Monday, 21 June 2021

टेनिस

 



हम चाहे जितना प्रोग्रेसिव हो जाँए पर सामंती सोच का एक कीड़ा हमेशा हम सब के दिमाग में मौजूद रहता है। अपने को सबसे ज़्यादा जनतांत्रिक दल मानने वाले मजदूरों के एक वाम दल के एक विधायक जी का एक फोटो वायरल हुआ था जिसमें एक मजदूर खुद धूप में रहते हुए विधायक जी के ऊपर छाता ताने चल रहा था। ये एक उदाहरण भर है।



इसी तरह क्रिकेट और टेनिस जैसे कुछ खेलों का चरित्र बुनियादी तौर पर सामंती है। फटाफट क्रिकेट के साथ क्रिकेट का चरित्र तो बदला है,पर टेनिस में सामंती अवशेष बाकी हैं। खेल के दौरान बॉल उठाते और खिलाड़ियों को बॉल देते बॉल बॉय/गर्ल को तो आपने देखा ही होगा। चलिए इसे खेल के फॉर्मेट की ज़रूरत मान भी लें(हालांकि इतना ज़रूरी है भी नहीं),पर उन्हें हर दो गेम के बाद वाले ब्रेक में खिलाड़ियों के सामने हाथ बांधे या हाथ में तौलिया लिए खड़े देखना आंखों की चुभता ही नहीं है बल्कि दिल में गड़ता भी है। ऐसे दृश्य खेल का हिस्सा कतई नहीं हो सकते।
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दरअसल ड्रेस कोड के नाम पर बाज़ार का सबसे बड़ा शिकार भी महिला टेनिस खिलाड़ी ही बनी हैं।

अकारज _11

 


उस रात टेरेस पर उसे बूंदों से अठखेलियाँ करते देख मैंने हौले से उससे पूछा 'तुमने प्रेम पत्र लिखे क्या?'

वो खिलखिला उठी। अंधेरी रात में उसके हास का उजाला फैल गया।
वो चहक कर बोली 'हाँ लिखे ना। उन दिनों हम प्रेम में दरिया-ए-चिनाब हुआ करते थे। सपनों से बूंद बूंद दरिया भरता रहता और दरिया समंदर-ए महबूब की और बहता रहता। और फिर.....'
'और फिर क्या'मैंने पूछा
उसके स्वर में एक हल्की उदासी घुल गयी। बोली 'फिर अनहोनी का जलजला आया। इश्क़ का दरिया ए चिनाब सूख कर धरती में समा गया और दरिया-ए-सरस्वती हो गया।'
फिर उसने धीमे से पूछा 'और तुमने'
एक डूबी आवाज़ कहीं गहरे भीतर से निकली 'हां हमने भी। जब हम प्रेम में आवारा बादल थे। बूंद बूंद धरती पर बरसते। प्रेम का हरा रंग गहराता जाता और बदले में बादल फिर फिर उष्मा से भर भर जाता।'
'हूँ! तो फिर ?'
'फिर क्या! हरी भरी धरती बंजर हो गयी। और..और बादल हवा हो गए।'
अब मौन से यादों का मौसम उग आया था।
एक मन दरिया बन कल कल बहने लगा। एक मन बादल बन बूंद बूंद बरसने लगा।
ये पानियों का मौसम था
और प्रेम बरस रहा था।

महान एथलीट:मिल्खा सिंह

 



एथलेटिक्स में तीन तरह की स्पर्द्धाएं होती हैं दौड़ फेंक और कूद। फेंक और कूद में एक एक करके परफॉर्मेंस करता है और श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला विजेता होता है।  लेकिन दौड़ में प्रतिस्पर्धी एक साथ प्रतिभाग करते हैं और इसीलिये दौड़ एथलेटिक्स की सबसे रोमांचकारी प्रतिस्पर्धा होती है। 

