Monday 17 August 2020

अस्सी के दशक के क्रिकेट प्रेमियों का हीरो

 

           क्रिकेट खिलाड़ी और उत्तरप्रदेश सरकार में मंत्री चेतन चौहान का कल गुड़गांव के एक अस्पताल में निधन हो गया। वे 73 वर्ष के थे और कोरोना से संक्रमित थे। धोनी और रैना की अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से सन्यास की घोषणा से एक दिन पहले ही क्रिकेट जगत में जो हलचल मची थी उसे मानो चेतन चौहान की मृत्यु से फैली उदासी की चादर ने ढक कर शांत कर दिया हो। निसन्देह उनकी मृत्यु हृदय विदारक है।

              सितंबर 1969 में न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध अपना टेस्ट कॅरियर शुरू करके 2017 में उत्तर प्रदेश सरकार में दोबारा मंत्री बनने की इस यात्रा में चेतन चौहान ने  कई किरदार निबाहे। वे राजनेता थे,खेल प्रशासक थे,चयनकर्ता थे और टीम मैनेजर भी थे। बावज़ूद इन सब के सब से ऊपर उनकी पहचान एक क्रिकेटर की और एक ओपनर बल्लेबाज़ की थी। दरअसल ये उनका क्रिकेटर ही था जिसने बाकी क्षेत्रों में उनकी पहचान बनाने की बुनियाद रखी। 

                 चेतन चौहान ने कुल 40 टेस्ट मैच खेले। देखने में ये आंकड़ा बहुत बड़ा नहीं लगता। लेकिन जिस समय वे खेल रहे थे जब क्रिकेट सीजन मात्र 6 महीने का होता और कुछ ही टेस्ट मैच या सीरीज सीजन भर में होतीं, ये आंकड़ा एक ठीक ठाक वजन वाला है। 40 टेस्ट मैचों का चेतन चौहान का ये खेल सफर कहीं से भी चकाचौंध या ग्लैमर भरा नहीं लगता। जिसने अपने कॅरियर के 40 मैचों में एक भी शतक ना बनाया हो उसके बारे में क्या कहा जा सकता है! इतना घटना विहीन और लो प्रोफाइल वाला कॅरियर कुछ कहने सुनने का स्पेस देता है भला!

                   लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। कई बार घटना विहीन जीवन ही बताता है कि ऐसे जीवन के निर्माण में भी कितनी घटनाओं का योगदान होता है। वो जीवन भी कितनी संघर्षपूर्ण स्थितियों से निर्मित होता है। जैसे कभी कभी मौन सबसे ज़्यादा मुखर होता है। और कभी कभी लो प्रोफाइल भी इतना ऊंचा होता है कि आप उसकी ऊंचाई का अंदाजा भी नहीं लगा सकते। दरअसल चौहान के खेल और खेल में उनके योगदान को उन परिस्थितियों के संदर्भ में देखना चाहिए जिसमें वे खेल रहे थे।

                    चेतन चौहान का खेल कॅरियर पुणे से शुरू हुआ 1966-67 के सीजन में जब उनका चयन रोहिंटन बेरिया कप के लिए पुणे विश्वविद्यालय की टीम में हुआ और उसी वर्ष विज्जी ट्रॉफी के लिए पश्चिम क्षेत्र की टीम वे चुने गए। ये दोनों ही अंतर विश्विद्यालयी प्रतियोगिता थीं और उस समय उनकी बहुत प्रतिष्ठा थी क्योंकि इन्हें राष्ट्रीय टीम का प्रवेश द्वार माना जाता था। गावस्कर,बेदी जैसे तमाम बड़े खिलाड़ी यहीं से भारतीय टीम में शामिल हुए थे। 1967 के सीजन में इन दोनों प्रतियोगिताओं में और विशेष रूप से विज्जी ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन के कारण 1968 में महाराष्ट्र की रणजी टीम में शामिल कर लिया गया।  चौहान ने विज्जी ट्रॉफी में उस साल उत्तर क्षेत्र के खिलाफ 103 और फाइनल में दक्षिण क्षेत्र के विरुद्ध 88 और 63 रन बनाए थे। दक्षिण क्षेत्र के खिलाफ मैच में उनके ओपनर पार्टनर गावस्कर थे जिनके साथ उन्हें आगे चलकर एक दशक तक 40 टेस्ट मैचों में ओपनिंग करनी थी। 1968 में उनका चयन रणजी के साथ साथ दिलीप ट्रॉफी के लिए पश्चिम क्षेत्र की टीम में भी हो गया। इसके फाइनल में दक्षिण क्षेत्र की टीम के विरुद्ध 103 रन बनाए। यहां उल्लेखनीय है ये रन उन्होंने 5 टेस्ट गेंदबाजों के विरुद्ध बनाए थे। फलतः उनका चयन भारतीय टेस्ट टीम में हो गया और अपना पहला टेस्ट 25 सितंबर 1969 को बॉम्बे में न्यूजीलैंड के खिलाफ खेला। लेकिन वे कुछ खास नहीं कर पाए और दो टेस्ट मैच के बाद उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया। उसी सीजन में इन्हें एक बार फिर ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध खेलने के लिए टीम में चुना गया। वे इस बार भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए और एक बार टीम से निकाले गए तो अगले तीन साल टीम में वापसी नहीं कर पाए। लेकिन घरेलू क्रिकेट में धूम मचाते रहे। 1972-73 में रणजी में सर्वाधिक रन बनाने में दूसरे नंबर पर थे। इस कारण एक बार फिर वापसी की  इंग्लैंड के विरुद्ध। इस बार भी असफल रहे और इस बार अगले 5 सालों के लिए राष्ट्रीय टीम से बनवास मिला। इस बीच 1975 में वे दिल्ली चले आये और दिल्ली की टीम से खेलने लगे। घरेलू क्रिकेट में उनका अच्छा प्रदर्शन जारी रहा। 1976-77और 1977-78 के सीजन में शानदार प्रदर्शन के कारण 1977-78 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर उन्हें फिर से भारतीय टीम में जगह मिली।  1977-78 से 1981  तक का कालखंड उनके खेल जीवन का सबसे सफल समय था। उन्होंने अपना आखिरी टेस्ट मैच भी न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध 1981 में खेला। इस प्रकार उन्होंने 40 टेस्ट मैचों में 16 अर्धशतकों की मदद से 31.7 की औसत से  2084 रन बनाए।जबकि प्रथम श्रेणी के 179 मैचों में 40.22 की औसत से 11143  रन बनाए।

