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टेस्ट मैच क्रिकेट खेल का मूल प्रारूप है। पांच दिन का ये प्रारूप इस खेल का सबसे शांत,उबाऊ और नफासत से भरा है जिसमें खिलाड़ी सफेद कपड़े पहनते हैं। ये रंग खेल के उस प्रारूप का सबसे प्रतिनिधि रंग है। मैदान में घास को छोड़कर सफेद जूतों व कपड़ों और हल्के क्रीम कलर या ऑफ व्हाइट कलर के बल्लों और विकटों के बीच बस एक ही चटख लाल रंग होता है गेंद का। इस प्रारूप में सफेद रंग के बीच जिस अनुपात में लाल रंग होता है,मैदान में बस उतना ही रोमांच और उत्साह होता है।
फिर टेस्ट क्रिकेट की नीरसता को तोड़ने के लिए सीमित ओवरों वाला एकदिवसीय प्रारूप आया। अब क्रिकेट में गज़ब के रोमांच और उत्साह का समावेश हो गया। नफासत की जगह भदेसपन लेने लगा। भद्रजनों का खेल आमजनों का खेल होने लगा। तो इसी के साथ रंगों का अनुपात भी बदल गया। मैदान में रंग बिखरने लगे। सफेद कपड़े रंगीन कपड़ों में बदल गए और बॉल का रंग लाल से सफेद हो गया। अब रंगीन कपड़ों के बीच जिस अनुपात में बॉल का सफेद रंग होता है मैदान में नीरसता की भी बस उतनी ही गुंजाइश बची रह गई।
लेकिन शायद अभी भी एक कमी बाकी थी। इन रंगों में चमक की कमी थी,रंगों में ग्लेज़ नही था क्योंकि खेल के रोमांच और उत्साह में ग्लैमर की कमी थी। तब फटाफट प्रारूप टी ट्वेंटी आया।इसमें रोमांच,जोश,जुनून और गति का विस्फोट हुआ और ग्लैमर का समावेश हुआ तो कपड़ों के थोड़े फीके और कम चमक वाले रंग चटक होने लगे,रंगों की चमक और ग्लेज़ सहसा ही जोश और जुनून के अनुपात में बढ़ गया।
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क्या ही कमाल है कि रंग क्रिकेट के क्रमिक बदलाव के सबसे गाढ़े प्रतीक हैं। निसंदेह ये देखना रोचक होगा कि आगे इसके और छोटे होते प्रारूप पर रंग कैसे अपना बयान बदलेंगे।
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