। बोलो,मेरा संबल बनकर तुम इति सिद्धम बन हमेशा मेरे साथ दोगी ना।
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