सुरेश रैना लीजेंड नहीं थे। बावजूद इसके वे अपने होने भर से मन मष्तिष्क पर उपस्थिति दर्ज़ कराते थे और छाए रहते थे। इसके लिए उन्हें किसी लीजेंड की तरह परफॉर्मेंस की ज़रूरत नहीं थी। दरअसल श्रेष्ठ क्षेत्ररक्षक ऐसे ही होते हैं। वे रॉबिन सिंह,मो.कैफ और युवराज की परंपरा के खिलाड़ी ठहरते हैं। गेंद और बल्ले के परफॉर्मेंस तो उनकी पहले से उपस्थिति के रंग को गाढ़ा भर करते थे।
उनमें कमाल का विरोधाभास था। वे शतक से टेस्ट क्रिकेट का आगाज़ करते हैं और शून्य से समापन। वे 11 बार 'मैन ऑफ द मैच'बनते हैं,पर अनचीन्हे रह जाते हैं। वे भारी शरीर के होने के बावज़ूद गज़ब के फुर्तीले और शानदार क्षेत्ररक्षक थे। अपनी कोमल सी मुस्कुराहट के साथ बहुत ही सौम्य नज़र आते थे, लेकिन बेहद आक्रामक बल्लेबाज़ थे। और और वे छोटे से शहर से निकलते हैं और दुनिया के दिलों पर राज करते हैं
मैदान में आंखें उन्हें खोजेंगी,पर वो नहीं होंगे। पर यही विधि का विधान है।
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गुड बाय रैना।
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