सुप्रसिद्ध शायर फ़िराक गोरखपुरी साहब ने कभी एक शेर कहा था-
"आने वाली नस्लें तुम पर फ़ख्र करेंगी हम अशरो।
जब भी उनको ध्यान आएगा तुमने फ़िराक़ को देखा है। "
भले ही हमने अदबी दुनिया के 'फिराक' को ना देखा हो,लेकिन हमने खेलों की दुनिया के 'फ़िराक' को देखा है। कि हमने रोजर फेडरर को खेलते हुए देखा है। यकीन मानिए आने वाली नस्लें ज़रूर उन सब पर रश्क़ करेंगी जिन्होंने फेडरर को खेलते हुए देखा है। जो उनके 24 साल के खेल जीवन के साक्षी रहे हैं। जिन्होंने 2003 में विंबलडन खिताब से लेकर 2022 में 23-24 सितंबर की रात को लेवर कप में राफा के साथ जोड़ी बनाकर यूरोप की टीम से अन्तिम मैच तक खेलते फेडरर को देखा ही नहीं उस खेल के जादू को महसूस किया है।
ऐसी खुशनसीबी कितनों के भाग्य में बदी होती है।
कुछ साधक अपनी विधा के साधक भर नहीं होते, वे जादूगर होते हैं। वे अपने विधा से प्रभावित नहीं करते,बल्कि सम्मोहित करते हैं। एक ऐसा सम्मोहन जिसके असर से ताउम्र निकल नहीं पाते। बिस्मिल्लाह खान की शहनाई का जादू हो या कुमार गंधर्व के गायन का। कहां कोई बच पाता है। उदय शंकर के पैरों की थिरकन का जादू हो लच्छू महाराज की भंगिमाओं का जादू। कौन अछूता रह जाता हैं। बेगम अख्तर की गमकती आवाज हो या परवीन शाकिर की मखमली आवाज। कौन इसमें डूब डूब नहीं जाता।
इनकी कला के सम्मोहन से कहाँ कोई बच पाता है।
और हां, रोजर फेडरर के खेल के जादू से भी कोई कहां बच पाता है।
स्विट्ज़रलैंड की खूबसूरत वादियों में बसे बासेल में जन्मा ये जादूगर मानो अपनी धरती की सारी खूबसूरती खुद अपने में और अपने खेल में समेटे पैदा हुआ हो जिसने आगे चलकर अपने खेल कौशल से,अपनी कला से,उसके खूबसूरत निदर्शन से सारी दुनिया को अभिभूत कर देना था। कि हर किसी को उसके सम्मोहन के मोहपाश में बंध जाना था।
ये दुनिया एक रंगमंच है जिसमें पर्दा उठता है और गिरता है। टेनिस की दुनिया भी रंगमंच से इतर कहां कुछ है। जिस पर पिछले कितने दिनों से तीन पात्रों वाले जादुई यथार्थ वाले शो का मंचन चल रहा है। एक ऐसा शो जिसका पर्दा एक बार उठा तो गिरने का नाम ही ना लेता। एक ऐसा मंच जिस पर तीन पात्रों की कला का जादू बिखर बिखर जाता है।
ये फेडरर,राफा और नोवाक है।
ये तीनों हैं कि थकने का नाम ही ना लेते। रंगमंच का परदा हैं कि गिरने का नाम ही ना लेता। अनवरत चलता शो। तीन अंकों का। तीन अंक,तीन पात्रों द्वारा अभिनीत। पात्र, एक दूसरे से अलग भी और एक दूसरे से प्रतिघात करते हुए भी। पात्र एक दूसरे में गुँथे हुए। पात्र एक दूसरे से स्वतंत्र होते भी एक दूसरे में एकाकार। एक दूसरे के बिना आधे अधूरे से।
ये टेनिस के आइकॉन है। ये टेनिस के देवता है। ये टेनिस की प्रतिमूर्ति हैं।
ये फेडरर हैं,ये राफा हैं,ये नोवाक हैं।
अंततः
इन तीनों में से एक 'अंक' समाप्त हो रहा है। एक पर्दा गिर रहा है। एक पात्र रंगमंच से विदा ले रहा है। टेनिस का एक युग समाप्त हो रहा है।
कि किसी ग्रीक देवता सा एक खिलाड़ी जिसे दुनिया 'फ़ेडेक्स' कहती है, टेनिस की दुनिया को अलविदा जो कह रहा है।
फेडरर अपने सन्यास के लिए लंदन को चुनते हैं। एक ऐसा स्थान जहाँ से वे महानता की पहली सीढ़ी चढ़ते हैं। अपना पहला जूनियर खिताब जीतते हैं। अपना पहला ग्रैंड स्लैम जीतते हैं।
