13 जून 2014 को हॉलैंड और स्पेन के बीच खेला गया मैच लम्बे अर्से तक याद रहेगा। ये मैच हार का बदला लेने का एक ऐसा उदाहारण बन गया है जिसे हमेशा उद्धृत किया जाता रहेगा। 11 जुलाई 2010 को जोहान्सबर्ग,दक्षिण अफ्रीका में जिस मैच को दोनों टीमों ने जहां ख़त्म किया था 13 जून 2014 का मैच ठीक वहीं से शुरू हुआ-स्पेन के डॉमिनेशन के साथ। बॉल पर स्पेन के कब्जे का प्रतिशत 58 था। ऐसा स्वाभाविक भी था। 2010 के मैच में दोनों टीमें चैम्पियन बनने के लिए खेल रहीं थी। दोनों टीमें समान रूप से उत्साहित थीं। पर स्पेन के इनेस्टा द्वारा अतिरिक्त समय में (116वें मिनट) में किये गए गोल ने हॉलैंड को निराशा के गहन अन्धकार में झोंक था। उनका विश्व चैम्पियन बनने का सपना तीसरी बार टूट गया था। इसीलिए इस बार दोनों टीमें अलग मानसिकता के साथ खेल रहीं थीं। स्पेन के लिए पिछले चार सालों में कुछ नहीं बदला था। 2010 में भी वो रैंकिंग में नम्बर एक थी और आज भी। तीन बड़े खिताब उसके नाम थे। 2008 में यूरो कप जीता था, 2010 में फीफा कप और 2012 में फिर से यूरो कप। यहां फिर से चैम्पियन बनने की सबसे बड़ी दावेदार टीम थी। पर हॉलैंड की टीम इन चार सालों में दूसरे स्थान से 15वें स्थान पर आकर टिक गयी थी।हॉलैंड के मन में हार की टीस अंदर तक पैठ गयी थी। जरूर ही अपने सामने पहले मैच में ही स्पेन को पाकर 2010 में मिले घाव हरे हो गए होंगे।स्पेन ने एक बार फिर चैम्पियन की तरह खेलना शुरू किया। 27 मिनट बीतते बीतते स्पेन के इनेस्टा द्वारा 2010 में हॉलैंड को दिए घाव को जोबी आलेंसों ने गोल कर बेतरह कुरेद दिया था। कहते हैं जब दर्द हद से ग़ुज़र जाता है तो वो ख़ुद ही दवा बन जाता है। जोबी के गोल का शायद यही असर हुआ होगा। होलैंड ने अब अपने को संगठित करना शुरू किया। खेल में तेजी लाये। जल्द नतीज़ा निकला। कप्तान रोबिन वेन पर्सी ने शानदार हेडर से गोल दाग स्कोर 1 - 1 से बराबर कर दिया। इसके बाद की कहानी अब ना भूलने वाला इतिहास बन गयी। दूसरे हाफ में एक के बाद एक चार गोल और। खेल ख़त्म होने पर स्कोर था 5 - 1,स्पेन के नहीं हॉलैंड के पक्ष में। एक बड़े कार्य को अंजाम दिया जा चुका था। चैम्पियन का पूरी तरह से मान मर्दन हो चुका था। इस बार इतिहास ने अपने को दोहराया नहीं था बल्कि एकरेखीय इतिहास की अवधारणा की तरह पिछली घटना के बाद की एक और घटना बन इतिहास को और आगे बढ़ा दिया। तिस पर विडम्बना देखिये कि स्पेन की विजेता टीम के एक नहीं दो नहीं पूरे 16 खिलाड़ी इस पराजय को देखने के लिए उस टीम के सदस्य बने खड़े थे। दरअसल जब स्पेन ने इस विश्व कप के लिए अपनी 23 सदस्यीय टीम की घोषणा की तो उसने 2010 टीम के 16 खिलाड़ियों को रिटेन था जो विश्व रिकॉर्ड था क्योंकि इससे पूर्व किसी भी चैम्पियन टीम ने अगले विश्व कप के लिए इतने अधिक खिलाड़ियों को रिटेन नहीं किया था। और इन खिलाड़ियों ने ही किसी चैम्पियन की इतनी बड़ी हार का रिकॉर्ड भी बनाया। 1950 के फ़ाइनल में ब्राज़ील की युरुग्वे के हाथों मरकाना स्टेडियम की हार ने एक नया शब्द प्रचलन में ला दिया था- माराकांजो। हो सकता है ये हार कुछ इसी तरह का मिथक गढ़े।
Saturday, 14 June 2014
फुटबॉल विश्व कप 2014_2
