Saturday, 20 March 2021

अकाराज_6













उसने खिलखिलाकर कहा 'अहा!कितने सुंदर हरसिंगार के फूल'।

 मैंने कहा 'अपने से बिछड़ने के दुःख से टपके कुछ आंसू। 


उसने चहककर कहा 'देखो कितना सुंदर गुलाब'। 

मैंने कहा 'दर्द की चुभन के बावजूद मुस्कुराता  कोई चेहरा'। 


उगते सूरज को देख वो मुस्कुराते हुए बोली 'स्वर्णिम आभा लिए  कितना भला भला सा सूरज'।

मैंने कहा 'अपनों के विछोह के ग़म में पीला पड़ा चेहरा'।


उसने खाली सुनसान सड़क को देखा और कहा 'कितनी सुकून भरी है ना सड़क।'

मैंने कहा 'आने वाली विपत्ति के बोझ की आशंका से सहमा उदास चेहरा।'


उसने मेरी आँखों मे झांका और बोली 'दुःख बांचता आदमी कितना सुंदर होता है ना'

मैंने कहा 'और प्यार डूबा आदमी कितना निश्छल और पवित्र'।

----------------

आत्मीय मौन चारों और पसर गया था जिससे होकर दो 'मन' गुज़र रहे थे।




No comments:

Post a Comment

राकेश ढौंडियाल

  पिछले शुक्रवार को राकेश ढौंढियाल सर आकाशवाणी के अपने लंबे शानदार करियर का समापन कर रहे थे। वे सेवानिवृत हो रहे थे।   कोई एक संस्था और उस...