Tuesday, 11 March 2025



नुराग वत्स के संग्रह 'उम्मीद प्रेम का अन्न है' को पढ़ना वसंत से होकर गुजरना है। इससे होकर जाना संवेदनाओं के विविध रंगों से मन का रंग  जाना है।


ये काव्यात्मक सौंदर्य की ऊष्मा और गद्यात्मक तटस्थता के शीत से बने समताप का वसंत है- 


'तुम सुंदर हो

यह अनुभव किया जा सकता है

कहा नहीं जा सकता

तुम जिन वजहों से सुंदर और करीब हो

उन वजहों की भाषा में 

समाई संभव नहीं है।' 

००

'दोपहर बारिश हुई। बारिश इतना और यह करती है कि सब एक छत के नीचे खड़े हो जाएं। वह मेरी बग़ल में आकर खड़ी रहे। मुझे पहली बार ऐसा लगा कि उसे यहीं,ऐसे ही,बहुत पहले से होना चाहिए था। और अभी, इसे दर्ज करते हुए यह इच्छा मेरे भीतर बच रहती ही कि हर बारिश में वह मेरे साथ हो।' 


 ये मुस्कानों के ताप और उदासियों के शीत से बना  वसंत है। ये प्रेम की ऊष्मा और इतर संवेदनाओं के शीत से बने समताप का वसंत है - 


'तुम्हारे चेहरे पर इकलौता तिल

जैसे सफ़ेद सफ़े पर स्याही की पहली बूँद

कविता का पहला शब्द :

तुम।' 

००

'हम प्रेम करते हुए अक्सर अकेले पड़ जाते हैं। दुःख इस बात का नहीं कि यह अकेलापन असह्य है। दुःख इस बात का है कि इसे सहने का हमारा ढंग इतना बोदा है कि वह आलोक तक हमसे छिन जाता है, जो प्रेम के सुनसान में हमारे साथ चलता।' 


इस संग्रह को पढ़ना वसंत के भीतर वसंत को महसूस करना है जिसमें प्रेम और इतर अनुभूतियों के विविध रंगी फूल मन के भीतर खिलते और झरते रहते हैं। इस वसंत प्रेम के इस संग्रह को पढ़ने से बेहतर और क्या हो सकता है कि


'तुम बहुत देर से आईं मेरी पंक्ति में

जैसे बहुतेरे शब्दों के बाद आता है

दुबला-लजीला पूर्ण-विराम

पिछले बाक़ी का अर्थ-भार सम्भालता

प्रेम के पन्ने पर सबसे अन्तिम अंकन।'

Monday, 10 March 2025

चैंपियन



खेलों में हार जीत लगी रहती है। पर ये दिल ओ दिमाग पर प्रभाव ना डालें, ऐसा नहीं हो सकता। वे बहुत गहरे से मन में पैठ जाती हैं। फिर हार हो या जीत। कोई एक जीत बहुत सारे जख्मों पर मरहम का काम करती है। घायल ईगो को सहलाती है। पिछली उदासियों को मुस्कान में तब्दील कर देती है। ठीक वैसे ही जैसे कोई एक हार दिल पर गहरी चोट कर जाती है। मन पर उदासियों को पसार देती है। खेल में ऐसा होता है। 

रविवार नौ मार्च की रात दुबई के इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम में भारत की क्रिकेट टीम एक इतिहास रच रही थी। आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी के बहुत ही रोमांचक और उतार चढ़ाव भरे फाइनल में न्यूजीलैंड को चार विकेट से हराकर भारतीय टीम तीसरी बार ये चैंपियनशिप जीत रही थी। इससे पहले भारत 2002 में चैंपियंस ट्रॉफी का श्रीलंका के साथ संयुक्त विजेता था और उसके बाद 2013 में दूसरा खिताब जीता था। 

ये एक तरह का स्वीट रिवेंज था। याद कीजिए 2000 की दूसरी चैंपियंस ट्रॉफी का फाइनल जो नैरोबी केन्या में खेला गया था। उसमें भी भारत और न्यूजीलैंड आमने सामने थे। न्यूजीलैंड की टीम 264 रनों का पीछा करते हुए 132 रनों पर पांच विकेट खो चुकी थी। लेकिन क्रिस केर्न्स के नाबाद 102 रन और क्रिस हैरिस के साथ 122 रनों की साझेदारी ने भारत को चैंपियंस ट्रॉफी जीतने से वंचित कर दिया था। लेकिन इस बार न्यूजीलैंड इतिहास को ना दोहरा सका।


