Saturday, 13 March 2021

'राज' मिताली का


         2006 में दुनिया के सबसे अमीर और प्रोफ़ेशनल क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई ने भारतीय महिला क्रिकेट की बागडोर अपने हाथ में थामी और 'वूमेन्स क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया' का बीसीसीआई में विलय कर दिया गया। इस उम्मीद के साथ कि जिस तरह भारतीय पुरुषों ने क्रिकेट के महासागर में महारत और शोहरत की अनंत गहराई नापी है,ठीक उसी तरह भारतीय बालाएं क्रिकेट के आकाश में प्रसिद्धि की बलन्दी को छु पाएंगी। ये उम्मीद कितनी पूरी हुई और बीसीसीआई का इसमें कितना योगदान रहा,ये सवाल बहसतलब है। पर ये बात जरूर है कि भारतीय बालाओं ने खुद पर भरोसा करना सीख लिया है और उन्होंने अपने भरोसे,अपनी योग्यता के बूते अपने पंखों को इतना मजबूत बना लिया है कि वे अपनी स्वच्छंद उड़ान भर सकें और नित नए मुकाम हासिल कर सकें।

        12 मार्च को दक्षिण अफ्रीका के साथ लखनऊ के इकाना स्टेडियम में खेली जा रही वर्तमान सीरीज के तीसरे एक दिवसीय मैच में मिताली दुराई राज एक ऐसा मील का पत्थर स्थापित कर रहीं थीं जिस पर महिला खिलाड़ी तो क्या पुरुष खिलाड़ी भी रश्क कर उठें। भारतीय इनिंग का 28वां ओवर चल रहा था। ऐनी बॉश के सामने मिताली राज थीं। वे अपने 32 रन के व्यक्तिगत स्कोर पर थीं। उनके 10 हज़ार अंतरराष्ट्रीय रन में सिर्फ 03 की कमी थी। उन्होंने एक चौका लगाया और 10 हज़ार रन पूरे किए। अब  वे 10 हज़ार रन बनाने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी और इंग्लैंड की चार्लोट एडवर्ड्स के बाद विश्व की दूसरी खिलाड़ी बन गई हैं। 10 हज़ार अंतरराष्ट्रीय रन बनाना निसन्देह एक असाधारण उपलब्धि है।

       वे एक गेंद पर चौका लगाकर एक असाधारण उपलब्धि हासिल करती हैं और ठीक अगली गेंद पर आउट होकर वापस पवैलियन लौट जाती हैं। ये दो गेंद ज़िन्दगी का और विशेष रूप से महिला ज़िन्दगी का रूपक गढ़ती हैं। ज़िन्दगी पल में तोला पल में माशा। ज़िन्दगी चाहे जैसी ही लेकिन मिताली राज की क्रिकेट यात्रा तो कम से कम ऐसी नहीं है। उन्होंने 1999 में एक बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। वे कदम दर कदम प्रसिद्धि के शिखर पर चढ़ती गई और अब तक शिखर पर पहुंच कर ठहर गई हैं। और वे अब उस  ऊंचाई पर हैं जिस पर पहुंच पाना किसी और के लिए नामुमकिन नहीं तो बहुत कठिन अवश्य है।

         मिताली ने 16 साल की उम्र में पहला अन्तर्राष्ट्रीय मैच आयरलैंड के विरुद्ध एकदिवसीय मैच था जिसमें उन्होंने नॉट आउट 114 रन बनाए। पहला टेस्ट मैच 2002 में इंग्लैंड के विरुद्ध और पहला टी20 मैच 2006 में इंग्लैंड के विरुद्ध खेला था। उन्होंने कुल 10 टेस्ट मैच खेले जिसमें 01 शतक और चार अर्धशतकों की सहायता से 51 की औसत से 663 रन बनाए। उन्होंने 89 टी20 मैचों में 17 अर्धशतकों की सहायता से 37.52 की औसत से 2364 रन और 211 टेस्ट मैच में 6974 रन बनाए हैं। वे 7हज़ार एकदिवसीय रन बनाने से केवल 26 रन दूर हैं और जब आप ये पढ़ रहे होंगे तो सकता है ये माइलस्टोन भी उन्होंने प्राप्त कर लिया हो। महिला क्रिकेट इतिहास की वे ऐसा करने  वाली एकमात्र खिलाड़ी होंगी। साथ ही दो एकदिवसीय  विश्व कप के फाइनल में टीम को पहुंचाने वाली एकमात्र भारतीय कप्तान। 

