Sunday 16 February 2020


हमारे यहां गांव में खीर फीकी बनती है। बाद में  उसके ऊपर मीठे(शक्कर या बूरे) की एक लेयर जमाई जाती है और तब उसे खाते हैं। इसी तरह दूध कच्चे मीठे के साथ पिया जाता है। या तो शक्कर (चीनी नहीं) घोलकर या फिर गुड़ के साथ। गुड़ की चाय भी पी जाती है। लेकिन चाय अलग से गुड़ के साथ पिए जाते कभी नहीं देखा सुना जैसा कि सुप्रसिद्ध लेखक मनोहर श्याम जोशी पिया करते करते थे।

 प्रभात रंजन की पुस्तक 'पालतू बोहेमियन:मनोहर श्याम जोशी एक याद' में जोशी जी बार बार गुड़ के साथ चाय पीते हुए आते है,गाने में किसी टेक की तरह। पिछले 11 महीने में ये पहली किताब है जो खत्म हुई है और वो भी एक सिटिंग में। प्रभात रंजन निसंदेह एक शानदार किस्सागो हैं और 'कोठागोई'की तरह ये किताब भी इसकी ताईद करती है।

प्रभात रंजन ने जोशी जी को काफी करीब से देखा है और बहुत ही आत्मीयता से उन पर लिखा है। हालांकि ये 135 पन्नों की बहुत बड़ी किताब नहीं है लेकिन फिर भी जोशी जी के साथ साथ खुद प्रभात रंजन के बारे में बहुत जानने समझने को मिलता है। साथ ही टीवी और सिनेमा की दुनिया के भीतर की एक तस्वीर भी। ये पुस्तक उत्सुकता जगाती है तथा इस पर और भी विस्तार से लिखे जाने की मांग भी करती है क्योंकि उन्होंने उस समय को बारीकी से देखा सुना है जब टीवी संक्रमण के दौर से गुज़र रहा था। दूरदर्शन की मोनोपॉली खत्म हो रही थी और प्राइवेट टीवी आकार ले रहा था। 
इस पुस्तक में लिखने पढ़ने के इतने अधिक सूत्र हैं कि आप इसे दिग्दर्शिका के रूप में अपने पास रख सकते हैं। तमाम लेखकों और किताबों के बहुमूल्य  संदर्भ जो हैं।  बाकी लिखना सीखने के गुरुमंत्र तो इसमें हैं ही। पुष्पेश पंत का लंबा संस्मरणात्मक लेख प्रस्तावना के रूप में आपके लिए 'लुभाव' (बोनस) है ही। 
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ये अंतरंग यादों की खूबसूरत दुनिया है।

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