इससे पहले पहले ही मैच में भारत ने पाकिस्तान को हराया था। पाकिस्तान पहले मैच में न्यूजीलैंड से हार चुका था। मेजबान बाहर हो चुका था। भारत की सेमीफाइनल की जीत ने ट्रॉफी को भी पाकिस्तान से बाहर कर दिया था। जिस समय भारत की टीम न्यूजीलैंड को हराकर ये ट्रॉफी जीत रही थी तो उनकी यादों में इस ट्रॉफी का पिछला फाइनल भी तैर रहा होगा। 18 जून 2017 को खेले गए फाइनल में पाकिस्तान के विरुद्ध हार गए थे। उस समय कप्तान कोहली थे भारतीय खिलाड़ियों के चेहरे उतरे हुए थे और कंधे झुके हुए। वो हार कप्तान विराट कोहली के साथ-साथ हर भारतीय क्रिकेट प्रेमी के दिल में चुभी थी। लेकिन इस बार पहले ही मैच में उसे हरा दिया। ये जीत सामान्य जीत से कहीं अधिक स्वीट थी या उन्हें महसूस हुई होगी।

 जब वे सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हरा रहे थे जरूर उनके जहां में 2024 का विश्व कप क्रिकेट का फाइनल घूम रहा होगा जिसमें ऑस्ट्रेलिया ने भारत को हरा दिया था। निश्चित रूप से ये जीत सामान्य से कुछ अधिक रही होगी। कई बार जीत और हार सामान्य से कुछ अधिक हो जातीभाईं ठीक वैसे ही जैसे कुछ खास प्रतिद्वंदियों के विरुद्ध जीत और हार सामान्य से कुछ अधिक होती है। 

निःसंदेह ये जीत कई मायनों में सामान्य से अधिक ही थी।

आज एक बार फिर भारतीय कप्तान रोहित शर्मा टॉस हार गए। न्यूजीलैंड के कप्तान सेंटनर ने जीता और बैटिंग करने का फैसला किया। उनका ये फैसला उनके ओपनर बल्लेबाजों के ताबड़तोड़ खेल से सही साबित किया। सलामी बल्लेबाज विल यंग और रचिन रविंद्र की जोड़ी ने आठ ओवरों में ही 57 रन की साझेदारी की। 



तब इस टूर्नामेंट में भारत के संकटमोचक बने वरुण चक्रवर्ती ने भारत को पहली सफलता दिलाई। उन्होंने यंग (15) को पवेलियन का रास्ता दिखाया। रचिन रविंद्र 29 गेंद में 37 रन बनाकर आउट हुए। कुलदीप ने उन्हें क्लीन बोल्ड किया। उसके बाद जल्द ही केन विलियमसन को भी 11 रन पर चलता कर दिया। टॉम लैथम ने 30 गेंद में 14 रन का योगदान दिया। ग्लेन फिलिप्स ने 34 रन की पारी खेली। 46 वें ओवर में मोहम्मद शमी ने डैरिल मिचेल को आउटकर भारत को बड़ी सफलता दिलाई। डैरिल मिचेल ने 101 गेंदों में तीन चौके लगाते हुये 63 रनों की जूझारू पारी खेली। सातवें विकेट के रूप में 49वें में कप्तान मिचेल सैंटनर आठ रन बनाकर आउट हुए। माइकल ब्रेसवेल ने 40 गेंदों में तीन चौके और दो छक्के लगाते हुए नाबाद 53 रनों की महत्वपूर्ण पारी खेली। न्यूजीलैंड ने निर्धारित 50 ओवरों में सात विकेट पर 251 रन का स्कोर खड़ा किया। उन्होंने आखिरी पांच ओवरों में 50 रन जोड़े और और टीम को ढाई सौ के पार पहुंचाने में मदद की।

