--------------
वे तुम्हारी बेवजह की बतकही
दिल के आँगन में जो पडी थी
बेतरतीब सी
इस तनहा समय में उग आयी हैं
बेला चमेली के पेड़ों की तरह
जिनसे यादें झर रही हैं
फूलों सी
कि तुम्हारी बेवजह बेसाख्ता फूट पड़ती खिलखिलाहट
अब कानों में गूंजती है
बिस्मिल्लाह की शहनाई पर बजाई किसी धुन की तरह
कि तुम्हारी यूँ ही निकली आहें
घुल रही हैं मेरी साँसों में
अमृत सी
कि तुम्हारा यूं ही बेसबब कनखियों से देखना
चिपका है पीठ पर
जैसे किसी ने हल्दी लगे हाथो से
छाप दिए हों अपनी हथेलियों के निशां
किसी सगुन से
और टांक दी हो अपनी किस्मत की रेखाएं मेरे साथ
कि बेवजह होना भी
बेवजह नहीं होता
जैसे साँसों का आना जाना
नहीं होता बेवजह।
-------------------------------------------------
ज़िन्दगी में आने वाली हर चीज़ इतनी अर्थपूर्ण क्यूँ होती है।
No comments:
Post a Comment