इस सर्द मौसम
मिरा यार
इस सर्द मौसम
मेहताब नहीं
आफ़्ताब सा लगता है
शरारतन खुद को छुपा लिया है
दीवार ओ धुंध के पीछे
और हम हैं कि
इक झलक उसकी पाने को
इकटक सरे आसमाँ देखा करते हैं
कि ख़ुदा के आगे हाथ उठते हैं
उसके इश्क़ की रोशनी के लिए।
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कि सर्द मौसम तेरी याद इतनी बेदर्द क्यूँ हो जाती है।
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