वे एक ऐसा समय चुनते हैं जब 19 साल का एक युवा खिलाड़ी कार्लोस अलकराज यूएस ओपन जीतकर रंगमंच से एक नए शो का पर्दा उठाता है और मंच से उदघोषणा करता है कि हम आपके योग्य उत्तराधिकारी हैं। और फेडरर हैं कि नई पीढ़ी के लिए मंच खाली कर देते हैं।
वे अपने सन्यास के लिए एक ऐसे अवसर का चुनाव करते हैं जो टेनिस के महान खिलाड़ी रॉड लेवर के नाम पर आयोजित होता है जिनके प्रति फेडरर के मन में अगाध श्रद्धा है और जिस प्रतियोगिता को आकार लेने में वे खुद बड़ा योगदान करते हैं। वे लेवर कप में अपना आखिरी मैच खेलना चुनते हैं।
वे अपने लिए लंदन को चुनते हैं। वो लंदन जो टेनिस के जन्मस्थली इंग्लैंड की राजधानी है। लंदन जहां विम्बलडन है। वो विम्बलडन जहां वे आठ खिताब जीतते हैं। उस लंदन में जहां टेनिस अपने सबसे क्लासिक रूप में आज भी शेष है। वहां टेनिस का सबसे क्लासिक खिलाड़ी पहले टेनिस से एकाकार होता है और फिर को अलविदा कहता है।
टेनिस है कि फेडरर हुई जाती है। फेडरर हैं कि टेनिस हुए जाते हैं। 'इन्दिरा इज इंडिया'पर बहुतेरों को गुरेज हो सकता है। पर कौन ऐसा होगा जिसे इस बात पर एतराज हो कि 'फेडरर इज टेनिस'या फिर 'टेनिस इज फेडरर'।
फेडरर 1998 में विंबलडन का जूनियर खिताब जीतते हैं। 2001 में विम्बलडन के चौथे दौर में उस समय के सबसे बड़े खिलाड़ी पीट सम्प्रास को हराकर टेनिस टूर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। और फिर 2003 का साल आता है। वे विम्बलडन खिताब जीतकर एक नए युग के आरंभ की घोषणा करते हैं।
और फिर 2008 तक टेनिस का समय केवल फेडरर का समय होता है जब विम्बलडन फाइनल में एक ऐतिहासिक मैच में राफेल नडाल उन्हें 6-4,6-4,6-7(5-7),6-7(8-10),9-7 से हरा नहीं देते। लगभग 5 घंटे चले इस मैच को मैकनरो सहित तमाम टेनिस विशेषज्ञ टेनिस इतिहास का सर्वश्रेष्ठ मैच मानते हैं।
उसके बाद का समय उनके पराभव का नहीं बल्कि महान त्रिकोणीय प्रतिद्वंदिता का समय है। उस समय तक टेनिस परिदृश्य पर नोवाक भी नमूदार जो हो जाते हैं। हालांकि इस त्रिकोणीय प्रतिस्पर्धा को चतुष्कोणीय बनाने के लिए एंडी मरे भी जोर आजमाइश करते पाए जाते हैं। लेकिन वे जल्द ही श्रीहीन हो जाते हैं।
जिस समय फेडरर टेनिस परिदृश्य पर पदार्पण करते हैं वो संक्रमण काल था। संक्रमण इसलिए कि खेल अपना स्वरूप बदल रहा था। सर्व और वॉली का खेल बेसलाइन के खेल में बदल रहा था।
रैकेट में आई तब्दीली इस बदलाव का बायस थी। उस समय फेडरर ने सर्व और वॉली टेक्नीक को बचा कर रखा था। वे अपने आदर्श पीट सम्प्रास की तरह तेज सर्विस करते और जितना अच्छा बेसलाइन से खेलते उतना ही अच्छा नेट पर खेलते। वे शानदार ताकतवर ग्राउंड स्ट्रोक्स से विपक्षी को हतप्रभ कर देते। पर कोणीय फोरहैंड इनसाइड आउट शॉट उनका सबसे मारक हथियार था और एक हाथ वाला बैकहैंड उनका सबसे खूबसूरत और ग्रेसफुल शॉट।
उनके खेल की सबसे खूबसूरत बात उनका कोर्ट कवरेज होता। वे पूरे कोर्ट में पानी की तरह बहते से प्रतीत होते। एक कोने से दूसरे कोने तक पहुंचना एकदम एफर्टलेस होता। ऐसा करते देखना एक ट्रीट से कम ना होता।
किसी भी खिलाड़ी की महानता केवल उसकी अपनी उपलब्धियों भर से निर्धारित नहीं होती,बल्कि इस बात से भी होती कि उसके प्रतिद्वन्दी कैसे थे। खेल इतिहास में हर महान खिलाड़ी की महान प्रतिद्वंद्विताएँ रही हैं। दरअसल ये प्रतिद्वंद्विताएँ एक दूसरे के खेल को समृद्ध करती चलती है और ये दोनों मिलकर अंततः खेल को समृद्ध करती हैं। खेलों की कुछ महान प्रतिद्वंद्विताओं को देखिए। मुक्केबाजी में मोहम्मद अली बनाम जो फ्रैजियर,टेनिस में मार्टिना नवरातिलोवा बनाम क्रिस एवर्ट,बैडमिंटन में लिन डान बनाम ली चोंग वेई,गोल्फ में अर्नाल्ड पामर बनाम जैक निकलस या फिर बास्केटबॉल में लॉरी बर्ड बनाम मैजिक जॉनसन। और भी ना जाने कितनी। व्यक्तिगत भी और दलगत भी।
