Wednesday 11 July 2018

फुटबॉल विश्व कप 2018_7



जब नीले पानी ने लाल आग को ठंडा कर दिया
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याद कीजिये 1998 का विश्व कप। ये फ्रांस की धरती पर खेला जा रहा था। ठीक 20 साल और 2 दिन पहले 8 जुलाई 1998 को फ्रांस की टीम क्रोशिया को 2-1  से हराकर फाइनल में पहुंच रही थी और उसके चार दिन बाद 12 जुलाई 1998 को ब्राज़ील को 3 -1 से हराकर अपना पहला विश्व कप जीत रही थी। तब से लेकर आज तक केवल सीन और सेन नदी में ही बहुत पानी नहीं बह चुका है बल्कि पूरे यूरोप के भू-राजनैतिक दृश्य पटल में भी काफी बदलाव आ चुका है।अगर इस बीच कुछ नहीं बदला है तो एक व्यक्ति फ्रांस के दिदिए डेशचेम्प की भूमिका नहीं बदली है। 1998 में 29 वर्ष की अवस्था में वे अपने नेतृत्व में फ्रांस को विश्व कप दिलवा रहे थे और आज 49 वर्ष की अवस्था में भी वे यही काम कर रहे हैं। बस जगह में परिवर्तन हुआ है। उस समय में वे कप्तान के रूप में मैदान के अंदर थे और अब कोच के रूप में मैदान के बाहर। 1998 का कारनामा दोहराएं जाने में बस एक कदम बाकी है। लेकिन क्या ही विडम्बना है कि 1998 में उनके एक साथी थे 20 वर्षीय युवा थिअरी हेनरी। कल दिदिए डेशचेम्प के साथ वे भी उपस्थित थे। लगभग उसी भूमिका में। लेकिन उनके साथ नहीं थे। उनके सामने खड़े थे। बेल्जियम के सहायक कोच के रूप में।
          जिस समय फ्रांस ने अपना पहला विश्व कप जीता था,उससे कुछ समय पहले ही रूस से एक बयार उठी थी खुलेपन और उदारीकरण की जिसने धीरे धीरे पूरे विश्व को अपने प्रभाव में ले लिया। बाइपोलर विश्व व्यवस्था की जगह यूनिपोलर विश्व व्यवस्था आकार ले रही थी। राज्यों की सीमाओं के बंधन कम होने लगे ,बंधन टूटने लगे,जकड़नें ख़त्म होने लगी और एक ग्लोबल विलेज की संकल्पना जन्म लेने लगी। इस संकल्पना के जो परिणाम रहे हों पर पर जब ये दोनों टीमें कल मैदान में उतरी थीं तो उस भावना की सबसे बेहतरीन नुमाईंदगी कर रहीं थीं। बेल्जियम टीम के मुख्य कोच स्पाहनी थे ,सहायक कोच फ्रेंच और मुख्य स्ट्राइकर अफ्रीकी मूल के खिलाड़ी थे। तो दूसरी तरफ फ्रांस के भी एक दो नहीं बल्कि कई खिलाड़ी अफ्रीकी मूल के थे। दरअसल दोनों टीमों का एक कॉस्मिक चरित्र था  और उस भावना के प्रति शायद एक ट्रिब्यूट भी । लेकिन ये भी विडम्बना ही है कि ऐन उसी वक्त जिस विश्व कप में ये खेल रहीं थीं वो धीरे धीरे स्थानिकता में बदल रहा था। अफ्रीकी टीमें पहले ही दौर में बाहर हो गईं, एक मात्र बची एशियाई टीम प्री क्वार्टर फाइनल में बाहर हो गई,बची दोनों दक्षिण अमेरिकी टीमों ने क्वार्टर फाइनल में विदा ले ली और तब विश्व कप यूरोपीय कप में तब्दील हो गया। और जब ये दोनों टीमें कल मैदान में उतरीं तो लगा कि कोई इंग्लिश प्रीमियर लीग का कोई मैच होने को है क्योंकि कल उस लीग के 13 खिलाड़ी खेल रहे थे। 9 बेल्जियम की तरफ से और 4 फ्रांस की तरफ से।
      'लेस ब्लू' और 'रेड डेविल्स' टीमों के बीच का ये मैच दरअसल नील वर्णी पानी और रक्तिम आग के बीच मुकाबला जैसा था बिलकुल अपने नामों और जर्सी के रंग जैसा। अगर फ्रांस की टीम पानी की तरह पूरे मैदान में बहुत ही सहज और सरलता से  बहती रही और विपक्षी टीम की दरारों के बीच से बहकर गंतव्य पर निशाना साधती रही तो बेल्जियम की टीम बार बार आग सी दहकती हुई विपक्षी गोल पर भड़कती रही। खेल की शुरुआत फ्रांस ने की और पहले तीन मिनट तक गेंद पर इस तरह से कब्जा रखा कि बेल्जियम को गेंद  छूने तक को नहीं मिली मानो पानी आग  का ताप  परख रहा है। लेकिन फ्रांस का ये तीन मिनट का कब्जा किसी ज्वलनशील पदार्थ सा आग को भड़काने के लिए पर्याप्त था।  बेल्जियम की टीम ने अगले 20  मिनट तक खेल पर नियंत्रण रखा और कई बार हमले किए। आक्रमण की धार का इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता कि 21वें  मिनट तक बेल्जियम की टीम ने चार कार्नर अर्जित किए। जबकि उस समय तक फ्रांस एक भी कार्नर नहीं ले पाई थी।बेल्जियम के चौथे कार्नर पर जब बॉल पेनल्टी बॉक्स के ऊपर से डिफेंडर टोरी एल्डरवीराल्ड ने बाएं पाँव से बहुत जोरदार किक लगाई जिसका फ्रांस के गोलकीपर ने शानदार बचाव किया।अगर ये गोल होता तो प्रतियोगिता के बेहतरीन गोलों में से एक होता। इसके बाद मानो पानी को हल्का सा ढलान मिल गया हो।पानी एक बार फिर बेल्जियाई गोल की तरफ बहाने लगा। फ्रांस ने भी प्रत्याक्रमण शुरू किए और 25वें मिनट में पहला कॉर्नर लिया। आक्रमण-प्रत्याक्रमण का सिलसिला जारी रहा। लेकिन आधे समय तक कोई गोल नहीं हुआ। कुछ जानकारों का मानना था कि ये मैच टेक्निकली बेहतर होगा पर नीरस होगा,लेकिन इसके विपरीत ये प्रतियोगिता के सबसे शानदार और रोमांचक मैचों में से एक था। 

