Saturday, 30 November 2013

कलंक गाथा







                              तेजपाल प्रकरण से अब सारा हिंदुस्तान अवगत हो चुका है। तहलका पत्रिका ने नवंबर में गोआ में एक अंतरराष्ट्रीय महोत्सव थिंक फेस्ट आयोजित किया। इस आयोजन के दौरान पत्रिका के एडिटर इन चीफ और प्रख्यात पत्रकार ( अब कुख्यात ) तरुण तेजपाल ने अपनी सहयोगी पत्रकार का यौन उत्पीड़न किया। और ऐसा उन्होंने एक बार नहीं दो दिन किया। वो पत्रकार उनकी बेटी की उम्र की, उनकी बेटी की दोस्त और खुद उनके मित्र की बेटी है।
                              पहले मामले को उन्होंने अपने आप समेटने की कोशिश की।पीड़ित महिला पत्रकार को इस नसीहत के साथ कि 'ये नौकरी चलाने का सबसे आसान तरीका है' जब लड़की ने हिम्मत जुटाई और इस सम्बन्ध में पत्रिका की मैनेजिंग एडिटर शोमा चौधरी को मेल भेज कर घटना की सारी जानकारी दी। उन्होने इस मामले को पत्रिका के अंदर दबाने की कोशिश की। लेकिन जब जानकारी लीक हो गयी तो मामले को दूसरी तरीके से निपटाने की कोशिश की गयी। तेजपाल ने कहा कि उन्होंने पीड़िता से बिना शर्त माफी मांग ली है और प्रायश्चित करने के लिए अपने पद से 6 माह के लिए हट गए। इसे पत्रिका अन्दुरुनी मामला बताया गया। 
                                इस केस की सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि तेजपाल महोदय ने स्वयं को दोषी मानते हुए खुद को सजा भी दे डाली। उनकी इस अदा पर तमाम लोग फ़िदा हो गए और इसे साहसिक कदम बताया जाने लगा। पर मामला और तूल  पकड़ता गया। तब इसे बी जे पी का षड़यंत्र बताया जाने लगा ,कुछ ने उनके पुराने कार्यो का वास्ता दिया। एक महोदय ने पीड़िता की तुलना मोनिका लेविंस्की तक से कर दी। जब और आगे बात बढ़ी तो तेजपाल महोदय ने आरोप  को झूठा बता दिया। जिन महाशय ने पहले अपना अपराध मानते हुए खुद को सजा देने की घोषणा कर दी थी अब वो उस पापकर्म को बेशर्मी से नकार रहा है। इससे हास्यास्पद और क्या हो सकता है। यहाँ पर फेसबुक पर तेजपाल के बचाव में दिए कुछ टीप प्रस्तुत हैं। उल्लेखनीय है कि  ये सब बड़े और समाज के सम्मानित लोगों की टीप हैं तथा ऐसी और भी बहुत सी टीप होंगी …
                            1.   ".... yes, the question stands.but the lady journalist has still not filed any fir.we will talk of her when it comes up.but what makes those enthusiasts go out of their body to get tejpal arrested --isn't it a politico-communal design?
                            2. "… but I still feel that the fall of an angel should not be equated with the habitual acts of any devil." 
                           3. "..Think about a scientist, working 40 years in a laboratory, in absolute confinement, forgetting food, family, pleasures ..just to find a cure of a fatal decease, killing millions of people....think of those long fourty fifty years ...and one day, in fraction of moment...in a spurt of impulses he commits something wrong....and he admits it, confessing it in public....will you all erase all those contributions..
                            4 " ...."क्या आप अपना पक्ष तय कर चुके हैं ? मुझे याद आता है कारंत जी के साथ घटी घटना. जब आप सब लोग उनको फ़ांसी दिलाने के पक्ष में थे..शायद मैं अकेला था जब 'दिनमान' में उस घटना के विवेकपूर्ण, संयत और न्यायिक तरीके से देखने के पक्ष में लिखा था"
                                पिछले दिसम्बर में राजधानी दिल्ली में निर्भया काण्ड हुआ  था। पूरा देश आंदोलित हुआ। वो एक गंभीर अपराध था। हालांकि तेजपाल काण्ड की तुलना करना बेमानी है, पर इस मामले को उसके परिप्रेक्ष्य में देखने की कोशिश की जा सकती है क्योंकि ये दोनों ही मामले नारी के यौन उत्पीड़न से जुड़े हैं। ये सही है इस मामले में दरिंदगी उस हद तक नही हुई है पर कुछ मायने में ये उससे ज्यादा गम्भीर अपराध भी है और गम्भीर निहितार्थ लिए हुए है 