ठीक इसी तरह की प्रतिद्वंदिता फेडरर बनाम राफा,फेडरर बनाम नोवाक और नोवाक बनाम राफा हैं। सच तो ये है इनमें से किसी एक की बात शेष दोनों का उल्लेख किए बिना पूरी हो ही नहीं सकती। इन तीनों की प्रतिद्वंदिता ने टेनिस को असीमित ऊंचाइयों पर पहुंचाया है,उसे लिमिटलेस बना दिया है। ये एक तथ्य भर है कि 2003 से लेकर अब तक के कुल 77 ग्रैंड स्लैम में से 63 इन तीनों ने जीते हैं। राफा ने 22,नोवाक ने 21 और फेडरर ने 20।
ये आंकड़े हैं जो रिकॉर्ड भर बनाते हैं। अपने समय के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी रिचर्ड्स गास्केट का मानना है कि जब महानतम निर्धारित करने की बात आती है तो ग्रैंड स्लैम की संख्या से अधिक महत्वपूर्ण 'एस्थेटिक्स और ग्रेस'हैं। वे कहते हैं' फेडरर को किसी से भी रिप्लेस नहीं किया जा सकता। जब मैं एस्थेटिक्स के नज़रिए से देखता हूँ या मैदान में उसका ग्रेस देखता हूं तो मेरे लिए वो सर्वकालिक महानतम खिलाड़ी है।'
जिमी कॉनर्स इस बहस में एक और आयाम जोड़ते हैं। वे कहते है 'विशेषज्ञता के इस युग में खिलाड़ी या तो क्ले कोर्ट विशेषज्ञ है या ग्रास कोर्ट विशेषज्ञ या हार्ड कोर्ट विशेषज्ञ है या फिर आप रॉजर फेडरर हैं।'
आप इन तीनों के व्यक्तित्व का आकलन कीजिए तो पाएंगे कि नोवाक जातीय भेदभाव का शिकार होते हैं और अपने क्रियाकलापों और हाव भाव से सर्वहारा वर्ग के प्रतीत होते हैं। जबकि राफा का व्यक्तित्व मध्यमवर्गीय प्रतीत होता है। इन सब से अलहदा रॉजर फेडरर मैदान में और मैदान के बाहर अपनी शालीनता,अपने ग्रेस और एस्थेटिक सेंस में कुलीनवर्गीय प्रतीत होते हैं। टेनिस स्वयं अपने चरित्र में कुलीनवर्गीय है। टेनिस खेल और फेडरर का टेनिस दोनों क्लासिक हैं और क्लासिकता को पोषित करते हैं। फेडरर टेनिस के मानदंडों के करीब क्या वे स्वयं मानदंड हैं। वे टेनिस के सबसे प्रतिनिधि खिलाड़ी हैं।
लेकिन ये कैसी प्रतिद्वंदिता है। एक प्रतिद्वंदी विदा होने वाला है और उसी के प्रतिद्वंदी उसे विदाई देने वाले हैं। विदा होने वाला उदास है और विदाई देने वाले भी। आँखें सभी की नम हैं। वे एक दूसरे के प्रेम में तरल हुए जाते हैं। आखिर ये कैसी प्रतिद्वंदिता कि फेड अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी राफा के साथ जोडी बनाकर आखिरी मैच खेलते हैं। कि फेड के इस आखिरी विदाई मैच में ये तीनों प्रतिद्वंदी एक ही टीम हैं। क्या ही दृश्य है कि मैच खत्म होने के बाद फेड राफा के गले मिल रहे हैं और नोवाक हैं कि उन्हें अपने कांधे पर उठाए जाते हैं। ये अद्भुत दृश्य हैं। ये खेल के मैदान पर साकार हो रहे हैं। ये दृश्य खेल के मैदान पर ही साकार हो सकते हैं।
अब फेडरर खेल से विदा ले रहे हैं।
फेडरर का टेनिस से विदा लेना एक युग का अवसान है।
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टेनिस उनके बगैर भी खेला जाता रहेगा। पर यकीन मानिए अब टेनिस वैसा बिल्कुल नहीं होगा जैसा उनके रहते होता था।
खेल मैदान से अलविदा फ़ेडेक्स।
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