परजीवी
कुछ कीटाणु
कुछ विषाणु
कुछ वनस्पतियां
और एक खास प्रकार की आदमी की प्रजाति ही नहीं होते
सबसे बड़े परजीवी होते हैं हमारे दुःख
दुःख जब एक बार किसी से कर लेता है परिचय जाने अनजाने
नहीं भूलता जल्द उस को
पहले कभी कभी मिलना होता है दुःख का उस व्यक्ति से
धीरे धीरे गाढ़ा होने लगता है परिचय
फिर उसके अंदर ही बना लेता है पैठ
तब मज़े से भीतर ही भीतर जीवन रस पीकर
दुःख अपने अंदर से ही पैदा कर देता है कुछ और दुखों
कमी पड़ती है तो कुछ और दुखों को कर लेता है बहार से आमंत्रित
सिलसिला तब तक अनवरत चलता रहता है
जब तक वो व्यक्ति नहीं हो जाता मिट्टी
तब दुःख बतियाते हैं
उफ्फ ! कितना बेवफा निकला
हमने जिसका अंत तक साथ नहीं छोड़ा
उसने हमारी वफ़ा का ये सिला दिया
चलो छोड़ो इसे
कोई और ठिकाना ढूँढ़ते हैं
और उसके आँगन में अपनी महफ़िल सजाते हैं।
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