हर सुबह
जो ख़्वाहिश उग आती है
चमकते सूरज की तरह
शाम ढले
मद्धम हो बदल जाती है
चाँद में
और हर रात धीरे धीरे मरते हुए
बन के सितारा
जड़ जाती है
आकाश में
बस रोज़ यूँ ही बढ़ता जाता है
सितारों का ये जमघट
रफ्ता रफ्ता
तमाम होती
ज़िंदगी के साथ में।
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