साक्षात्कार_1
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थ्रीश कपूर देश के जाने माने छायाकार हैं। प्रकृति के सबसे कोमल और सुकुमार चितेरे सुमित्रा नंदन पंत की जन्मभूमि कौसानी उनकी जन्म और कर्मस्थली दोनों है। शायद ये उस धरती का ही कमाल है कि वे भी प्रकृति को अपने कैमरे में उतनी ही खूबसूरती से पकड़ते हैं। वे खुद हिमालय के प्रेम में दीख पड़ते हैं।
वे हिमालय में और हिमालय उनमें घुल गया है। उन्होंने हिमालय की और उसके जीवन की अद्भुत छटा को किसी कुशल चित्रकार की तरह अपने कैमरे के माध्यम से उकेरा है। इसके लिए उन्होंने हिमालय की लंबी लंबी यात्राएं की,उसके हर रंग को कैमरे की नज़र से देखा और फिर उसे संजोया है। उनके चित्र हिमालय के सौंदर्य और उसके जीवन के जीवंत दस्तावेज हैं। उस पर कमाल ये कि वे जितने बड़े कैमरे के उस्ताद हैं उतने ही सहज और सरल इंसान। उनसे मुलाकात एक उपलब्धि की तरह है।
अभी वे दून में थे। मैंने अपने कार्यक्रम के लिए उनसे एक बातचीत रिकॉर्ड की। उनसे बातचीत की है हमारे साथी अनिल भारती जी ने। इस बातचीत का प्रसारण होगा शनिवार 4 मई को प्रातः साढ़े आठ बजे आकाशवाणी देहरादून एफ एम 100.5 मेगाहर्ट्ज़ पर।
उम्मीद है ये सिलसिला आगे भी जारी रहेगा और अपने दो बहुत ही पंसदीदा छायाकारों से आपकी मुलाकात की कोशिश रहेगी। जिस तरह थ्रीश हिमालय के छायाकार हैं डॉ सुनील उमराव संगम के छायाकार हैं। वे गंगा,और अदृश्य सरस्वती के पवित्र संगम स्थली के तपस्वी हैं। उनमें संगम क्षेत्र के हर क्षण,हर रंग,हर रूप को अपने कैमरे में समा लेने की दीवानगी है तो दूसरी ओर सर नॉस्टेल्जिया के छायाकार हैं। 'हर बीत रही चीज़' को पहचानने और कैमरे से पकड़ने की उनमें गज़ब की योग्यता और ललक है। निसंदेह उनके फोटो तमाम बीती चीजों के ऐसे प्रामाणिक दस्तावेज होंगे जिनसे इतिहास लिखा जा सकेगा।
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दोनों का भी दून घाटी में इंतज़ार।
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