                         निर्भया कांड के दोषियों की पृष्ठभूमि देखिये तो पता चलेगा कि सारे अपराधी निम्न मध्य वर्ग के थे ,कम पढ़े लिखे थे ,अपने घरों से दूर जीविका अर्जित करने आये थे ,उनकी अपनी कुंठाए रही होंगी। उन्होंने एक अनजान लड़की को देखा और उसके साथ घोर निंदनीय दरिंदगी कर डाली। ऐसा अपराध जिसके लिए मृत्यु दंड भी छोटा लगने लगा। 
                           इसके विपरीत तेजपाल समाज के सबसे सपन्न और प्रबुद्ध वर्ग से आते है। समाज इनसे न केवल नेतृत्व की अपेक्षा करता है बल्कि अपेक्षा करता है कि वे समाज के सामने आदर्श प्रस्तुत कर मार्गदर्शन भी करेंगे।ये वो वर्ग है जिसे हर तरह की सुविधाएँ उपलब्ध है ,ऐशो आराम से रहते है। निश्चय ही तेजपाल का मन किन्ही चिंताओं से कुंठित नहीं रहा होगा और उन्होंने जो कुछ भी किया वो सोच समझ कर किया। उन्होंने स्वीकार भी किया है कि 'उनका कृत्य परिस्थितियों का गलत मूल्यांकन था'। यानि जो किया सोच समझ कर  किया और सोच समझ कर किया जाने वाला अपराध अचानक हो जाने वाले अपराध से बड़ा होता है। इस दृष्टि से तेजपाल का कृत्य  एक बड़ा अपराध है और संपन्न वर्ग के आदर्शो से च्युत होने की कलंक गाथा है। 
                              वे पढ़े लिखे बुद्धिजीवी वर्ग से आते हैं। बुद्धिजीवी वर्ग ही अपने ज्ञान के प्रकाश से समाज का मार्गदर्शन करता है। उनसे सबसे ज्यादा विवेकवान  होने की अपेक्षा की जाती है। उनसे हर कार्य विवेकसम्मत तरीके से करने की भी अपेक्षा की  जाती है।ऐसे में उनका अपराध कम पढ़े लिखे विवेकहीन लोगों की तुलना में अधिक बड़ा है। और उनका कृत्य बुद्धिजीवी वर्ग की प्रतिष्ठा को धूल धुसरित करने की कलंक गाथा है। 
                                    वे पत्रकार थे। पत्रकारिता के शिखर पर थे। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है। पत्रकार की समाज में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उससे अपेक्षा होती है कि समाज में और विशेष रूप से महिलाओं पर हो रहे अन्याय, अनाचार, अत्याचार के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद करेगा। इसके विपरीत तेजपाल का अपने साथी पत्रकार के साथ ये कृत्य पत्रकारिता पेशे के उसूलों को बदनाम करने की कलंक गाथा है। 
                               उन्होंने जिस लड़की के साथ ये कृत्य किया वो कोई अनजान नहीं थी। उनकी माहतत कर्मचारी थी,उनकी साथी पत्रकार थी,उनके द्वारा सेवायोजित थी। सेवायोजकों का कर्त्तव्य है वो ना केवल अपने कर्मचारियों से बेहतर सम्बन्ध बनाए बल्कि उसके हितो की रक्षा भी करे। इस तरह से तेजपाल का ये कृत्य सेवायोजकों के मूल्यो से विचलन की कलंक गाथा है। 
                                    वो लड़की उनके अपने साथी और दोस्त की बेटी थी। वो दोस्त अब इस दुनिया में नहीं है। ऐसे में तेजपाल का ये गुरुतर दायित्व बनाता था कि वो उसकी हर तरीके से रक्षा करे। उसे हर मुसीबत से बचाये। लेकिन उसने अपनी बेटी की उम्र की उस लड़की का बेजाँ फ़ायदा उठाना चाहा। इस दृष्टि से उसका ये कृत्य दोस्ती को कलंकित करने की कलंक गाथा है।
                            वो लड़की केवल तेजपाल के दोस्त की बेटी ही नहीं थी बल्कि उसकी खुद की बेटी की भी दोस्त थी। वो बचपन से उसकी बेटी के साथ रहती आयी थी। उसके दोस्त की बेटी और उसकी बेटी की दोस्त और उसकी हमउम्र होने के कारण उसकी बेटी की तरह थी। इस दृस्टि से उसका कृत्य स्थापित बाप बेटी के पवित्र रिश्ते को बदनाम करने की कलंक गाथा है।  
                                 दरअस्ल ये इस बात कि अभिव्यक्ति है कि समाज के सुविधा संपन्न वर्ग के लिए, शीर्ष पर बैठे सत्ता और अधिकारों से लैस मुट्ठी भर लोगों के लिए उनकी अपनी इच्छा,अपनी सनक ही क़ानून है। वे जब चाहे जो चाहे कर सकते हैं।विधि स्थापित क़ानून सिर्फ आम आदमी के लिए हैं। वे स्वयं क़ानून से ऊपर है।असल में ये लोकतंत्र नहीं कुछ प्रभावशाली लोगों का उनके अपने हितो को साधने का तंत्र है और इस तंत्र में ऐसी कलंक गाथाओं से आपका वास्ता पड़ता ही रहेगा !!!  