और दौड़ों में यूं तो 100 मीटर दौड़ को 'दौड़ों की रानी'कहा जाता है पर सबसे खूबसूरत दौड़ 400 मीटर की ही होती है। दरअसल इसमें स्प्रिंट रेसों की गति और लंबी रेसों की लय दोनों एक साथ होती हैं। आज एथलेटिक्स की इस सबसे खूबसूरत रेस का भारत का सबसे बड़ा साधक 91 वर्षीय मिल्खा सिंह जीवन की रेस को समाप्त कर अनंत की यात्रा को निकल पड़ा।

हर व्यक्ति का जीवन विडंबनाओं से भरा होता है। मिल्खा सिंह इसका अपवाद कैसे हो सकते थे। भारतीय एथलेटिक्स के दो सबसे बड़े सितारे पुरुषों में मिल्खा सिंह और महिलाओं में पी टी उषा हैं। और ये दोनों ही अपनी उपलब्धि के लिए नहीं बल्कि उस उपलब्धि को पाने से चूक जाने के लिए जाने जाते हैं। 1960 के रोम ओलंपिक से पहले वे प्रसिद्ध हो चुके थे और 1958 में कार्डिफ राष्ट्रमंडल खेलों में उस समय के विश्व रिकॉर्ड धारी दक्षिण अफ्रीका के मैल्कम स्पेंस को हराकर स्वर्ण पदक जीत चुके थे। वे संभावित पदक विजेता थे। पर होनी को जो मंजूर हो। रोम ओलंपिक में उस रेस में पहले चार धावकों लेविस,कॉफमैन,स्पेन्स और मिल्खा सिंह ने 45.9 सेकंड के ओलंपिक रिकॉर्ड तोड़ दिया। लेविस और कॉफमैन ने 44.9 सेकंड का समय लिया। पर फोटो फिनिश में कॉफमैन को दूसरा स्थान मिला,स्पेन्स को 45.5 के साथ कांस्य पदक मिला और मिल्खा 45.73 के समय के साथ चौथे स्थान पर रह गए। ये राष्ट्रीय रिकॉर्ड था जिसे अगले 40 वर्षों तक बने रहना था। इसे 1998 में परमजीत सिंह ने तोड़ा। वे सेकंड के सौवें हिस्से से इतिहास बनाने से चूक गए। शायद ये नियति थी। वे आगे इस चूक के लिए याद किये गये और मिथक सरीखे हो गए। ठीक वैसे ही जैसे 1984 के लॉस एंजिलिस ओलंपिक में 400 मीटर बाधा दौड़ में राष्ट्रमंडल रिकॉर्ड तोड़ कर भी सेकंड के सौवें हिस्से से कांस्य पदक चूक गईं थी और इस चूक से ही आगे जानी गयीं और प्रसिद्धी पाई।
विडम्बनाएं और भी थीं। उनका जीवन विडंबनाओं और विरोधाभासों भरा था। वे 1929 में पाकिस्तान के शहर मुज़्ज़फरगढ़ के गोविंदपुरा में जन्में थे। 1947 में विभाजन के समय उन्हें पाकिस्तान छोड़ना पड़ा। इस दौरान उनके परिवार के सदस्यों को मार डाला गया।
जीवन की एक दौड़ ने उनसे उनका घर परिवार और देस छीना और एक दौड़ ने उन्हें प्रसिद्धि की बलन्दी पर पहुंचाया। कमाल ये कि वे जीवन से निराश होकर डकैत बनना चाहते थे पर सेना में भर्ती हो गए।
वे पाकिस्तान से भागे थे। कटु स्मृतियां उनके जेहन में थीं। 1960 में रोम ओलंपिक से पहले पाकिस्तान में दौड़ने का निमंत्रण मिला। वहां के लोग चाहते थे उनका मुकाबला उस समय के एशिया के सबसे मशहूर स्प्रिंट धावक पाकिस्तान के अब्दुल ख़ालिक़ से पाकिस्तान में हो। ख़ालिक़ को वे टोक्यो एशियाई खेलों में हरा चुके थे। वे नहीं जाना चाहते थे। नेहरू के कहने पर गए। एक बार फिर पाकिस्तान की धरती पर अब्दुल ख़ालिक़ को हराया। इस रेस में मिल्खा ने अब्दुल ख़ालिक़ को 10 कदमों से पीछे छोड़ा। रेस देख रहे पाकिस्तान के जनरल याकूब खां ने कहा 'तुम दौड़ते नहीं उड़ते हो।' मिल्खा को 'उड़न सिख'की उपाधि मिली उसी धरती पर जहां वो सब कुछ खो कर गया था।
उन्होंने 1958 के टोक्यो एशियाई खेलों में दो स्वर्ण पदक जीते। उसके बाद उसी साल कार्डिफ राष्ट्रमंडल खेलों में 400 मीटर के तत्कालीन विश्व रिकॉर्ड होल्डर को हराकर स्वर्ण पदक जीता। इन खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले वे पहले भारतीय एथलीट थे।
उन्हें रोम ओलंपिक में पदक चूक जाने का ताउम्र मलाल रहा। दरअसल ये पदक चूक जाना केवल एक पदक का चूक जाना भर नहीं था,बल्कि आने वाले समय भारत के एथलीटों के लिए एक 'रोल मॉडल' का बनने से चूक जाना था,वो चूक सैकड़ों पदकों का चूक जाना था। उनकी उम्मीद अधूरी रही कि कोई भारतीय ओलंपिक में पदक जीत सके।
ज़िंदगी ऐसी ही होती है। वे विरोधभासों और विडंबनाओं से बनी ज़िन्दगी थे। वे एक अधूरे ख्वाब और एक चूक से बनी अमरत्व प्राप्त शोहरत थे और अदम्य इच्छा शक्ति,कड़ी मेहनत और एक सैनिक के अनुशासन से बने महान एथलीट थे।
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एक नेक दिल इंसान को जिसने 'बैटल ऑफ टाइगर हिल' में शहीद हवलदार बिक्रम सिंह के सात वर्षीय बेटे को गोद लिया,अश्रुपूरित अंतिम सलाम।