भारत की ओर वरूण चक्रवर्ती और कुलदीप यादव ने दो-दो विकेट लिये। रविंद्र जडेजा और मोहम्मद शमी ने एक-एक बल्लेबाज को आउट किया। आज पिच ने तेज गेंदबाजों का साथ नहीं दिया। वे खासे महंगे साबित हुए और निष्प्रभावी भी। शामी ने नौ ओवरों में 74 रन और हार्दिक ने तीन ओवरों में तीस रन दिए। लेकिन तेज गेंदबाज जितने महंगे और निष्प्रभावी साबित हुए स्पिनर्स ने उतनी प्रभावी और शानदार गेंदबाजी की और न्यूजीलैंड को एक बड़ा स्कोर बनाने से रोक दिया। स्पिनर्स ने कुल मिला कर 38 ओवर फेंके जो भरता की और से किसी भी एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच तीसरे सबसे ज्यादा फेंके गए ओवर्स थे। आज भारत की फील्डिंग भी अच्छी नहीं रही। उन्होंने कुल मिलाकर महत्वपूर्ण मौकों पर चार महत्वपूर्ण कैच छोड़े।अन्यथा न्यूजीलैंड की पारी पहले ही सम्मत हो गई होती।

ब्लैककैप्स के खिलाफ 252 रनों का पीछा करते हुए  भारत ने भी शानदार शुरुआत की। उन्होंने बिना विकेट खोए 100 रन बनाए। न्यूजीलैंड की तरफ से भी के तेज गेंदबाज ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाए। लेकिन जैसे ही स्पिनर्स परिदृश पर आए उन्होंने ना केवल भारत की रंगती पर अंकुश लगाया बल्कि  जल्द जल्द तीन विकेट लेकर मैच में वापसी की। पहले शुभमन गिल गए। फिर एक रन बनाकर कोहली भी आउट हो गए। उसके बाद जल्द ही रोहित शर्मा के 76 रनों की शानदार पारी खेलकर बड़ा हिट लगाने के चक्कर में आउट हो गए। तीन विकेट लेकर न्यूजीलैंड ने मैच में वापसी की। लेकिन श्रेयस अय्यर और अक्षर पटेल ने 61 रनों की एक अच्छी साझेदारी की और भारत की वापसी करा दी। लेकिन मैच खत्म हो पाता कि 183 रनों के कुल स्कोर पर 48 रनों की महत्वपूर्ण पारी खेलकर श्रेयस अय्यर आउट हो गए। इस पूरी प्रतियोगिता में श्रेयस ने शानदार बल्लेबाजी की और रचित रविन्द्र के बाद सांसे अधिक रन बनाए। पहले अक्षर पटेल के साथ और फिर हार्दिक पंड्या के साथ महत्वपूर्ण के एल राहुल साझेदारी की और  नाबाद 34 रनों की महत्वपूर्ण पारी की बदौलत भारत को चार विकेट से जीत दिला दी।

मैन ऑफ द मैच का खिताब रोहित शर्मा को और मैन ऑफ द टूर्नामेंट का खिताब न्यूजीलैंड के के रचिन रविन्द्र को मिला। रचिन ने टूर्नामेंट में सर्वाधिक 263 रन बनाए और पांच से भी कम की औसत से गेंदबाजी करते हुए तीन विकेट भी लिए।

प्रतियोगिता का आरंभ 19 फरवरी को मेजबान पाकिस्तान और न्यूजीलैंड  के बीच ग्रुप ए के मैच से हुआ था। इस मैच में न्यूजीलैंड ने पाकिस्तान को 60 रनों से हरा दिया। इस ग्रुप की दो अन्य टीमें भारत और बांग्लादेश की थीं। भारत ने अपने सभी मैच दुबई में खेले। अपने पहले ग्रुप मैच में भारत ने बांग्लादेश को छह विकेट से हराकर साहंदार शुरुआत की। उसके बाद दूसरे मैच में पाकिस्तान को भी आसानी से छह विकेट से हरा दिया। तीसरे और अंतिम ग्रुप मैच में न्यूजीलैंड को 44 रनों से हराया और इस प्रकार भारत ने अपने तीनों मैच जीतकर अपने ग्रुप में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। जबकि न्यूजीलैंड ने दो मैच जीतकर दूसरा स्थान प्राप्त किया। 

ग्रुप बी में ऑस्ट्रेलिया,दक्षिण अफ्रीका,अफगानिस्तान और इंग्लैंड की टीम थीं।  ग्रुप स्टेज में दक्षिण अफ्रीका ने बेहतरीन खेल दिखाते हुए पहले स्थान पर और ऑस्ट्रेलिया दूसरे स्थान पर रहीं और सेमीफाइनल के लिए क्वालीफाई किया। इस ग्रुप में अफगानिस्तान की टीम ने भी शानदार खेल दिखाया और इंग्लैंड को हरा दिया लेकिन ऑस्ट्रेलिया से पीछे रहकर नॉकआउट के लिए क्वालीफाई नहीं कर सकी।

