अनुराग वत्स के संग्रह 'उम्मीद प्रेम का अन्न है' को पढ़ना वसंत से होकर गुजरना है। इससे होकर जाना संवेदनाओं के विविध रंगों से मन का रंग जाना है।
ये काव्यात्मक सौंदर्य की ऊष्मा और गद्यात्मक तटस्थता के शीत से बने समताप का वसंत है-
'तुम सुंदर हो
यह अनुभव किया जा सकता है
कहा नहीं जा सकता
तुम जिन वजहों से सुंदर और करीब हो
उन वजहों की भाषा में
समाई संभव नहीं है।'
००
'दोपहर बारिश हुई। बारिश इतना और यह करती है कि सब एक छत के नीचे खड़े हो जाएं। वह मेरी बग़ल में आकर खड़ी रहे। मुझे पहली बार ऐसा लगा कि उसे यहीं,ऐसे ही,बहुत पहले से होना चाहिए था। और अभी, इसे दर्ज करते हुए यह इच्छा मेरे भीतर बच रहती ही कि हर बारिश में वह मेरे साथ हो।'
ये मुस्कानों के ताप और उदासियों के शीत से बना वसंत है। ये प्रेम की ऊष्मा और इतर संवेदनाओं के शीत से बने समताप का वसंत है -
'तुम्हारे चेहरे पर इकलौता तिल
जैसे सफ़ेद सफ़े पर स्याही की पहली बूँद
कविता का पहला शब्द :
तुम।'
००
'हम प्रेम करते हुए अक्सर अकेले पड़ जाते हैं। दुःख इस बात का नहीं कि यह अकेलापन असह्य है। दुःख इस बात का है कि इसे सहने का हमारा ढंग इतना बोदा है कि वह आलोक तक हमसे छिन जाता है, जो प्रेम के सुनसान में हमारे साथ चलता।'
इस संग्रह को पढ़ना वसंत के भीतर वसंत को महसूस करना है जिसमें प्रेम और इतर अनुभूतियों के विविध रंगी फूल मन के भीतर खिलते और झरते रहते हैं। इस वसंत प्रेम के इस संग्रह को पढ़ने से बेहतर और क्या हो सकता है कि
'तुम बहुत देर से आईं मेरी पंक्ति में
जैसे बहुतेरे शब्दों के बाद आता है
दुबला-लजीला पूर्ण-विराम
पिछले बाक़ी का अर्थ-भार सम्भालता
प्रेम के पन्ने पर सबसे अन्तिम अंकन।'
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