Friday, 15 November 2013

विदा सचिन !!!




15 नवम्बर 2013। मुम्बई का वानखेड़े स्टेडियम। समय दिन के लगभग दस बजकर चालीस मिनट।ड्रिंक्स के बाद का पहला ओवर। देवनारायण की गेंद। सचिन के बल्ले का एज लगा। कप्तान सैमी ने कैच पकड़ने में कोई गलती  नहीं की। सचिन आउट। सचिन की आखिरी इनिंग समाप्त। पूरा स्टेडियम स्तब्ध। सचिन वापस पवैलियन लौट रहे हैं। पूरा स्टेडियम खड़े होकर उन्हें विदा कर रहा था। 24 साल पहले 1989 को करांची से जो कहानी शुरू हुई थी आज उसका समापन हो रहा था। सचिन ने 12 चौकों की मदद से 118 गेंदों में 74 रन बनाये।

                   सचिन ने अपनी  इनिंग कल शुरू की थी। कल 38 बनाकर नॉट आउट थे। आज जिस तरह से खेल रहे थे लगा बड़ा स्कोर करेंगे। आज का खेल पुजारा ने शुरू किया। सिंगल लेकर स्ट्राइक सचिन को दी। अब पूरा स्टेडियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज रहा था।  जल्द ही सचिन ने शिलिंगफोर्ड को दो चौके मारे। स्कोर 47 हुआ। फिर शिलिंगफोर्ड पर सिंगल लिया। स्कोर 48 हुआ। इसके बाद टीनो बेस्ट की गेंद पर अपना ट्रेडमार्क स्ट्रेट ड्राइव कर चौका लगाकर अपना 68 वाँ अर्ध शतक पूरा किया।

