समय कुछ ठहरा ठहरा सा प्रतीत होता है। मानो पिछले तीन सालों में कुछ ना बदला हो। ना पैरा खिलाड़ियों का हौंसला,ना उनकी योग्यता और ना उनका जज़्बा। वे पेरिस में उसी तरह पदक जीत रहे हैं जैसे टोक्यो में जीते थे। उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये पूरब है या पश्चिम। ये टोक्यो है या पेरिस। वे सिर्फ लक्ष्य साधते हैं। वे चिड़िया की आंख देखते हैं और आंख है कि किसी जादू सी पदकों में बदल जाती है। वे ठीक वहां से शुरू कर रहे थे जहां टोक्यो में छोड़ा था।
पैरा खिलाड़ियों की ये दुनिया यूं तो कठिनाइयों और दुश्वारियों से बने अंधेरे की दुनिया है। लेकिन क्या ही कमाल है कि इन पैरा सितारों ने अपने होंसलो, अपने जज़्बे,अपने धैर्य,अपने साहस और अपने अनथक परिश्रम से इन अंधेरों को उजाले में तब्दील कर दिया है। इन उजालों में वे नायकों की तरह प्रदीप्त हो उठते हैं।
पेरिस पैरा ओलम्पिक 2024 में आज स्पर्धाओं का दूसरा दिन था। आज के चार नायक थे। जिन्होंने अपनी प्रतिभा के लट्ठ गाड़े और भारत को आज कुल चार पदक दिला दिए। तीन निशानेबाजी में और एक एथलेटिक्स में।
🔵पहला पदक आया निशानेबाजी से। 10 मीटर एयर राइफल (एसएच1) स्पर्धा में भारत की 37 वर्षीया मोना अग्रवाल ने 228.7 के स्कोर के साथ कांस्य पदक जीता।
मोना अग्रवाल की ये उपलब्धि इस मायने में महत्वपूर्ण है कि वे ना केवल दो बच्चों की मां हैं बल्कि कामकाजी महिला भी हैं और बैंक में काम करती हैं। राजस्थान के सीकर में जन्मी मोना को बहुत ही छोटी उम्र में पोलियो हो गया था और उन्हें व्हीलचेयर का सहारा लेना पड़ा। अपनी नानी की प्रेरणा से उन्होंने पहले पावर लिफ्टिंग और एथलेटिक्स में जैवलिन और शॉटपुट से खेल जीवन की शुरुआत की। लेकिन विवाह के बाद जयपुर आईं और यहां उन्होंने 2021 में पावरलिफ्टिंग की जगह शूटिंग की शुरुआत की।
मोना का अंतरराष्ट्रीय करियर 2023 में शुरु हुआ जब उनका चयन क्रोएशिया के ओसिजेक में होने वाले डब्ल्यूएसपीएस विश्व कप में हुआ। यहां उन्होंने कांस्य पदक जीता। उन्होंने 2023 में ही लीमा में आयोजित डब्ल्यूएसपीएस चैंपियनशिप में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया। फिर नई दिल्ली में हुए डब्ल्यूएसपीएस विश्व कप 2024 में अवनी लखेरा को पीछे छोड़ते हुए स्वर्ण पदक जीता।
🔵जिस स्पर्धा में मोना अग्रवाल ने भारत को पहला पदक दिलाया, उसी स्पर्धा में अवनी लखेरा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत को स्वर्ण पदक के रूप दूसरा पदक दिलाया वो भी विश्व रिकॉर्ड के साथ। उन्होंने 249.7 अंकों के साथ अपना ही टोक्यो पैरा ओलम्पिक में बनाया 249.6 अंकों का विश्व कीर्तिमान तोड़ दिया। उन्होंने टोक्यो ओलम्पिक में इसी स्पर्धा का स्वर्ण पदक जीता था। साथ ही उन्होंने वहां दूसरा पदक 50 मीटर एयर राइफल थ्री पोजीशन स्पर्धा में जीता था। ये कांस्य पदक था। अब वे शूटिंग में दो पैरा ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण जीतने वाली पहली शूटर बन गई हैं।
🔵आज का तीसरा पदक जीता एथलीट प्रीति पाल ने। उन्होंने ये पदक जीता महिलाओं की 100 मीटर (टी-35) दौड़ स्पर्धा में। उन्होंने 14.21 सेकंड का समय लिया। ये उनका सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत समय भी था। उन्होंने आज एक इतिहास रचा। ठीक वैसे ही, जैसे टोक्यो में नीरज ने रचा था। ये पैरालंपिक का भारत का ट्रैक स्पर्धा का पहला पदक है। हालांकि एथलेटिक्स में भारत पैरालंपिक खेलों में 17 पदक जीत चुका है। लेकिन वे सब फील्ड स्पर्धाओं में हैं।
