Tuesday, 25 August 2015

यादें





यादें 
मन के किसी कोने में 
इकठ्ठा होती रहती हैं 
किसी ख़ज़ाने की तरह 
छन से बाहर आती हैं 
किसी कठिन समय में 
और फ़ैल जाती हैं 
मन के आकाश पर 
बचाती है आदमी को स्खलित होने से उस समय में। 

जैसे दुःख से गीले मन में 

कोई याद छन से आती है 
चटक धूप की तरह 
और सोख लेती है सारी आर्द्रता 

जैसे किसी उदास लम्हे में 

इक याद आती है 
फूलों की खुशबू लिए ताज़ा हवा के झोकों की तरह 
और बहा ले जाती है सारी उदासी  

जैसे ज़िंदगी के किसी बदरंग मोड़ पर 

छन से उड़ आती है कोई याद 
सतरंगी इन्द्रधनुष की तरह  
और रंगों से भर देती है दुनिया 

जैसे जेठ माह से गुज़रते जीवन समय में
किसी मीठे सपने की याद
सावन भादों जैसे मेघ बरसकर 
कम कर जाती है ताप  

जैसे कनपटी पर या होठों और गालों पर 
उम्र की सफ़ेद लकीरों के उभरने पर  
छन से पहले क्रश की मीठी सी याद आती है 
किसी खिज़ाब की तरह 
और कर जाती है 
नामुराद सफ़ेद लकीरों को काला 

जैसे चेहरे पर 

पकी उम्र की झुर्रियों के उग आने पर 
छन से पहले प्यार की याद 
छा जाती है चेहरे पर नूर की तरह 
और मिटा देती है सिलवटों का नामोनिशां 

दरअसल यादें भी 
बहन की गुल्लक 
मां के चुटपुटिया बटुए 
और दादी मां की ट्रंक में सहेज कर रखी पोटली की तरह 
गाढ़े समय में  
सबसे विश्वसनीय धरोहर होती हैं। 



No comments:

Post a Comment

अकारज_22

उ से विरल होते गरम दिन रुचते। मैं सघन होती सर्द रातों में रमता। उसे चटकती धूप सुहाती। मुझे मद्धिम रोशनी। लेकिन इन तमाम असंगतियां के बीच एक स...