Tuesday, 15 June 2021

 


            जिन जगहों पर खिलाड़ी खेल रहे होते हैं,वहां बेहतर प्रदर्शन करने के लिए खिलाड़ियों को अपनी काबिलियत के साथ साथ उन जगहों को आत्मसात भी करना होता है। जोकोविच इस बार पूरी प्रतियोगिता के दौरान लाल टी शर्ट और लाल जूते पहने रहे। मानो वे रोलां गैरों की लाल मिट्टी से एक संवाद स्थापित करने का प्रयास कर रहे हों कि मैं तुम्हारे रंग में रंग चुका हूँ। अब तुम्हें मुझे अपनाना होगा और मेरे रंग में रंग जाना होगा। और इस बार ऐसा वे कर सके।

            रविवार की शाम जब ग्रीस के स्टेफानोस सितसिपास को दो सेट पिछड़ने के बावजूद 6-7(6-8),2-6,6-3,6-2 और 6-4 से हराकर अपना कुल मिलाकर 19 वां और दूसरा फ्रेंच ओपन ग्रैंड स्लैम खिताब जीत रहे थे तो जोकोविच, फिलिप कार्टियर एरीना और उसकी लाल मिट्टी सब एकाकार हो चुके थे। बस एक ही दृश्य दिखाई पड़ता था जिसमें जोकोविच की अविस्मरणीय जीत के चटक रंगों की चकाचौंध चारों और बिखरी थी और  ऐसा दृश्य जिसमें 'तीन समान' (फेडरर,राफा,जोकोविच) में जोकोविच प्रथम जान पड़ता।