13 जून 2014 को हॉलैंड और स्पेन के बीच खेला गया मैच लम्बे अर्से तक याद रहेगा। ये मैच हार का बदला लेने का एक ऐसा उदाहारण बन गया है जिसे हमेशा उद्धृत किया जाता रहेगा। 11 जुलाई 2010 को जोहान्सबर्ग,दक्षिण अफ्रीका में जिस मैच को दोनों टीमों ने जहां ख़त्म किया था 13 जून 2014 का मैच ठीक वहीं से शुरू हुआ-स्पेन के डॉमिनेशन के साथ। बॉल पर स्पेन के कब्जे का प्रतिशत 58 था। ऐसा स्वाभाविक भी था। 2010 के मैच में दोनों टीमें चैम्पियन बनने के लिए खेल रहीं थी। दोनों टीमें समान रूप से उत्साहित थीं। पर स्पेन के इनेस्टा द्वारा अतिरिक्त समय में (116वें मिनट) में किये गए गोल ने हॉलैंड को निराशा के गहन अन्धकार में झोंक था। उनका विश्व चैम्पियन बनने का सपना तीसरी बार टूट गया था। इसीलिए इस बार दोनों टीमें अलग मानसिकता के साथ खेल रहीं थीं। स्पेन के लिए पिछले चार सालों में कुछ नहीं बदला था। 2010 में भी वो रैंकिंग में नम्बर एक थी और आज भी। तीन बड़े खिताब उसके नाम थे। 2008 में यूरो कप जीता था, 2010 में फीफा कप और 2012 में फिर से यूरो कप। यहां फिर से चैम्पियन बनने की सबसे बड़ी दावेदार टीम थी। पर हॉलैंड की टीम इन चार सालों में दूसरे स्थान से 15वें स्थान पर आकर टिक गयी थी।हॉलैंड के मन में हार की टीस अंदर तक पैठ गयी थी। जरूर ही अपने सामने पहले मैच में ही स्पेन को पाकर 2010 में मिले घाव हरे हो गए होंगे।स्पेन ने एक बार फिर चैम्पियन की तरह खेलना शुरू किया। 27 मिनट बीतते बीतते स्पेन के इनेस्टा द्वारा 2010 में हॉलैंड को दिए घाव को जोबी आलेंसों ने गोल कर बेतरह कुरेद दिया था। कहते हैं जब दर्द हद से ग़ुज़र जाता है तो वो ख़ुद ही दवा बन जाता है। जोबी के गोल का शायद यही असर हुआ होगा। होलैंड ने अब अपने को संगठित करना शुरू किया। खेल में तेजी लाये। जल्द नतीज़ा निकला। कप्तान रोबिन वेन पर्सी ने शानदार हेडर से गोल दाग स्कोर 1 - 1 से बराबर कर दिया। इसके बाद की कहानी अब ना भूलने वाला इतिहास बन गयी। दूसरे हाफ में एक के बाद एक चार गोल और। खेल ख़त्म होने पर स्कोर था 5 - 1,स्पेन के नहीं हॉलैंड के पक्ष में। एक बड़े कार्य को अंजाम दिया जा चुका था। चैम्पियन का पूरी तरह से मान मर्दन हो चुका था। इस बार इतिहास ने अपने को दोहराया नहीं था बल्कि एकरेखीय इतिहास की अवधारणा की तरह पिछली घटना के बाद की एक और घटना बन इतिहास को और आगे बढ़ा दिया। तिस पर विडम्बना देखिये कि स्पेन की विजेता टीम के एक नहीं दो नहीं पूरे 16 खिलाड़ी इस पराजय को देखने के लिए उस टीम के सदस्य बने खड़े थे। दरअसल जब स्पेन ने इस विश्व कप के लिए अपनी 23 सदस्यीय टीम की घोषणा की तो उसने 2010 टीम के 16 खिलाड़ियों को रिटेन था जो विश्व रिकॉर्ड था क्योंकि इससे पूर्व किसी भी चैम्पियन टीम ने अगले विश्व कप के लिए इतने अधिक खिलाड़ियों को रिटेन नहीं किया था। और इन खिलाड़ियों ने ही किसी चैम्पियन की इतनी बड़ी हार का रिकॉर्ड भी बनाया। 1950 के फ़ाइनल में ब्राज़ील की युरुग्वे के हाथों मरकाना स्टेडियम की हार ने एक नया शब्द प्रचलन में ला दिया था- माराकांजो। हो सकता है ये हार कुछ इसी तरह का मिथक गढ़े।
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