                     सचिन जबर्दस्त क्रिकेट खेल रहे थे। वे जानते थे कि वे 40 हज़ार दर्शक स्टेडियम में और करोड़ों टी वी पर उन्हें आखिरी बार खेलते देख रहे हैं। वे अपना बेस्ट देना चाहते थे। वे एक एक क्षण को जी लेना चाहते थे। ठीक वैसे ही जैसे दर्शक इस इनिंग को हमेशा हमेशा के लिए यादगार बना लेना चाहते थे। अपने 24 साल का सारा अनुभव इस इनिंग उड़ेल दिया था। 24 सालों के सारे खेल को इस एक इनिंग में भर देना चाहते थे। दर्शकों की दीवानगी के बीच एकाग्रचित होकर अपनी पारी को आगे बढ़ा रहे थे। 60 पार किया। 70 पर पहुँचे। अब लगने लगा था सचिन की 101वीं सेंचुरी बना लेंगे। पर विधान को कुछ और ही मंजूर था। 74 पर देवनारायण ने 24 साल पुरानी लम्बी यात्रा पर आखिरकार विराम लगा दिया। ये वकार युनुस से करांची में शुरू हुए दुनिया भर के गेंदबाजों के लिए दुःस्वप्न का अन्त था।

  सचिन आज के बाद तुम मैदान पर क्रिकेट खेलते नज़र नहीं आओगे। अब तुम्हारा नए सिरे से मूल्यांकन   होगा। तुम्हारे कैरियर की चीर फाड़ होगी। तुम्हे भगवान बताया जायेगा। तुम्हे महान बताया जायेगा। तुम्हारी आलोचना भी होगी। पर इन सब से तुम वापस खेलने मैदान पर तो  नहीं आओगे। और अगर तुम मैदान पर नहीं भी दिखाई दोगे तो भी क्रिकेट तो चलता ही रहेगा ना। भारत जीतता भी रहेगा,हारता भी रहेगा। किसी के खेलने या न खेलने से क्रिकेट पर क्या फ़र्क़ पड़ता है। हाँ फर्क़  पडेगा तो तुम्हारे उन चाहने वालों पर पड़ेगा जिनके लिए क्रिकेट का मतलब ही सचिन होता था। अब उनके लिए क्रिकेट अब वो क्रिकेट नहीं होगी जो तुम्हारे खेलने पर होती थी। अब तुम उनके लिए सिर्फ याद बन कर रहोगे। अब जब भी क्रिकेट की बात होगी तो तुम्हारी याद आएगी। तुम अब उन सब के लिए मानक बन कर उनकी स्मृतियों में बस जाओगे हमेशा के लिए। अब तो जब भी कोई  … 
 _  रन बनाएगा तो याद आयेगा  तुमने टेस्ट मैचों में सबसे ज्यादा 15921 रन बनाये हैं। 
             … तो याद आयेगा  तुमने एकदिनी मैचों में सबसे ज्यादा 18426 रन बनाये हैं.
             … तो याद आयेगा  तुमने दोनों में मिलाकर सबसे ज्यादा 34347 रन बनाये हैं
 _  सेंचुरी बनाएगा तो याद आयेगा तुमने शतकों का शतक बनाया है। 
             …  तो याद आयेगा तुमने टेस्ट मैचों में सबसे ज्यादा 51 शतक बनाए है।                 
             …  तो याद आयेगा तुमने एकदिनी मैचों में सबसे ज्यादा 49 शतक बनाए है।
 _  टेस्ट कैप मिलेगी तो तुम याद आओगे तुमने 16 साल की उम्र में पहला टेस्ट खेला।
 _  संन्यास लेगा तो याद आयेगा कि तुमने 200 टेस्ट खेले
 _  याद आयेगा एकदिनी मैचों में पहला दोहरा शतक तुमने ही मारा।
 _  सिक्स मारेगा तो याद आयेगा तुमने शोएब अख्तर को थर्ड मैन के ऊपर सिक्स मारा था।

सिर्फ इतना ही नहीं अब जब भी …
 _  कप्तान किसी खिलाड़ी को कोई नसीहते देगा तो याद आओगे कि साथी खिलाड़ी सचिन जैसा हो
 _  कोई बच्चा क्रिकेट का बात पकड़ेगा तो उस याद आयेगी वो सचिन जैसा बने।
 _  कोच ट्रेनिंग देगा तो उसे तुम याद आओगे कि सचिन जैसा शिष्य हो।

          सच तो ये है तुम्हारी हर बात याद आयेगी ! सचिन भले ही तुम मैदान में ना दिखो। पर अपने फैन्स के दिलों में हमेशा रहोगे। हमेशा उनके दिलों पर राज़ करोगे।विदा सचिन !खेल के मैदान से !! विदा सचिन !!!