            कोई भी चीज अपनी संख्या बल पर नहीं बल्कि गुणात्मकता के कारण महत्वपूर्ण होती है।जोकोविच की ये जीत भी इसी की ताईद करती है। ये फ्रेंच ओपन में जोकोविच की केवल दूसरी जीत है,लेकिन इसने राफा की 13 जीतों का रंग मानो फीका कर दिया हो। दरअसल इस दूसरी जीत ने उसे नई ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया। ओपन इरा यानी 1968 के बाद का वो सबसे पूर्ण खिलाड़ी जो बन चुका था। वो चारों ग्रैंड स्लैम कम से कम दो बार जीतने वाला पहला खिलाड़ी जो बन चुका था।  इससे पहले सिर्फ दो खिलाड़ी रॉड लेवर और रॉय इमर्सन ऐसा कर चुके थे लेकिन ओपन एरा से पूर्व। यानि सभी सतहों पर समान रूप से अधिकार रखने वाला खिलाड़ी। निसन्देह ये एक खिलाड़ी के रूप में उसकी श्रेष्ठता का प्रमाण है। दूसरे,अब वो फेडरर और राफा के सर्वाधिक 20 खिताबों से सिर्फ एक खिताब दूर है। उसके फॉर्म को देखते हुए तो लगता है कि इसी साल वो दौड़ में सबसे आगे होगा। और ये भी कि फाइनल में 22 साल की उम्र वाला आंकड़ा भले ही सितसिपास के पक्ष में हो पर क्वालिटी जोकोविच के पास ही थी।

             दरअसल इस साल के फ्रेंच ओपन का ये संस्करण टेनिस इतिहास का एक महत्वपूर्ण काल विभाजक इवेंट होते होते रह गया। बिग थ्री के इस दबदबे वाले युग का ये पहला अवसर था जब तीनों एक ही हाफ में रखे गए थे। इनमें से केवल एक ही फाइनल में पहुंच सकता था। दूसरे हाफ में 'नेक्स्ट जेन' के सबसे बड़े खिलाड़ी मसलन सितसिपास,ज़वेरेव,मेदवेदेव थे। इस तरह ये पहली बार प्रतियोगिता के शुरू होने से पहले ही पुरनियों के जीतने की संभावना आधी हो गयी थी। ये एक महत्वपूर्ण तथ्य है। अगर यहां पर 'नेक्स्ट जेन' का खिलाड़ी विजयी होता तो निश्चय ही ये महत्वपूर्ण काल विभाजक प्रतियोगिता होती जहां से 'नेक्स्ट जेन' का दबदबा शुरू होता और बिग थ्री का ढलान। पर ऐसा हो ना सका।  जोकोविच ने बताया कि अभी 'बहुत जोर बाजुएं पुरानों में है'।

                फ्रेंच ओपन से ठीक पहले रोम ओपन के फाइनल में राफा से हारने के बाद एक पूछे गए प्रश्न के जवाब में जोकोविच ने हल्के फुल्के अंदाज़ में कहा था कि 'नेक्स्ट जेन अभी हमें ओवरटेक करने की स्थिति में है ही कहां। बल्कि हमने (यानी बिग थ्री) खुद ही 'नेक्स्ट जेन' को रीइंवेंट किया है।' फ्रेंच ओपन को जीतकर वे अपने कथन को अक्षरशः सिद्ध कर रहे थे। युवाओं को बिग थ्री के जूतों में पैर डालने में अभी और समय लगने वाला है।

              पेरिस दुनिया के सबसे खूबसूरत शहरों में से एक है और ये भी कि ये शहर दुनिया की 'फैशन राजधानी' है। और फैशन की एक विशेषता होती है चंचलता। वो हमेशा गतिमान होता है। ठहरता नहीं है। वो किसी एक वस्तु या स्थान पर निर्भर नहीं होता,उसका सहारा नहीं लेता। वो ना केवल अपना रूप बदलता है बल्कि अपने आलंब और अवलंब भी बदलता है। तो क्या उसी से प्रेरित होकर रोलां गैरों ने भी इसे अपनी विशेषता बनाया होगा। वो बड़े से बड़े खिलाड़ी को भी एक या दो बार से अधिक बार चैंपियन नहीं बनाती। उसे हर बार एक नया चैंपियन चाहिए होता है। बड़े बड़े खिलाड़ी यहां खेत रहते हैं। 20 ग्रैंड स्लैम जीतने वाला फेडरर एक बार और 19 खिताब जीतने वाले जोकोविच केवल दो खिताब जीत पाते हैं। पीट सम्प्रास,जिमी कॉनर्स,जॉन मैकनरो,बोरिस बेकर और स्टीफेन एडबर्ग जैसे दिग्गज खिलाड़ी तो इसे एक बार भी नहीं जीत पाए। हां 13 बार जीतने वाला राफा इसका अपवाद है। 

