
'मैं?'
'एक स्मृति!'
'अब भी स्मृति में शेष हूँ!'
'हाँ,दिल की किसी शिरा में घास के तिनके पर सुब्ह की शबनम की तरह!''
'शबनम की उम्र कहां होती है?'
'तरलता ज़िंदगी से कहां खत्म होती है!'
'ऐसा क्या?'
'ज़िंदगी की दोपहर में व्यस्तताओं की ऊष्मा से मिटती थोड़े ही ना है। तरल हो स्मृति वाष्प हो जाती है बस। और यकीन मानो ज़िंदगी की सांझ की शीतलता में स्मृति संघनित हो फिर शबनम में ढल जाती है।'
वो ज़ोर से हंसी। मन चांदनी के से उजाले से भर उठा। कुछ बातें और ढेर सारी यादें हरसिंगार के फूलों सी बरस पड़ीं। दिल में प्यार मोगरे की सी खुश्बू सा फैल गया।
'चल झूठे'
'ओह, तुम्हें प्यार का नाम आज भी याद है!'
'शब्द ब्रह्मनाद जो होते हैं। दिल के ब्रह्मांड से कहां मिटते हैं।'
दो दिल थे कि धड़कनों के शोर में अब सिर्फ एक शब्द 'झूठे' से मचल मचल जा रहे थे।
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