        वे अपनी उपलब्धियों के लिए  'लेडी सचिन'के नाम से जानी जाती हैं। पर वे भारतीय महिला क्रिकेट की गावसकर ठहरती हैं। वे गावस्कर की तरह अपनी असाधारण खेल और उपलब्धियों से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित होने वाली और प्रसिद्धि पाने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। हरमनप्रीत कौर उनके बाद आईं।अपनी कॉपी बुक स्टाइल,शानदार स्ट्रोक्स और एक छोर से पारी को थामे रखने में गावस्कर सरीखी ही लगती हैं। सिर्फ इतना भर ही नहीं। जिस तरह का पुराने के जाने और नए के आने के दो कालों का, दो महान व्यक्तित्वों की टकराहट का और खेल की दो शैलियों के  बीच का द्वंद और संघर्ष पुरुष क्रिकेट में गावस्कर और कपिल रचते हैं,उसका प्रतिरूप महिला क्रिकेट में मिताली और हरमनप्रीत कौर रचती हैं।

        वे एक वायुसैनिक की पुत्री हैं। उन्होंने बचपन से आसमान में उड़ते वायुयानों को देखा होगा। बहुत करीब से देखा होगा। निसन्देह वे उससे प्रभावित होती होंगी। उससे एक आत्मीयता बनी होगी। अवचेतन में ऊंचाइयों को छूने की चाह जन्मी होगी। इस चाह को पूरा करने के लिए नीला आसमां ना भी हो तो क्या फर्क पड़ता है। क्रिकेट का हरा मैदान तो था। रनवे ना भी हो तो क्या फर्क पड़ता है,22 ग़ज़ की पिच तो थी ना। और कोई यान ना भी हो तो क्या फर्क पड़ता है,एक अदद बल्ला तो था ना। बस चाहना और होंसला के पंख होने चाहिए होते हैं। वे मिताली के पास थे। हां,उन पंखों को कोई खोलने वाला चाहिए था। वो भी मिला। उन पंखों को खोला संपत कुमार ने। उन्हें असीमित उड़ान भरने की काबिलियत दी। दरअसल संपत कुमार कमाल के  पारखी थे।उन्होंने पहली नज़र में हीरे को पहचान लिया था। फिर मेहनत से उसको तराश दिया। आज वो हीरा भारतीय महिला क्रिकेट के माथे सजा है। 

         पर जीवन में कुछ दुर्योग भी आते हैं। बात 1997 की है। 14 साल की उम्र ही मिताली को विश्व कप के संभावितों में चुना लिया गया था। उस के कुछ समय बाद ही संपत कुमार की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई। शायद उनका काम पूरा हो गया था। कहते हैं शाहजहां ने ताजमहल बनाने वाले मजदूरों के हाथ कटवा दिए थे। ताकि कोई दूसरा ताजमहल ना बन सके। तो क्या यहां ईश्वर को लगा कि एक नायाब हीरा तराशा जा चुका है। और ऐसा कोई दूसरा हीरा नहीं होना चाहिए। शायद हां। शायद ना। पर संपत चले गए।

        इसे एक संयोग ही मानना चाहिए कि एक  लड़की नर्तकी बनते बनते क्रिकेटर बन गई। दरअसल मिताली भरतनाट्यम में प्रशिक्षित हैं। पहले वे डांसर बनना चाहती थीं। पर वे क्रिकेटर बन गईं। उनके खेल में लय है,गति है,नियमों की बंदिश है और सबसे ऊपर खेल में कमाल का ग्रेस है। वे एक क्लासिक नृत्य की गति,लय, शास्त्रीयता और ग्रेस को खेल में समाविष्ट कर देतीं हैं और खेल को नृत्य की तरह दर्शनीय और मोहक बना देती हैं। 

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दरअसल वे क्रिकेट की रुक्मणि देवी हैं। एक असाधारण उपलब्धि के लिए उनको  बधाई और अगली के लिए शुभकामनाएं।

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