              तो क्या कारण है कि राफा इसे 13 बार जीत लेता है और बड़े बड़े खिलाड़ी एक दो बार ही जीत पाते हैं और कई बड़े नाम जीत भी नहीं पाते। दरअसल फैशन की सबसे बड़ी विशेषता उसकी कलात्मकता और उसकी कोमलता है। पॉवर भी उसका एक तत्व है पर उतना महत्वपूर्ण नहीं। शायद उसी से रोलां गैरों की मिट्टी प्रेरणा लेकर अपना चरित्र निर्माण करती है। उसे पॉवर गेम पसंद नही आता। वो कोमल एहसास से खिलखिला उठती है,ऐसा करने वाले पर न्योछावर हो हो जाती है,उसके पैरों तले बिछ जाती है और उसमें अतिरिक्त गति भर देती है। राफा ने इसे पहचाना। उसने लाल मिट्टी को मान दिया। उसकी इच्छा का सम्मान किया। उसने अपने खेल को ताकत के बजाय कलात्मकता और कोमलता दी। बदले में लाल मिट्टी ने जीत की सौगात। 

            इस बार नोवाक ने भी यही किया। नोवाक जीत सका और राफा को हरा सका तो सिर्फ इसलिए कि उसने खेल में पावर का इस्तेमाल नहीं किया। राफा के खिलाफ उसकी जीत में उसका राफा के बाएं हाथ पर आक्रमण के साथ साथ बेस लाइन से और उसके पीछे से खेलना भी था। आप जितना आगे आकर खेलते हैं ज़्यादा पावर प्रयोग करते हैं। लेकिन पीछे से खेलने पर प्लेसिंग, ट्रिक्स और टॉप स्पिन पर निर्भर होना पड़ता है। इस बार जोकोविच ने ऐसा ही किया। लाल मिट्टी से तादात्म्य स्थापित किया और बदले में जीत से बेहतर प्रतिदान लाल मिट्टी से और क्या मिल सकता था जो इस बार लाल मिट्टी के दत्तक पुत्र राफा को भी नसीब ना हो सका।



             रोलां गैरों के इस चंचल,गतिमान और कोमल स्वरूप को पहचानना हो तो इसे महिला टेनिस से अधिक अच्छी तरह से समझा जा सकता है। बीते शनिवार को जब चेक गणराज्य की 25 वर्षीय बारबोरा क्रेजीकोवा रूस की वेटेरन 29 साल की पावलिचेंकोवा को 6-1,2-6,6-4 से हरा रहीं थी तो 2017 के बाद से तीसरी अनसीडेड खिलाड़ी थीं जिन्होंने यहां खिताब जीता। यानी महिला वर्ग में भी बड़ा नाम नहीं चलता। इस बार क्वार्टर फाइनल में आठ में से छह खिलाड़ी ऐसी थीं जो पहली बार ग्रैंड स्लैम के क्वार्टर फाइनल में खेल रहीं थी। इन 6 में से ही चार सेमीफाइनल में पहुंची। पिछले 6 बार से जो भी यहां महिला खिलाड़ी चैंपियन बनी वो कोई भी ग्रैंड स्लैम खिताब पहली बार जीत रही थी।

                   दरअसल फ्रेंच ओपन का होस्ट रोलां गैरों बाकी ग्रैंड स्लैम होस्ट की तरह कृत्रिम सतह वाला न होकर प्राकृतिक सतह वाला है। शायद इसीलिए उसकी पसंद अर्जित और कृत्रिम पावर के बजाय स्वाभाविक कोमलता है। ये पावर के रेगिस्तान में कोमलता का नखलिस्तान है जो आपके जुनून और उन्माद की जगह सहज उत्साह और उमंग का संचार करता है।

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नोवाक को 19वां और क्रेजीकोवा को पहला ग्रैंड स्लैम खिताब बहुत मुबारक हो।

राकेश ढौंडियाल

  पिछले शुक्रवार को राकेश ढौंढियाल सर आकाशवाणी के अपने लंबे शानदार करियर का समापन कर रहे थे। वे सेवानिवृत हो रहे थे।   कोई एक संस्था और उस...