(चित्र गूगल से साभार )

Thursday, 7 November 2013

प्रेम



आओ साथी आओ
डाले हाथ में हाथ
चले साथ
और प्रेम के विरोधियो को
सिखाएं प्रेम का पाठ


आओ चलें चाँद पर
समेट कर वहाँ से लाएँ
ढेर सारी शीतलता
और उससे कर दें शांत
प्रेम विरोधियों की सारी घृणा


 आओ चले सूरज के पास
 माँग कर वहाँ से लाएँ
 ढेर सारी ऊष्मा
 और भर दे
 प्रेम विरोधियों में प्रेम की गर्मी


आओ चले बृहस्पति के पास
बटोर कर वहाँ से लाएँ
ज्ञान का भण्डार
और सिखा दे
प्रेम विरोधियों को प्रेम के मायने

आओ चलें शुक्र के पास
उतार ले आएं वहाँ से
प्यार की गंगा
और तर्पण कर दे
प्रेम विरोधियों के सारे पूर्वाग्रह और कुंठाएं


आओ चले शनि के पास
सीख कर आएं वहाँ से
थोड़ा सा जादू
और दूर कर दे
प्रेम विरोधियों के मन की सारी कलुषता


आओ चलें तारों के पास
भर कर लाएं वहाँ से
रोशनी की झोली
और उतार दे उसको
प्रेम विरोधियों के दिमाग में
(ताकि देख सकें प्रेम को साफ़ साफ़ )


आओ सिखा दे
प्रेम विरोधियों को
स्वयं सैनिकों को
धर्म विद्यार्थियों को
खाप पंचायतों को
प्रेम करना


और बता दे उन्हें
कि वे भी तो किसी के प्यार की उपज हैं।








Sunday, 27 October 2013

मैंने शिव को देखा है


मैंने शिव को देखा है 

गली, चौराहों, सड़को और घरों में 

यहाँ तक कि लोगों की जेबों में देखा है। 

कभी सर्जक 

तो कभी विध्वंसक होते देखा है।

कभी जमींदारों का  हथियार 

और पूंजीपतियों का कारखाना होते देखा है 

तो कभी  मजदूरों की बंदूक होते देखा है।  

कभी सभ्यताओं को  विकसित करते 

और आज उन्हें विनाश के मुहाने खडा करते देखा है  

मैंने आदमी को देखा है। 


खेल



कंचे गुल्ली डंडे से लेकर फुटबॉल क्रिकेट तक
सभी खेल हो चुके है पुराने
और इन्हें खेलते खेलते ऊब चुके है हद तक
क्योंकि इनमे नही होते धमाके
नहीं बहता खून
नहीं मचती चीख पुकार
नहीं उजड़ते मांगो के सिन्दूर
नहीं होते बच्चे अनाथ
नहीं नेस्तनाबूत होते घर परिवार
और पल भर उजड़ता संसार

तो आओ खेले एक ऐसा खेल
जिसे कभी सिखाया था हमारे आकाओं ने
और हमने भी सीखा अच्छे शिष्यों की तरह
और खेले जिसे हम आजादी पाने के उन्माद में
खेले भागलपुर में
भिवंडी में
मलियाना में
दिल्ली में
गुजरात में
आसाम में
और मुज़फ्फरनगर में भी तो


तो शुरू करें खेल - "धरम गरम"
तू तू तू हिन्दू हिन्दू हिन्दू ऊ ऊ  ऊ ऊ.।
ये मारा एक लोना
गुजरात मेरा
तू तू तू तू मुस्लिम मुस्लिम म म म म म …
वो मारा एक लोना
और ये हुआ उत्तर प्रदेश मेरा
तू तू तू बांग्ला बंगला ला ला ला ला
वो मारा एक और लोना
हुआ आसाम मेरा