पहला सेमीफाइनल भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुआ। ऑस्ट्रेलिया की टीम पहले बैटिंग करते हुए 49.3ओवर में  264 रनों पर आउट हो गई। 265 रनों का पीछा करते हुए कोहली के शानदार शतक की बदौलत 11गेंदे शेष रहते हुए 6विकेट पर 267 रन बनाकर मैच चार विकेट से जीतकर फाइनल में प्रवेश किया।

दूसरा सेमीफाइनल न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के बीच खेला गया। इस मैच में  पहले बल्लेबाजी करते हुए न्यूजीलैंड ने  06 विकेट खोकर 362 रनों का विशाल स्कोर खड़ा किया। इस लक्ष्य को पाने की कोशिश में दक्षिण अफ्रीका की टीम निर्धारित 50 ओवरों में  09 विकेट पर 312 रन ही बना सकी और न्यूजीलैंड ने 50 रनों से शानदार जीतकर फाइनल में प्रवेश किया।

इस तरह फाइनल में न्यूजीलैंड को हरा कर रोहित शर्मा की कप्तानी वाली भारतीय क्रिकेट टीम रविवार 09 मार्च को इतिहास रच दिया है। भारत 12 साल बाद आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल जीतकर अपने नाम लगातार दो आईसीसी खिताब अपने नाम किए। 10 महीने पहले भारत ने रोहित  की ही कप्तानी में आईसीसी टी20 वर्ल्ड कप अपने नाम किया था। 

इस प्रतियोगिता की भारत सबसे सफल टीम है जिसने ये तीन बार जीती है। ऑस्ट्रेलिया ने इसे दो बार जीता है। इसके अलावा श्रीलंका,दक्षिण अफ्रीका,पाकिस्तान और वेस्टइंडीज ने एक एक बार जीत हासिल की है।

Thursday, 6 March 2025

अलविदा प्रिय पैडी

 



सुनील गावस्कर ने अपनी किताब 'आइडॉल्स' में अपने पसंदीदा क्रिकेटर्स के बारे में लिखा है। इनमें से 22वें नंबर पर पद्माकर शिवालकार और 23वें नंबर पर राजेंद्र गोयल हैं। इन दोनों को ही उन्होंने बहुत ही शिद्दत से याद किया है। राष्ट्रीय फलक पर अपने हुनर से चमक बिखेरने वाले ये दोनों ऐसे हुनरमंद सितारा स्पिनर्स थे जिन्हें नियति ने क्रिकेट के अंतर्राष्ट्रीय फलक पर अपनी जवांमर्दी दिखाने से महरूम कर दिया।

ये वो समय था जब स्पिन गेंदबाजी की कला अपने चरम पर थी। बेदी, प्रसन्ना,चंद्रशेखर और वेंकट राघवन की चौकड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी घुमावदार और उड़ान वाली गेंदों से स्पिन गेंदबाजी की वेस्टइंडीज,इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की खौफनाक तेज गेंदबाजी के बरक्स एक अलहदा छवि बना रही थी। वे चारों खौफ के बजाए ललचा-ललचा कर बल्लेबाजों को छका रहे थे। 

और जिस समय ये चौकड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर ये काम कर रहे थे,ठीक उसी समय भारत के दो और गेंदबाज पद्माकर शिवालकर और राजिंदर गोयल का युग्म राष्ट्रीय स्तर पर उसी काम को अंजाम दे रहे थे। दरअसल उस महान चौकड़ी के समानांतर स्पिन गेंदबाजी के एक प्रति संसार की निर्मिति कर रहे थे। इस युग्म द्वारा रचा जा रहा संसार योग्यता और स्पिन कला कौशल में चौकड़ी द्वारा निर्मित दुनिया की आभा से ज़रा भी कम ना था। बस कुछ कम था तो नियति के साथ का अभाव भर था। योग्यता और प्रतिभा की आभा दोनों जगहों पर एक सी थी। पर एक में खुशकिस्मती की चमक थी दूसरे में बदकिस्मती की छाया। एक प्रसिद्धि से गमक गमक जाता। दूसरा कुछ ना मिल पाने की उदास छाया से आच्छादित रहता। 