इस स्पर्धा में चीन की जिया ने 13.35 सेकेंड के समय के साथ स्वर्ण और 13.74 सेकेंड के समय के साथ गुओ ने रजत पदक जीता।
इससे पूर्व प्रीति पाल ने इसी साल कोबे जापान में आयोजित विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 200 मीटर (टी 35) में 30.49 सेकंड के समय के साथ कांस्य पदक जीता था। विश्व एथलेटिक्स में पदक जीतने वाली वे पहली भारतीय एथलीट थीं।
🔵आज का चौथा पदक आया निशानेबाजी में। मनीष नरवाल ने पुरुषों की 10 मीटर एयर पिस्टल (एसएच 1) स्पर्धा के फाइनल में रजत पदक हासिल करके पेरिस पैरालंपिक खेलों में भारत को निशानेबाजी में तीसरा और कुल मिलाकर चौथा पदक दिलाया। मनीष ने कुल 234.9 अंकों के साथ रजत पदक हासिल किया। उन्होंने स्वर्ण पदक विजेता कोरिया के जियांग डू जो को कड़ी टक्कर दी, जिन्होंने कुल 237.4 अंकों के साथ स्वर्ण पदक हासिल किया। यहां उल्लेखनीय है कि उन्होंने टोक्यो पैरा ओलम्पिक खेलों के स्वर्ण पदक विजेता विश्व रिकॉर्ड धारी चीन के यांग चाओ को पीछे छोड़ा।
मनीष नरवाल टोक्यो पैरा ओलम्पिक में 50 मीटर पिस्टल फोर पोजीशन (एस एच 1) मिश्रित स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत चुके हैं। मनीष ने 2017 बैंकॉक विश्व कप में अपना अंतरराष्ट्रीय कैरियर शुरु किया और 10 मीटर एयर पिस्टल(एसएच1) स्पर्धा में जूनियर विश्व रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीता। मनीष ने 2022 एशियाई पैरा खेलों में कांस्य पदक भी हासिल किया।
दाहिने हाथ की विकलांगता के साथ जन्म लेने वाले मनीष बहुत ही साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं। मेसी के दीवाने मनीष शुरू में फुटबॉलर बनना चाहते थे। लेकिन जल्द ही उन्हें लगा कि उनका प्यार फुटबॉल नहीं बल्कि शूटिंग है। ये बात साल 2016 की है जब वे एक स्थानीय शूटिंग रेंज में गए। फिर उन्होंने हाई परफॉरमेंस कोच जय प्रकाश नौटियाल और राष्ट्रीय कोच सुभाष राणा की देखरेख में अपनी प्रतिभा को निखारा और अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की। उनका कहना है अब 'शूटिंग ही उनकी जिंदगी' है।
यहां उल्लेखनीय है कि निशानेबाजी के तीनों पदक एसएच 1 श्रेणी में आए। इस श्रेणी में इसमें वे शूटर शामिल होते हैं जिनकी भुजाओं या निचले शरीर में सीमित गति होती है। यानी इस श्रेणी में वे प्रतिभागी भाग लेते हैं जिनका निचला हिस्सा विकलांगता की श्रेणी में आता है लेकिन हाथ इतने मजबूत होते हैं कि राइफल या पिस्टल पकड़ने के लिए स्टैंड का सहारा नहीं लेना पड़ता है।
जबकि एथलेटिक्स में पदक जीतने वाली प्रीति पालटी 35 श्रेणी में भाल लेती हैं। टी-35 से टी-38 तक की श्रेणी में समन्वय संबंधी वे विकार आते हैं जिसमें एक खिलाड़ी अपने विभिन्न अंगों में सामंजस्य ठीक से नहीं बिठा पाता है जैसे सेरेब्रल पाल्सी की समस्या। इसके अंतर्गत हाइपरटोनिया,अटैक्सिया और एथेटोसिस जैसे विकार शामिल हैं।
भारत अब एक स्वर्ण,एक रजत और दो कांस्य पदक सहित कुल चार पदकों के साथ पदक तालिका में 13वें स्थान पर है।
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