Tuesday 10 March 2020

सुपर वीमेन इन ब्लूज

    
ये आठ मार्च का दिन था। यूं तो उस दिन भी सूरज आम दिनों की तरह ही उगा था। पर उस दिन फ़िज़ाओं में उम्मीदों का गुलाबी रंग थोड़ा ज्यादा ही चारों तरफ फैला था। ये अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस था। उनके हक हकूकों के मानने मनाने का दिन जो था। उस दिन में बहुत सारे लोगों को और विशेष रूप से खेल प्रेमियों को ये उम्मीद भी थी कि फ़िज़ाओं में घुला ये गुलाबी रंग कुछ और गाढ़ा होकर लोगों के चेहरों से होता हुआ उनके दिलों पर फैल जाएगा। पर अक्सर जब उम्मीद ज़्यादा होती है वो टूट जाती है।उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ। जैसे जैसे सूरज ढल रहा था गुलाबी रंग चेहरों की उदास रंगत सा फीका सा होता जा रहा था।
उस दिन भारतीय बालाएं मेलबोर्न क्रिकेट ग्राउंड में एक इतिहास रचने उतरी थीं पर रचते रचते रह गईं। ये महिला क्रिकेट टी 20 विश्व कप का फाइनल मैच था। भारत की टीम पहली बार इस प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंची थी और यहां उसका मुकाबला चार बार की विश्व चैंपियन मेज़बान ऑस्ट्रेलिया की टीम से था। निःसंदेह पलड़ा ऑस्ट्रेलिया के पक्ष में था। लेकिन भारत की उम्मीदें भी हवा हवाई नहीं थीं। वे हवा में नहीं तैर रही थीं बल्कि ठोस ज़मीन पर खड़ी थीं। वो उस समय तक प्रतियोगिता में अपराजित टीम थी। अपने पहले ही मैच में उसने अपने इसी प्रतिद्वंद्वी को 17 रनों से मात देकर इस विश्व कप में अपने अभियान की शानदार शुरुआत की थी और अनुभव तथा युवा जोश से संतुलित टीम उत्साह से लबरेज थी।
पर शायद ये भारत का दिन नहीं था।  लड़कियां बड़े अवसर के दबाव को झेलने में असमर्थ रहीं और मुकाबला आसानी से 85 रनों से हार गईं। निसंदेह  ये बड़ा नहीं बल्कि बहुत बड़ा मुकाबला था। और इतने बड़े अवसर के प्रेशर को हैंडल कर पाना जीवट का काम होता है। ये महिला खेल इतिहास का अगर सबसे बड़ा नहीं था तो सबसे बड़े मुकाबलों में से एक तो निश्चित था। इस मैच को देखने के लिए 86154 दर्शक मैदान में उपस्थित थे। और दर्शकों के लिहाज से महिला खेल इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा इवेंट था। इससे ज़्यादा दर्शक केवल 1999 में अमेरिका  के कैलिफोर्निया स्थित रोज़ बाउल में महिला फीफा वर्ल्ड के फाइनल में उपस्थित थे। ये मैच अमेरिका और चीन के बीच खेला गया था और अमेरिका चैंपियन बना था। इसमें उपस्थित दर्शकों की आधिकारिक संख्या 90185 थी। 
उस दिन भारत के हर दर्शक को उम्मीद थी कि 8 मार्च 2020 का दिन 25 जून 1983 में इतिहास को दोहराएगा जब पुरुषों की टीम ने वेस्टइंडीज की मजबूत टीम को हरा कर पहली बार विश्व कप जीता था और ये भी कि मेलबोर्न का क्रिकेट मैदान लॉर्ड्स के मैदान में तब्दील हो जाएगा। मैदान तो लॉर्ड्स में तब्दील ज़रूर हुआ और उसने वहां लिखे इतिहास को भी दोहराया। पर जिस इतिहास को दोहराया उसकी तारीख बदल गई थी। उस दिन मेलबोर्न के मैदान पर लॉर्ड्स में 23 जुलाई 2017 को लिखे इतिहास को दोहराया गया जब एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट विश्व कप प्रतियोगिता में पहली बार खेल रही भारत की महिला क्रिकेट टीम एक करीबी मुकाबले में मेजबान इंग्लैंड से 9 रनों से हार गई थी।