उन दोनों को देखकर समझा जा सकता है कि एक मौका मिलने और ना मिलने भर से जीवन में कितना बड़ा अंतर आ जाता है या आ सकता है। कई बार होता है आप एक गलत समय पर पदार्पण करते है। शायद उन दोनों की ये बदकिस्मती थी कि वे बिशन सिंह बेदी के समकालीन थे। अगर नियति उन दोनों पर मेहरबान हुई होती तो हम एक दूसरा इतिहास पढ़ रहे होते। प्रभूत क्षमता और प्रतिभा होने के बाद भी भारत की ओर से खेलने का उन्हें एक मौका नहीं मिला। दोनों की नियति एक थी। दोनों की त्रासदी एक थी। दोनों यूं ही बीत गए,रीत गए,जाया हो गए।

पर वे दोनों घरेलू क्रिकेट के उस्ताद खिलाड़ी थे। दोनों वामहस्त धीमी गति के ऑर्थोडॉक्स लेग स्पिनर। ये उन चार खिलाड़ियों में से थे जिन्हें बिना टेस्ट खेले बीसीसीआई के सी के नायडू लाइफ टाइम पुरस्कार से नवाजा गया। दो ऐसे खिलाड़ी जिन्हें बिना भारत की ओर से खेले गावस्कर की किताब  'आइडॉल्स' में जगह मिली।

राजिंदर गोयल का निधन 2020 में हुआ और अब 03 मार्च 2025 को 84 साल की उम्र में शिवालकर ने इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कहा।

पद्माकर शिवालकर क्या ही प्रतिभाशाली रहे होंगे कि जब पहली बार उन्होंने ट्रायल दिया तो उन्होंने क्रिकेट की गेंद को छुआ भी नहीं था। वो उस समय तक केवल टेनिस बॉल से खेला करते थे। उन दिनों उन्हें काम की जरूरत थी और बीनू मांकड़ को अपनी फैक्ट्री टीम के लिए खिलाड़ियों की। उन्होंने शिवालकर को चुना और कहा 'मेरी या किसी और की शैली की नकल ना करना।' उस युवा ने इस बात की गांठ बांध ली। अपनी खुद की शैली ईजाद की और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

उन्होंने 1961-62 में पहली बार प्रथम श्रेणी मैच खेला और 1987-88 तक 48 वर्ष की उम्र तक खेलते रहे। उन्होंने इस दौरान कुछ 124 मैचों में 19.69 की औसत से 589 विकेट और 16 विकेट लिस्ट ए मैचों में लिए।

एक गेंदबाज के रूप में पलक झपकते विपक्षी टीम को ध्वस्त करने की अद्भुत क्षमता थी उनमें। उनकी सबसे शानदार गेंदबाजी का उदाहरण 1973 का रणजी फाइनल है। ये फाइनल मैच चेन्नई के  चेपॉक स्टेडियम में मुंबई और तमिलनाडु के बीच खेल गया था। पिच वेंकटराघवन और वी वी कुमार के अनुकूल थी। मुंबई की पहली पारी 151 रन पर सिमट गई और तमिलनाडु ने पहले दिन के खेल की समाप्ति पर दो विकेट पर 62 रन बना लिए थे और बड़ी बढ़त लेने के लिए तैयार दिख रहा था। उस समय माइकल दलवी और अब्दुल जब्बार की साझेदारी ने 56 रन बनाए थे। पर अगले दिन शिवालकर जब गेंदबाजी करने आये और पहली गेंद तेजी से घूमी और उछली तो उस टीम के सदस्य कल्याण सुंदरम बताते हैं कि उस गेंद को देखते ही तमिलनाडु टीम को आभास हो गया था कि जल्द ही सभी का बैटिंग नंबर आने वाला है। और ये आशंका सही साबित हुई। बाकी के आठ विकेट केवल 18 रन जोड़ सके और तमिलनाडु की टीम 80 रन पर ऑल आउट हो गई। उस इनिंग में शिवालकर ने 16 रन पर 08 विकेट लिए और दूसर पारी 18 रन देकर 05 विकेट। पांच दिन का मैच दो दिन में खत्म हो गया।

एक स्पिन गेंदबाज के दो प्रमुख विशेषता होती हैं। एक, हवा में उड़ान और लूप। दूसरी, पिच से गेंद का घुमाव। वे फ्लाइट और लूप के मास्टर गेंदबाज थे। वे एक और तो हवा में गेंद की उड़ान से बल्लेबाज को भरमाते,तो दूसरी और वे अपनी गेंद की गति और लंबाई से बल्लेबाजों को परेशान करते। बल्लेबाजों को स्टंप आउट कराना उनका सबसे प्रिय शगल था और खासियत भी।

