ये तो तय है कि दिन के सारे निश्चय जो सांझ की संभावनाओं में डूब रहे हैं,वे अंततः रात्रि की अनिश्चितताओं में घुल जाएंगे।बस देखना ये है कि उम्मीद के जुगनू,तारे और एक चाँद सारे मिल के अनिश्चितताओं का भार भोर के नए स्वप्नों के उगने तक ढो पाते हैं कि नहीं।
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"चल ए नज़ीर इस तरह से कारवाँ के साथ।
जब तू न चल सके तो तेरी दास्ताँ चले।"
नज़ीर
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तो ये भी तय रहा कि सकारात्मक सोच हमें मानुस बनाए रखेगी।
बहुत अच्छा लिखा है आपने
ReplyDeletethank yuo so much sir
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