हम भारतीय शगुन अपशगुन में बहुत विश्वास करते हैं। और उस दिन भी ऐसा ही हुआ। भारत की कप्तान टॉस हार गई। शायद ये अपशगुन ही था। यहीं से लड़कियों के कंधे ढीले होने शुरू हो गए थे। भारत की ओर से शुरुआत ऑफ स्पिनर दीप्ति शर्मा ने की।उन्होंने पहली तीन गेंद फुलटॉस की। उसके बाद भी पाँचवी गेंद पर एलिसा हीली कवर में कैच थमा बैठी। पर शिफाली वर्मा ने कैच छोड़ दिया। दरअसल ये सिर्फ एक कैच का छूट जाना भर नहीं था बल्कि उस मैच में जीत का  छिटक जाना था, विश्व चैंपियन बनने के अवसर को छोड़ देना भी था और एक सपने का टूट जाना भी था। अगर ये कैच पकड़ लिया गया होता तो कहानी दूसरी हो सकती थी। जल्द। ही एक अवसर और मिला लेकिन इस बार पांचवें ओवर में   राजेश्वरी गायकवाड़ ने अपनी ही गेंद पर बेथ मूनी का कैच छोड़ दिया।  इसके बाद ऑस्ट्रेलिया ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। एलिसा ने शानदार खेल दिखाया और 39 गेंदों पर 75 रन बनाकर आउट हुईं उस समय ऑस्ट्रेलिया का स्कोर 11.4 ओवरों में 115 रन था। और उनकी ये पारी मैच का निर्णायक पारी थी जिसने मैच का लगभग निर्णय कर दिया था। इस शानदार पारी को देखने उस समय स्टेडियम में उनके क्रिकेटर पति मिचेल स्टार्क भी थे। खेल की दुनिया का ये बहुत ही खूबसूरत जेस्चर था कि वे दक्षिण अफ्रीका का दौरा बीच मे ही छोड़कर अपनी पत्नी के मैच को देखने वापस स्वदेश आ गए थे। अपनी पत्नी की उस डीफाईनिंग इनिंग को देखकर उन्हें 5 साल पहले इसी मैदान पर 2015 के  न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध विश्वकप फाइनल में अपना प्रदर्शन याद आ रहा होगा जब उन्होंने  पहले ही ओवर में एक शानदार यॉर्कर पर ब्रेंडन मैक्कुलम को आउट करके ऑस्ट्रेलिया को जीत की राह पर अग्रसर कर दिया था। उस मैच में मिचेल ने 8 ओवर में 20 रन देकर 2 विकेट लिए थे। दूसरी ओर बेथ मूनी ने नॉट आउट 79 रन की सहायता से ऑस्ट्रेलिया की टीम 4 विकेट पर 184 रन रन बनाने में सफल हुई। ये तो भला हो दीप्ति शर्मा का जिसने इनिंग के 17वें ओवर में 3 रन देकर दो विकेट निकाले। वरना स्कोर और भी अधिक होता। 
निसंदेह ये एक विनिंग स्कोर था। फिर भी शैफाली की फॉर्म और हरमनप्रीत, स्मृति और जेमिमा रोड्रिग्ज जैसे खिलाड़ियों के चलते एक संघर्ष की उम्मीद सभी कर रहे थे। लेकिन जब इनिंग के पहले ओवर की तीसरी ही गेंद पर शैफाली ने विकेट के पीछे हीली को कैच थमा दिया तो भारत की उम्मीदों पर पानी फिर गया।अगले ही ओवर में जेमिमा भी चलती बनी। चौथे ओवर में स्मृति और छठवें ओवर में हरमनप्रीत भी आउट हो गईं।उस समय स्कोर था 5.4 ओवरों में 4 विकेट पर 30 रन। अब कोई उम्मीद बाकी नहीं रही थी। अंततः पूरी टीम 99 रनों पर ढेर हो गई। भारत 85 रनों से मैच हार गया।ये एक शानदार शुरुआत की निराशाजनक अंत था।
निसंदेह खेल में हार जीत चलती रहती है। पर किसी ने भी ऐसी हार की कल्पना नहीं ही की होगी। खुद खिलाड़ियों ने भी। और ऐसी हार आपको ही नहीं बल्कि खुद खिलाड़ियों को भी उदास करती है। कुछ इस उदासी को छिपा ले जाते हैं पर कुछ नहीं भी। शैफाली ऐसी ही खिलाड़ी थी। उनकी आंखों से आँसू बह निकले। दरअसल ये आँसू बता रहे थे कि शैफाली और उनकी साथी खिलाड़ियों के सघन सपनों में अभी भी सीलन बाकी है जिसे उन्हें आने वाले दिनों में अपनी मेहनत और संघर्ष की आंच से तपाना है।
