Sunday, 22 September 2019

पंघल के पंच



रूस के एकातेरिनबर्ग में विश्व बॉक्सिंग चैंपियनशिप में 52 किलोग्राम वर्ग में अमित पंघल ने अपना पहला ही मुकाबला जीता था कि उन्होंने  प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को जन्मदिन की बधाई देते हुए ट्वीट किया कि वो पदक जीत कर उनके(प्रधानमंत्री) हाथों से केक खाएंगे। उनका ये विश्वास दरअसल उनकी कड़ी मेहनत और 2017 से अब तक उनको मिली अभूतपूर्व सफलता से उपजा था। उस विश्वास को उन्होंने टूटने नहीं दिया और इस विश्व प्रतियोगिता में रजत पदक प्राप्त किया। वे विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता के फाइनल में पहुंचने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज बने। 

और जब वे फाइनल में ओलंपिक चैंपियन उज्बेकिस्तान के शाखोबिदिन जोइरोव से हारे तो वे लड़कर हारे और कड़े संघर्ष के बाद हारे। हारने के  बाद वे एक बार फिर दुनिया से कह रहे थे'मेरे पंच थोड़े से कमज़ोर रहे। मैं अपनी कमजोरी जनता हूँ और उन पर काम करूंगा। जब जोइरोव से अगली बार मुकाबला होगा तो मैं जोइरोव को  हराऊंगा।' जब वे ऐसा कह रहे थे तो निश्चित रूप से ये उनका बड़बोलापन नहीं था बल्कि ये भी उसी उनकी योग्यता,अनथक परिश्रम और हालिया सफलताओं से उपजा आत्मविश्वास था जिसके बल पर वे सफलता के इस मुकाम पर अब तक पहुंचे हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि वे अपनी जीत से अपनी कमियों को विस्मृत नहीं करते और अपनी हार से मायूस या हतोत्साहित नहीं होते बल्कि उसके उलट उससे सबक लेते हैं और अपनी सफलता की सीढ़ी बना लेते हैं। 

23 साल का ये युवा सैनिक इस हद तक अभ्यास करता है कि कोच को 'बस भी कर' बोलना पड़ता है। उनका ये जूनून निश्चित ही एक सुनहरे भविष्य की आश्वस्ति देता है। 
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यानि केवल लुहार और सुनार के प्रहारों से ही तमगे नहीं बनते हैं बल्कि पंघल जैसे मुक्केबाजों के दमदार मुक्कों से भी ये तमगे आकार लेते हैं।
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अमित पंघल को बहुत शुभकामनाएं।

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