कितना आनन्द आ रहा है
एक के बाद एक लोना जीतते जा रहे है
तो फिर रुकना क्यों
लगातार खेलते जाना है
कब्जे में पूरा हिन्दुस्तान जो लाना है
क्रिकेट में तो विश्व चैंपियन है
इसका भी तो ताज पहनना है।

(लोना =कबड्डी में एक टर्म जो विपक्षी टीम के सभी खिलाडियों को आउट करने पर मिलता है और कुछ एक्स्ट्रा पॉइंट मिलते हैं )  

Monday, 21 October 2013

भगवान सन्यास ले रहे है



            "मैंने भगवान् को देखा है वो भारत में नम्बर चार पर बैटिंग करने आता है।"
                                                                                                          मैथ्यू हेडन
                              और क्रिकेट का ये भगवान् अब सन्यास लेने जा रहा है ।

      एक लम्बे समय से जिसका इंतज़ार हो रहा था आखिर वो समय आ ही गया। क्रिकेट के भगवान यानी सचिन रमेश तेंदुलकर ने घोषणा कर दी कि अपने दो सौवे टेस्ट मैच के बाद वे टेस्ट मैच से भी सन्यास ले लेंगे। बी सी सी आई ने घोषणा की है कि ये मैच वानखेड़े स्टेडियम मुंबई में नवम्बर में वेस्ट इंडीज के खिलाफ होगा। पिछले बीस सालों से वे भारतीय क्रिकेट टीम के अनिवार्य अंग बने हुए थे।उनका सन्यास क्रिकेट में एक ऐसा सूनापन भर देगा जिसे जल्दी भरना संभव नहीं होगा। ये वास्तव में दिलचस्प होगा उनका स्थान कौन  लेगा। 

         वे 'क्रिकेटिंग जीनियस' थे। उनमे क्रिकेट की जबरदस्त समझ थी। उनके बारे में कहा जाता है उनके पास हर बॉल को खेलने के लिए दो शॉट होते थे। ये उनकी महान प्रतिभा का ही प्रमाण है। उन्होंने तमाम नए शॉट ईजाद किए या  इम्प्रोवाईज़ किए। वे क्रिकेट के प्रति पूरी तरह समर्पित थे। उनका व्यक्तित्व भी बड़ा सौम्य था। मैदान में वे बड़े शांत दिखाई देते थे। क्रिकेट के प्रति उनका समर्पण और उनका व्यक्तित्व खिलाड़ी के रूप में उनके कद को और भी ऊँचा कर देता है। 

          लाखों  करोडों लोगों की तरह मैं भी सचिन का जबर्दस्त फैन रहा हूं। मेरे लिए भारतीय पारी का मतलब सचिन की पारी था। सैकड़ो बार ऐसा हुआ कि सचिन के आउट होते ही मेरे लिए भारतीय पारी समाप्त हो जाती थी और रेडियो या टी.वी.बंद हो जाता था और अगली इनिंग का इंतज़ार होने लगता था। अब सोचता हूँ क्या  गजब की दीवानगी थी ! सचिन ने अब इतने रिकार्ड्स बना दिए है की या तो वे टूटेगे ही नहीं और अगर टूटे भी तो बहुत समय लगेगा। और सच ये है कि मैं चाहता भी नहीं कि सचिन का कोई रिकॉर्ड टूटे भी। 

        अलग अलग प्रारूप में देखे तो कई खिलाड़ी उनसे आगे खड़े नज़र आते है। यहाँ बात मैं सिर्फ भारतीय खिलाडियों की ही कर रहा हूँ।और नज़रिया खेलते देखने का हो तो सचिन की तुलना में बहुत से ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्हें देखने के लिए आप सचिन पर वरीयता देना चाहेंगे। टेस्ट में राहुल द्रविड़ का शानदार क्लासिक खेल और डिफेन्स,वी वी एस लक्ष्मण की कलात्मक बैटिंग या फिर जी. विश्वनाथ और मो. अज़हरुद्दीन का शानदार रिष्ट वर्क सभी सचिन पर भारी पड़ते हैं।एकदिनी क्रिकेट में वीरेंदर सहवाग का आक्रामक खेल या युवराज के लम्बे शॉट लगते देखना सचिन को भुला देने के लिए पर्याप्त हो सकता है। टी-20 में तो सचिन उतने सफल रहे ही नहीं। क्षेत्र रक्षण में भी वे ठीक ठाक ही थे।

