प्रतीक्षा का रंग
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सुनो जोगन
तुम विराग में भी ढूंढ रही हो राग
और खड़ी हो चिर प्रतीक्षा में
कि विराग से कभी तो छलकेगा राग रस
और उस पार जोगी देख रहा है
उजले स्याह होते
तुम्हारी प्रतीक्षा के रंग
पढ़ रहा है उसका इतिहास
जो अनंत काल तक जाता है पीछे
जब पहली बार आदम और हव्वा के मन में जागी थी आदिम इच्छा
देख रहा है उसका लगातार विस्तार पाता भूगोल
क्षितिज पार फ़ैल रही है जिसकी सीमाएं
माप रहा है आकार
जो फ़ैल रहा है अंतरिक्ष में
तुम्हें शायद पता नहीं
प्रतीक्षाएँ चाहे जैसी हो
स्याह होता जाता है उनका रंग
पुराना होता जाता है इतिहास
सीमाओं पार फ़ैलता जाता है भूगोल
अनंत दूरियों को नापता हुआ
जहां से लौट कर वापस नहीं आतीं अनुगूँजे भी
प्रतीक्षा अक्सर दुःख की भाषा गढ़ती है
और तुम चुन रही हो वही
जो तुम्हें नहीं ही चुनना था।
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