Sunday 23 February 2020

ये समाज और मानव मन की यात्राएं हैं



किसी जगह की यात्रा या किसी स्थान पर रहवास के तमाम कारण हो सकते हैं। निश्चित ही अधिकतर मौज मस्ती या कार्यवृति की अनिवार्यता के कारण  ही होता है। लेकिन जब ये यात्राएं और रहवास इन स्थूल कारणों से आगे बढ़कर एक व्यापक दृष्टिकोण और सरोकारों से प्रेरित होती हैं तो ये यात्राएं और रहवास वहां की संस्कृति और समाज को समझने बूझने का सबब बनते हैं। उस समाज की निर्मिति और मानसिकता को समझने का कारक होते हैं। और उसके माध्यम से मानव मन के भीतर और स्वयं के भीतर की यात्रा करने  रहने की कोशिश होती है।

ओमा शर्मा की यात्राएं और उनके रहवास इन्हीं वृहत्तर परिप्रेक्ष्य के वायस हैं। इसकी परिणति एक पुस्तक के रूप में होती है-'अन्तरयात्राएं वाया वियना'। लेकिन ये पुस्तक केवल वियना या ऑस्ट्रिया तक सीमित नहीं है। इसका भूगोल  कहीं ज़्यादा विस्तार लिए है।  हां इसके आयतन का एक बड़ा हिस्सा वियना घेरे है। 192 पृष्ठों में से 88 पृष्ठ  लेखक के प्रिय साहित्यकार स्टीफेन स्वाइग का शहर वियना ही घेरे है। 

ऑस्ट्रिया के महान साहित्यकार स्टीफेन स्वाइग(1881-1942) ओमा शर्मा के सबसे प्रिय और पसंदीदा साहित्यकार हैं। उन्होंने ना केवल उनकी जीवनी बल्कि उनकी कहानियों तथा अन्य पुस्तकों का अनुवाद किया है। स्वाइग का अधिकांश समय वियना में बीता। इसलिए ओमा शर्मा उनसे जुड़ी जगहों और चीजों को देखने के बहाने वियना की यात्रा करते हैं और उस यात्रा के बारे में लिखते हैं। यहां कई उपकथाओं से मिलकर एक कथा बनती है। दरअसल स्वाइग के व्यक्तिगत और लेखकीय जीवन और उनसे जुड़े स्थलों की कथा तो नेपथ्य में चलती है। इसके ऊपर कई उपकथाएं चलती जाती हैं। एक उपकथा स्वाइग की जीवनी की है जिसे वे बार बार उद्धृत करते चलते हैं। एक उपकथा यूरोप के उन महान कलाकारों और साहित्यकारों से बनती है जिनकी महान कृतियां अब वियना की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं और जिनसे स्वाइग को खोजने के क्रम में ओमा की मुठभेड़ होती है और फिर उस कृति और रचनाकार से एकाकार होते हैं। इसमें अंतोनियो कनोवा हैं,रेम्ब्रां हैं, टीशियस हैं,वेरोनीस हैं,पीटर ब्रुगेल हैं,बाल्जाक हैं,दोस्तोवस्की हैं,वेरहारन हैं,फ्रायड, मोज़ार्ट,बीथोवीन हैं। एक उपकथा वियना की सांस्कृतिक विरासत की,विश्व प्रसिद्ध संग्रहालयों की, बर्गथिएटर की,मारिया टेरेसा की भी है।

दरअसल इस किताब में एक तरफ वियना या कहें यूरोप है और दूसरी तरफ भारत। वे आस्ट्रिया के अलावा स्विट्ज़रलैंड भी जाते हैं और टॉलस्टॉय के बहाने रूस भी। स्विट्जरलैंड का वर्णन करते
 हुए वे  लिखते हैं '....जहाँ दुख-दर्द,संघर्ष-शोषण,जात-पात,रंगभेद या लैंगिक झमेले हैरत करने की हद तक नदारद हों,वहाँ किसी लेखक-कलाकार की प्रेरणाएं और बेचैनियाँ कैसी उड़ान भरती होंगी..।' और शायद यही कारण है कि जब जब वे भारत में -असम,गुजरात, पश्चिमी उत्तर प्रदेश या मुम्बई आते हैं,वे विवरण कहीं ज़्यादा सरस, करुणा से भरे और मार्मिक बन पड़े हैं। यहाँ देश काल समाज प्रमुखता से है व्यक्ति पृष्ठभूमि में। इसके विपरीत वियना और योरुप में व्यक्ति प्रमुख हैं और समाज पृष्ठभूमि में है। यूरोप के विवरण आपके दिमाग को मथते हैं तो भारत के विवरण दिल को,मन को छूते हैं,द्रवित करते हैं। निसंदेह ओमा जिस समाज को देखते महसूसते हैं और जिस तरह के चित्र उनके मन में बनते हैं वैसे ही कागज़ पर उतर आए हैं।

कुल मिलाकर ये एक रोचक पुस्तक है जो आपके अनुभव को और समृद्ध करती है। 
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आपको बहुत साधुवाद ओमा शर्मा

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