ना जाने
ये कब
और कैसे हो गया
मुठ्ठी में करते करते आसमां
आसमां सा जीवन
मुठ्ठी सा अदना हो गया
करते करते मुठ्ठी में जहाँ
ये जीवन
खाली मुठ्ठी सा
रीत गया।
उ से विरल होते गरम दिन रुचते। मैं सघन होती सर्द रातों में रमता। उसे चटकती धूप सुहाती। मुझे मद्धिम रोशनी। लेकिन इन तमाम असंगतियां के बीच एक स...
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