वे एक शानदार और सफल गेंदबाज थे। उन्होंने 13 बार दस या दस से अधिक विकेट लिए और 42 बार एक पारी में पांच या पांच से अधिक विकेट लिए। इस सब के बावजूद वे भारतीय टीम के लिए नहीं चुने जा सके। इसका उन्हें हमेशा मलाल रहा। और इसे हमेशा उन्होंने बहुत शिद्दत से महसूस किया।

एक कहावत है 'सफलता से अधिक सफल कुछ नहीं होता'। इस बात को सबसे ज्यादा वही समझ सकता है जिन्हें सफलता नहीं पाई हो। वे अपनी सारी योग्यता और प्रतिभा के बावजूद भारतीय टीम में जगह ना बना पाने की असफलता और उससे उपजी निराशा को और सफलता की ऊष्मा को और उसके महत्व को शिवालकर से बेहतर भला और कौन समझ सकता है। 


और उनकी इस निराशा और उदासी को सबसे अधिक उनके गायन में महसूस की जा सकती है। 

वे एक शानदार प्रोफेशनल गायक भी थे। पक्के गायक। अगर वे क्रिकेटर ना होते तो शायद वे एक सफल और शानदार गायक होते। उन्होंने अपने कुछ गीतों में कहा है कि कैसे एक व्यक्ति का भाग्य  उसके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है रूप से 'हा चेंदु दैवगतिचा......' गीत में। जब वे ये गीत गाते तो अहसास होता है कि मानो वे अपना जीवन गा रहे हों। कितनी शिद्दत से उनका दर्द उस गीत में छलक छलक जाता है। जब वे गाते हैं तो लगता है उसमें उन्होंने अपनी आत्मा का समावेश कर दिया है। ये उनके जीवन का मानो थीम गीत हो - 


"भाग्य का यह चक्र निरंतर घूमता रहता है, 

कभी ऊँचाइयों तक ले जाकर तो 

कभी किसी का जीवन बिखेरकर। 


यह समय की चाल कैसी है, 

इसे कोई नहीं समझ पाया। 

जब भी कुछ होता है, 

लोग बिना सोचे-समझे दोषारोपण करने लगते हैं और हज़ारों ज़ुबानें बड़बड़ाने लगती हैं।


इस भाग्य के खेल को ज़रा करीब से देखो

जिस तरह समुद्र में नावें छोड़ी जाती हैं 

और लहरों की मार से उनकी परीक्षा होती है, 

वैसे ही जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं। 

जो इन लहरों से लड़ने की ताकत रखते हैं,

 वे विजयी होते हैं, 

तो कुछ लोग इन्हीं लहरों में समा जाते हैं।


परंतु यह सब तो जीवन का स्वाभाविक क्रम है, फिर दुखी होने से क्या लाभ?

जो भी सुख के पल हमारे पास बचे हैं, उन्हें प्रेम और सहेज कर रखो।

इन्हीं सुखद पलों से जीवन का मधुर संगीत बनता है, जो हमें आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।"


बाद में उन्होंने 'हा चेंदु दैवगतिचा' (समय का ये चक्र) नाम से किताब भी लिखी। सच में वे समय के चक्र में फंसे थे और नियति का शिकार थे। वे इसे जानते समझते थे और इसको शिद्दत से महसूस करते थे। एक उदास संगीत हमेशा उनके जीवन के पार्श्व में बजता था। उसकी लय पर उनका जीवन थिरकता था।

क्या ही विडंबना है कि जिसने गेंद की उड़ान को साध लिया हो, जो गेंद की उड़ान का जादूगर हो,उसका साधक हो,नियति ने उसे उड़ने न दिया। उसे उन ऊंचाइयों से महरूम कर दिया जिन ऊंचाइयों का वो हकदार था और जिन ऊंचाइयों को वो छूना चाहता था।

पर कुछ जीवन अपूर्ण इच्छाओं को लिए ही पूर्ण हो जाते हैं। पद्माकर शिवालकर भी गेंदबाजी के एक ऐसे ही साधक थे जिनकी बहुत सी इच्छाएं अपूर्ण ही रहनी थी।  शायद उनकी महानता इस अपूर्णता से ही बनती है और वे इसीलिए याद किए जाते रहेंगे।

अलविदा प्रिय पैडी।


अ नुराग वत्स के संग्रह 'उम्मीद प्रेम का अन्न है' को पढ़ना वसंत से होकर गुजरना है। इससे होकर जाना संवेदनाओं के विविध रंगों से मन का र...