        और इन सब के ऊपर अगर किसी एक खिलाड़ी का नाम में लेना मुझे लेना हो जिसे मैं खेलते देखने में सचिन के ऊपर वरीयता दूं तो वो नाम मोहिंदर अमरनाथ का है। मोहिंदर के खेलते देख कर हमेशा लगा कि क्रिकेट वास्तव में जेंटलमैन गेम है। वे बड़े ही इत्मिनान से खेलते थे। वेस्ट इंडीज के तेज गेंदबाजों को भी इस इत्मीनान से खेलते थे कि ऐसा लगता मानो हर बाल खेलने के लिए उनके पास बहुत सारा समय है। वे हुक बहुत किया करते थे।वे प्यार से सहला कर हुक कर बॉल बाहर भेजते थे।उन्हें खेलते देखकर आप को ऐसा महसूस होता था मानो उस्ताद बिस्मिल्लाह को या फिर उस्ताद अमजद अली खान साहब को सुन रहे है आपको लगता  कि मंद मंद समीर बह रही है। जैसे तितली फूलों  के साथ हठखेलिया कर रही हो। सही मायने में मोहिंदर को खेलते देखना मन को सुकून देता था।

         इतना सब होते हुए भी सचिन टोटलिटी  में महानतम खिलाड़ी हैं। कोई खिलाड़ी उनके सामने ठहर नहीं सकता है। आज टीम में जिस तरह का माहौल है उसमे सचिन जैसा खिलाड़ी सहज महसूस कर ही नहीं सकता। जिस तरह सीनियर खिलाड़ियों को एक एक कर बाहर का रास्ता दिखाया गया और जहाँ अहंकार सर चढ़ कर बोलता हो वहां सचिन का सन्यास लेना ही मुनासिब था। 

    सचिन भले ही तुम मैदान में ना दिखो। पर अपने फैन्स के दिलों में हमेशा रहोगे। हमेशा उनके दिलों पर राज़ करोगे।  क्रिकेट के इतिहास में लाखों सितारों के बीच सूर्य की भांति हमेशा चमकते रहोगे। विदा सचिन !खेल के मैदान से !! विदा सचिन !!!

Wednesday, 25 September 2013

रिश्ता




जब भी गाँव जाता हूँ मैं

मिलना चाहता हूँ सबसे पहले

कृशकाय वृद्ध महिला से

जो रोज़ सुबह आती है दरवाज़े पे

ओढ़नी से काढ़े लंबा सा घूंघट

और लिए एक टोकरा सर पर और कभी कमर पर टिकाये  

खटखटाती है सांकल

ले जाती है दैनंदिन का कूड़ा

इसे गाँव कहता है चूढी(जमादारिन )

पर माँ मेरी कहती है 'बीवजी '

मैं बुलाता हूँ अम्मा

देखते ही मुझे जब  पूछती है वो

"कैसा है बेट्टा"

तो मन में बजने लगते हैं वीणा के तार

 कानों में घुल जाता है  शहद

दुनिया भर की माओं का प्यार उमड़ आता  है इस एक वाक्य में    

तब मेरी बेटी  पूछती है  मुझसे

किस रिश्ते से ये तुम्हारी अम्मा लगती हैं

तो मैं समझाता हूँ उसे

कि बहुत से रिश्ते गाँव की रवायतें बनाती हैं

जो अब मर रहीं हैं

और ये ऐसे रिश्ते हैं शब्दों  में बयां नहीं हो सकते

उन्हें सिर्फ और सिर्फ महसूसा जा सकता है।

एशियाई चैंपियन

  दे श में क्रिकेट खेल के 'धर्म' बन जाने के इस काल में भी हमारी उम्र के कुछ ऐसे लोग होंगे जो हॉकी को लेकर आज भी उतने ही नास्टेल्जिक ...