लेकिन एक बात तय है कि इस बार टीम भले ही हार गई हो पर पूरी प्रतियोगिता में भारतीय बालाओं का प्रदर्शन उम्मीद जगाता है कि आने वाला समय इनका ही है। ये इसलिए कि इन खिलाड़ियों में ज़ज़्बा है ,जुनून है,उनकी आंखों में सपने हैं और उन सपनों को पूरा करने की ललक है। आप इन खिलाड़ियों की मेहनत और संघर्ष के किस्से पढ़िए और उनके बारे में जानिए तो समझ आएगा। रोहतक की शैफाली अभी 16 साल की हैं। जब 10 साल की थीं तो चोट लगने के डर से उन्हें लड़कों के साथ टूर्नामेंट में खेलने की अनुमति नहीं मिली तो उन्होंने अपने बाल लड़कों जैसे करा लिए और अपनी पहचान छिपाकर उसमें खेलने में सफल रहीं। ऋचा घोष भी अभी 16 साल की हैं।वे सिलीगुड़ी से हैं। 2016 में उनके पिता अपनी बेटी के क्रिकेट करियर के लिए अपने व्यवसाय को अस्थायी तौर पर बंद करके कोलकाता आ गए। आगरा पूनम यादव अब सीनियर खिलाड़ी हैं। उनके पिता नहीं चाहते थे कि वे क्रिकेट खेलें। पर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। खेल जारी रखा। खेल से रेलवे में नौकरी मिली और अपनी पहली सैलरी से पिता की डेयरी की छत डलवाई।पिता को गलती का अहसास हुआ। राधा यादव 20 साल की हैं। उनके पिता जौनपुर से आकर कांदिवली मुम्बई से सब्जी का ठेला लगाते हैं। दरअसल भारतीय महिला क्रिकेट टीम छोटे छोटे शहरों की छोटी छोटी लड़कियों के बड़े बड़े सपनों की ऐसी ही छोटी छोटी अंतर्कथाओं से बुनी एक बड़ी कहानी है। एक ऐसी कहानी जो पुरुष क्रिकेट की तरह ही बड़े बड़े मेट्रोपोलिटन शहरों से निकल कर छोटे छोटे शहरों की गली मोहल्लों तक पहुंच गया है। क्रिकेट भी अब निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों की लड़कियों की आंख का सपना बन गया है।
               लेकिन दुःख की बात ये है कि भारत में महिला क्रिकेट की वो स्थिति अब भी नहीं बन पाई है जो पुरुष क्रिकेट की है। पहला महिला टेस्ट मैच 1934 में खेला गया था ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच। पर भारत में महिला क्रिकेट की नींव पड़ी 1973 में जब वूमेंस क्रिकेट असोसिऐशन ऑफ़ इंडिया का गठन हुआ और 1976 में भारतीय महिलाओं ने पहला टेस्ट मैच खेला वेस्ट इंडीज़ के विरुद्ध। तमाम दबावों के बाद 2006 में वूमेंस एसोसिएशन का बीसीसीआई में विलय हो गया। इस उम्मीद के साथ कि महिला क्रिकेट की दशा सुधरेगी। ऐसा हुआ नहीं। बीसीसीआई ने भी इस और कोई ध्यान नहीं दिया। ना उन्हें पैसा मिला,ना मैच मिले,ना बड़ी प्रतियोगिताएं मिली और ना आईपीएल जैसा कोई प्लेटफार्म। इसके विपरीत आस्ट्रेलिया  ने महिलाओं के लिए एक सफल बिग बैश लीग स्थापित की है और उसके 5 सफल सीजन सम्पन्न हो चुके हैं। ऑस्ट्रेलिया की विश्व कप विजेता महिला टीम को पुरुषों के बराबर इनामी राशि मिलेगी। लेकिन बीसीसीआई दोनों में बड़ा भेद रखती है। जहां  पुरुषों में टॉप कॉन्ट्रैक्ट वाले खिलाड़ी को 7 करोड़ के मुक़ाबले लड़कियों को केवल 50 लाख मिलते है। यानी 14 गुना फ़र्क़। तर्क ये कि जो कमाई होती है वो पुरुषों के क्रिकेट से होती है। यानी बीसीसीआई को सिर्फ कमाए की चिंता है ना कि महिला क्रिकेट को बढ़ावा देने की।शायद यही कारण है अभी भी घरेलु क्रिकेट का भी कोई समुचित ढांचा विकसित हो पाया।
लेकिन इस सब के बावजूद अगर लडकियां विश्व पटल पर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराती हैं और एक ताकत बन कर उभर रहीं हैं तो ये उनकी खुद की मेहनत है,लगन है। ये उनके भीतर की बैचनी और छटपटाहट है अपने को सिद्ध करने की,साबित करने की। कोई गल नी जी। इस हार से ही जीत का रास्ता बनेगा कि 'गिरते हैं शह सवार मैदाने जंग में..। कम ऑन सुपर वीमेन इन ब्लूज।

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