तुमने प्यार में खुद को
धरती बना डाला
पर
मैं
खुद को
बादल ना बना पाया
तुम समझी
मैं बरस कर
तुम्हारे मन को प्रेम रस में पगाना नहीं चाहता
परये सच नहीं था
सच ये था
मैं
तुम्हारे अंदर की आग को
बुझते नहीं देख सकता था।
तुमने प्यार में खुद को
नदी बना दिया
पर
मैं
समन्दर ना बन सका
तुम समझी
मैं
प्रेम का प्रतिदान ना कर सका
पर
ये सच नहीं था
सच ये था
मैं
तुम्हारे वज़ूद को
खत्म होते नहीं देख सकता था।
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