कुछ इच्छाएं अधूरी रहने के लिए अभिशप्त होती हैं
--------------------------------------------------------
इस समय दुनिया भर में तमाम खेलों में उम्रदराज़ खिलाड़ी युवा खिलाड़ियों को खेल का ककहरा सीखा रहे हैं और नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं। टेनिस में लगभग 37 साल के रोज़र फेडरर और 32 साल के राफेल नडाल अपना सर्वश्रेष्ठ खेल दिखा कर एक और दो पायदान पर बने हैं और सार्वकालिक महान खिलाड़ियों की सूची में अपना नाम दर्ज़ करा रहे हैं तो 34 साल के जेम्स लेब्रोन पिछले चार सालों से एनबीए में कैवेलियर्स की टीम को अपने बूते लगभग अजेय बनाए हुए हैं। महेंद्र सिंह धोनी 37 साल की उम्र में क्रिकेट में भारत के ही नहीं बल्कि दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फिनिशर में गिने जाते हैं और लिन डान तथा साइना बैडमिंटन में रह रह कर शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। और हाँ सरदार सिंह हॉकी में ऐन इस समय अपनी सरपरस्ती में 30 साल की उम्र में भारत को चैम्पियंस ट्रॉफी के फाइनल में पहुंचा रहे हैं। तो ऐसे समय में फुटबॉल में एक 31 साल के खिलाड़ी से कुछ वैसी ही उम्मीद रखना बेमानी नहीं हो सकता। वो भी एक ऐसे खिलाड़ी से जो 5 बार 'बैलेन डी ओर' का ख़िताब जीत चुका हो,600 से ज़्यादा अंतर्राष्ट्रीय गोल कर चुका हो,जो सार्वकालिक महान खिलाड़ी माना जाता हो और लीजेंड का दर्ज़ा हासिल कर चुका हो।
लेकिन कोई नहीं। अक्सर ऐसा होता है। उम्मीदें टूट जाती हैं। सपने बिखर जाते हैं। जिसकी जिस समय सबसे ज्यादा चाहना होती है वो ठीक उसी समय हाथ से रेत की मानिंद फिसल फिसल जाती है। दरअसल कुछ चाहतें अभिशप्त हो जाती हैं जो कभी मुकम्मल होती ही नहीं। शायद मेस्सी की विश्व कप फुटबॉल का ख़िताब जीतने की और उसके लाखों चाहने वालों के लिए उसके हाथ में फीफा कप ट्रॉफी देखने की इच्छा एक ऐसी ही अभिशप्त इच्छा है जिसे अब कभी पूरा नहीं होना है।
याद कीजिए 2016 का कोपा अमेरिका कप का फाइनल। ये मेस्सी का लगातार तीसरा फाइनल था। इससे पहले 2014 के विश्व कप में जर्मन से और 2015 में कोपा कप में अर्जेंटीना की टीम चिली से हार चुकी थी। इस बार फिर हारी। पेनाल्टी शूटआउट में मेस्सी ने गेंद गोलपोस्ट के ऊपर मार दी थी। निराशा में मेस्सी के आँखों से आंसू बहने लगे थे जिसकी परिणति मेस्सी के अंतर्राष्ट्रीय खेल से संन्यास लेने की घोषणा में हुई। फ़ुटबाल जगत हतप्रभ रह गया। लेकिन कुछ इच्छाएं इतनी बलवती होती हैं वे रह रह कर उफान पाती हैं और उस उफान में सारे संकल्प बह जाते हैं। मेस्सी के साथ भी शायद कुछ ऐसा ही हुआ होगा। दो महीने बाद ही मेस्सी ने खेल में वापसी की घोषणा की। और उसके बाद मेस्सी ने अपने दम पर अर्जेंटीना को विश्व कप फाइनल्स में पहुँचाया। इक्वेडोर के विरुद्ध निर्णायक मैच में तो मेस्सी ने हैट्रिक लगाई।
और फिर देशवासियों की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में फैले लाखों प्रशंसकों की उम्मीदों का बोझ उठाए मेस्सी रूस पहुँच गए। पर उम्मीदों का बोझ इतना ज़्यादा था कि खेल का स्तर ऊंचा नहीं रख सके और आयरलैंड जैसी टीम के खिलाफ 1-1 से ड्रा मैच में पेनाल्टी गवाँ बैठे तो क्रोशिया के खिलाफ मैच 3-0 से हार गए। अब लगा अर्जेंटीना पहले ही दौर में बाहर जाने वाली है। लेकिन जब इतिहास की निर्मिति होनी होती है नियति अपना रास्ता खोज ही लेती है। उम्मीदों के बोझ से मेस्सी उबरे। अपनी रंगत में लौटे।शानदार खेल दिखाया। विश्व कप का अपना पहला गोल किया। तंजानिया को 2 -1 से हराया और अर्जेंटीना को नॉक आउट दौर में पहुँचाया।
तब एक पूर्व चैम्पियन की दूसरे पूर्व चैम्पियन से भिड़ंत तय हुई। प्री क्वार्टर फाइनल में अर्जेंटीना का फ्रांस से खेलना तय पाया गया। शनिवार के दिन दोपहर बाद तातारिस्तान की राजधानी कज़ान के कज़ान एरिना में। ये क़यामत की शाम थी जिसमें लोगों ने एक क्लासिक मैच देखा।उन्होंने उम्मीदों के उफान को देखा और उसे बहते हुए भी देखा। ये दो महाद्वीपों के बीच मुकाबला था। ये फुटबाल की दो अलग शैलियों के बीच मुकाबला था। ये उम्मीदों की विश्वास से टकराहट थी।उम्रदराज़ों का युवाओं से सामना था। अनुभव जोश के मुक़ाबिल था। कलात्मकता रफ़्तार और शक्ति से रूबरू थी। जो मुकाबला मैदान में दो टीमों के बीच हो रहा था वो लाखों लोगों के लिए मेस्सी का फ्रांस से मुकाबला बन गया था। अगर लोग अर्जेंटीना को मेस्सी के लिए जीतता देखना चाहते थे तो खुद मेस्सी अर्जेंटीना के लिए जीतना चाहता था। मेस्सी ने अपना सब कुछ झोंक दिया। उसने कुल मिला कर दो असिस्ट किये। लेकिन अर्जेंटीना और जीत के बीच 19 साल का नौजवान एमबापा आ खड़ा हुआ। उसने केवल दो गोल ही नहीं दागे बल्कि एक पेनाल्टी भी अर्जित की। उसकी गति के तूफ़ान में अर्जेंटीना का रक्षण तिनके सा उड़ गया। मेस्सी का अर्जेंटीना 4 के मुकाबले 3 गोल से हार गया। लोगों की उम्मीदें हार गई। हताश निराश मेस्सी मैदान से बाहर निकले तो एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मानो वे इस असफलता को पलटकर देखना ही नहीं चाहते थे।
निश्चित ही उस दिन बहते आंसुओं से कज़ान के वातावरण में कुछ ज़्यादा नमी रही होगी,कराहों से हवा में सरसराहट कुछ तेज हुई होगी,हार की तिलमिलाहट से सूरज का ताप कुछ अधिक तीखा रहा होगा,दुःख से सूख कर मैदान की घास कुछ ज़्यादा मटमैली हो गयी होगी और कजान एरीना से बाहर काजिंस्का नदी वोल्गा नदी से गले लग कर जार जार रोई होगी।
--------------------------------
और !
और बहुत सारे लोगों के लिए फीफा विश्व कप 2018 यहीं समाप्त हो गया होगा !
--------------------------------
विश्व कप फुटबॉल 2018_3
No comments:
Post a Comment