                 अगर ये आंकड़े देखें तो आपको बहुत औसत लगेंगे। लेकिन दोस्तों अक्सर आंकड़े बहुत भ्रामक होते हैं। वे अक्सर सही तस्वीर प्रस्तुत नहीं करते। दरअसल उनके खेल जीवन के रोमांच और रोमांस को वे लोग ही समझ और महसूस कर सकते हैं जिन्होंने टीवी के आने से पहले रेडियो कमेंट्री से क्रिकेट के रोमांच का आनंद लिया है।

                      वे एक इंडिजुअल के रूप में भले ही साधारण लगें लेकिन वे एक सफल और शानदार जोड़ीदार थे। वे दुनिया के महानतम ओपनर बल्लेबाजों में से एक गावस्कर के सबसे बड़े जोड़ीदार थे और दोनों मिलकर सहवाग और गंभीर से पहले  भारत की सबसे सफल ओपनिंग जोड़ी बनाते थे। इस जोड़ी ने 59 पारियों में 3010 बनाए जो एक रिकॉर्ड था और जिसे बाद में सहवाग गंभीर की जोड़ी ने तोड़ा। उन्होंने ये रन 53.75 की औसत से बनाए जिसमें 10 शतकीय साझेदारियां थीं। ये बात बताती है कि चौहान की और उनके खेल की क्या अहमियत थी। वे विकेट का एक सिरे थामे रहते और गेंद की चमक खत्म करते रहते और गावस्कर के लिए एक बड़े स्कोर का रास्ता बनाते। उनकी सबसे बड़ी साझेदारी 1979 में इंग्लैंड में ओवल पर  213 रन की थी जिसमें चौहान ने 80 रन बनाए। इस मैच में गावस्कर ने 221 रन बनाए थे।

                        इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि उस समय भारतीय टीम दोयम दर्जे की टीम मानी जाती थी। और चौहान ने इंग्लैंड,वेस्ट इंडीज और ऑस्ट्रेलिया जैसी सर्वश्रेठ टीमों के खिलाफ ये प्रदर्शन किया था। ये प्रदर्शन इसलिए भी याद किया जाना चाहिए कि ये दौर क्रिकेट के सबसे खौफ़नाक बॉलिंग अटैक का था और चौहान का प्रदर्शन इसी अटैक के विरुद्ध किया गया था। इसमें अटैक में शामिल हैं सरफराज,रिचर्ड हेडली,थॉमसन,लिली,एंडी रॉबर्ट्स,होल्डर,बाथम। ये वो समय था जब बल्लेबाजों के लिए रक्षा उपकरणों का चलन शुरू नहीं हुआ था। इससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि चौहान का  साधारण सा प्रोफाइल भी कितने रोमांच और संघर्ष से भरा है।

                         इसमें कोई शक नहीं कि चौहान किसी बड़ी प्रतिभा के धनी नहीं थे। उनके पास सीमित स्ट्रोक्स थे। उनके खेल की सीमाएं थीं। लेकिन वे विकेट पर टिकना जानते थे। वे विकेट पर समय बिताना जानते थे। उन्होंने पहला टेस्ट रन बनाने में 25 मिनट का समय लिया था। वे अपनी सीमाएं जानते थे। लेकिन वे कभी भी अपना विकेट गंवाते नहीं थे। उसे बॉलर को मेहनत करते लेना पड़ता था,उसे कमाना पड़ता था।

                         उनका खेल इस बात का प्रमाण है कि सीमित प्रतिभा को अपनी कड़ी मेहनत,संघर्ष और दृढ़ संकल्प से तराशा जा सकता है और उसे चमकीले नगीने में बदला जा सकता है। दरअसल वे अस्सी के दशक के उन क्रिकेट प्रेमियों के हीरो थे जिन्होंने उनकी बैटिंग का लुत्फ अपने ट्रांजिस्टर और रेडियो सेट पर जसदेव सिंह,सुशील दोषी, मुरली मनोहर मंजुल, स्कन्द गुप्त जैसे कमेंटेटरों के  आंखों देखे हाल के साथ एक्सपर्ट चंदू सरवटे के कमेंट्स के माध्यम से उठाया था।

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विनम्र श्रद्धांजलि चेतन जी। आप हमेशा हमारे दिलों में रहोगे।



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