दूसरे हाफ में गतिरोध तब टूटा जब 51वें मिनट में फ्रांस के डिफेंडर उमतिति ने कॉर्नर पर हेडर से गोल किया। ये मैच विनर साबित हुआ। इसके बाद आग जैसे एक बार फिर भड़क गयी हो। बेल्जियम ने गोल करने की जोरदार कोशिश की,पर सफलता नहीं मिली। यहां  दोनों गोलकीपर और बेल्जियम के कप्तान हेजार्ड  मैच के हीरो थे। जहां दोनों  गोलकीपरों ने शानदार बचाव किये वहीं हेजार्ड ने बाए फ्लेंक से  जोरदार आक्रमण किये,पर वे फिनिश नहीं कर पाए। दरअसल बेल्जियाई कम्प्लीट टीम के रूप में विख्यात हैं। उनके खिलाड़ी पोजीशन बदल बदल कर खेलते रहे और आक्रमण करते रहे। जहाँ बेल्जियाई  लगातार आक्रमण कर रहे थे वहीं फ्रांसीसी थोड़ा डिफेंसिव खेले। उनकी रणनीति प्रत्याक्रमण की थी। वे बेल्जियम के आक्रमण को निगेट  करते और द्रुत गति से आक्रमण करते। लेकिन बेल्जियाई डिफेन्स ने उन्हें कोई मौक़ा नहीं दिया। वे केवल एक मौक़ा चूके और वही उनके लिए घातक सिद्ध हुआ। दरअसल ये बेल्जियम का दिन नहीं था। उनका बॉल पजेशन 38 प्रतिशत के मुक़ाबले 62 प्रतिशत था। बेल्जियम के खेल पर नियंत्रण को इस बात से समझा जा सकता है कि उनके 91 प्रतिशत पास सही थे। उनकी हार का कारण उनके  हीरो लुकाकू थे जिन्होंने  कई ऐसे मौके गवांए जिनमें से कई को गोल में तब्दील हो जाना चाहिए था।फिलहाल नीले रंग ने लाल रंग को हरा दिया। पानी ने आग को ठंडा कर दिया और उससे पार होकर नए गंतव्य की ओर बढ़ चला।


दरअसल बेल्जियम की इस हार ने फुटबॉल में विश्व को एक नया चैम्पियन मिलने की संभावना को क्षीण कर दिया है। ज़्यादा संभावना है कि आज के मैच में इंग्लैंड जीते। तब दो एक-एक बार के चैम्पियन आमने सामने होंगे और अपना दूसरा खिताब जीतने की कोशिश करेंगे।
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और हाँ आप माने या ना माने दक्षिण अमेरिकी टीमों का अब भी जलवा कायम है। उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। यकीन मानिये कल अगर अर्जेंटीना या ब्राज़ील की टीम में से कोई एक टीम सेंट पीटरस्बर्ग के उस स्टेडियम में खेल रही होती तो स्टैंड्स में इस कदर सीटें खाली ना होती 
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विश्व कप फुटबॉल 2018_6 

















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