प्रेम
आदमी के भीतर
आग सा सुलगा
बादल सा बरसा
फूल सा खिला
कांटे सा चुभा
पवन सा चला
नदी सा बहा
अमृत सा हुआ
विष सा बुझा
बचपन सा मुस्काया
बुढ़ापे सा रोया
समंदर सा गहराया
आसमान सा फैला
पक्षी सा उड़ा
पतंग सा कटा
विश्वास सा जमा
विश्वासघात सा फटा
सब हुआ किया
फिर भी क्या आदमी सा जिया।
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