Sunday 23 June 2019

'तुमसा नहीं देखा'



         'पूर्ण' शब्द अपने आप में बहुत ही सकारात्मक होने के बावजूद अनेक संदर्भों में  उतना ही नकारात्मक लगने लगता है। एक ऐसा शब्द जो अक्सर खालीपन के गहरे भावबोध में धकेल देता है,कुछ छूट जाने का अहसास कराता है और मन को  अन्यमनस्यकता से भर भर देता है। पिछले दिनों जब युवराज सिंह मुम्बई के एक होटल में जब अपनी मैदानी खेल पारी के पूर्ण होने की घोषणा कर रहे थे तो केवल ये घोषणा ही उनके फैन्स के दिलों में गहन उदासी और खालीपन का भाव नहीं भर रही थी बल्कि वो जगह भी,जहां वे ये घोषणा कर रहे थे,उनके दुख का सबब भी बन रही थी। निसंदेह ये नितांत दुर्भाग्यपूर्ण ही था युवराज जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी को जिस पारी के पूर्ण होने की घोषणा खेल मैदान में  गेंद और बल्ले से करनी थी वो एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में माइक के ज़रिए कर रहा था।
              यूं तो उनके खेल आंकड़े स्वयं ही बयान देते हैं कि वे भारतीय क्रिकेट के और खासकर छोटे प्रारूप वाली क्रिकेट के एक बड़े नहीं बहुत बड़े खिलाड़ी हैं। लेकिन उनका ये 'बड़ापन' इन आंकड़ों का मोहताज है ही नहीं। दरअसल वे आंकड़ों के नहीं उपस्थिति के खिलाड़ी हैं। उनका व्यक्तित्व इतना आकर्षक है कि वे मैदान पर अपनी उपस्थिति भर से दर्शकों के दिल में चुपके से घुस जाते हैं और फिर अपने सकारात्मक हावभाव,अथलेटिसिज्म और कलात्मक खेल से दिमाग पर छा जाते हैं। उनके चेहरे पर फैली  स्मित मुस्कान और मैदान पर उनकी गतिविधियों से इतनी पॉज़िटिव ऊर्जा निसृत होती कि दर्शकों के दिलोदिमाग उससे ऐसे आवृत हो जाते कि उन्हें कुछ और नहीं सूझता और उनके प्यार में पड़ जाते।
              वे एक आल राउंडर थे। आल राउंडर मने ऐसे खिलाड़ी जो खेल के हर महकमे में बराबर की दखल और दक्षता रखता हो। और उन जैसा खिलाड़ी एक शानदार आल राउंडर ही हो सकता था। वे आला दर्जे के कलात्मक बल्लेबाज़,अव्वल दर्जे के बेहतरीन क्षेत्ररक्षक और एक अच्छे गेंदबाज़ थे। एक खिलाड़ी के रूप में उनके व्यक्तित्व का कोई एक कुछ हद अनाकर्षक पहलू था तो वो उनका बॉलिंग एक्शन था अन्यथा उन्हें बैटिंग और फील्डिंग करते देखना अपने आप में किसी ट्रीट से कम नहीं होता। वे मोहम्मद कैफ और सुरेश रैना के साथ मिलकर क्षेत्ररक्षकों की ऐसी त्रयी बनाते हैं जिसने केवल फील्डिंग के दम पर भारतीय क्रिकेट की तस्वीर बदल दी। सन 2000 के बाद से क्रिकेट की सफलताओं में फील्डिंग का भी उतना ही योगदान है जितना बैटिंग और बॉलिंग का और निसंदेह इसके श्रेय का बड़ा हिस्सा युवराज के खाते में आता है। युवराज पॉइंट गली या कवर के क्षेत्र में एक ऐसी अभेद्य दीवार थे जिसे किसी भी बैट्समैन के लिए भेद पाना दुष्कर होता था। वे चीते की फुर्ती से गेंद पर झपटते और बल्लेबाजों को  क्रीज के बिल में ही बने रहने को मजबूर कर देते और यदि गलती से गेंद  हवा में जाती तो उसका पनाहगाह सिर्फ उनके हाथ होते। और जब बल्ला उनके हाथों में होता तो बाएं हाथ से बल्लेबाज़ी की सारी एलिगेंस मानो उनके खेल में साकार हो उठती। वे बॉल के जबरदस्त हिटर थे और पावर उनका सबसे बड़ा हथियार। एक ओवर में छह छक्के और 12 गेंदों में फिफ्टी उनके हिस्से में नायाब रिकॉर्ड हैं। लेकिन उनकी पावर हिटिंग  रॉ नही थी।उसमें अद्भुत लालित्य और कलात्मकता होती। वो इस कदर मंजी होती कि देखने वाले को उनके चौके छक्के बहती हवा से सहज लगते।मानो उसमे शक्ति लगाई ही नहीं। उनके कवर में पंच आंखों के लिए ट्रीट होते और और उनके पसंदीदा पुल शॉट नायाब तोहफा। 
          वे जब भी मैदान में होते गतिशील रहते,वे अदम्य उत्साह शक्ति से भरे होते, ऊर्जा उनसे छलक छलक जाती।ये उन जैसे खिलाड़ी का ही माद्दा था जो कैंसर जैसी बीमारी से लड़कर  खेल में शानदार वापसी कर सका। मां बाप के अलगाव की त्रासदी से जूझते हुए वे जिस व्यक्तित्व और और खिलाड़ी के रूप में उभरते हैं और भारतीय क्रिकेट परिदृश्य पर छा जाते हैं वो अपने आप मे बेमिसाल है।
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खेल मैदान से अलविदा भारतीय क्रिकेट के युवराज।बहुत आए और गए पर 'तुमसा नहीं देखा'।

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