Saturday, 26 November 2016

तोत्तो चान




           ये सप्ताहांत एक प्यारी सी चुलबुली बच्ची तोत्तो चान के साथ बीता।सप्ताहांत ख़त्म होते होते उसका साथ भी खत्म हो गया।अरसा हो गया पर उसका साया लिपटा सा है अभी भी।अजीब सा हैंगओवर है।दरअसल तोत्तो चान तेत्सुको कुरोयानागी की एक छोटी सी पुस्तक है।140 पृष्ठों की।मूल रूप से जापानी भाषा में लिखी पुस्तक का बहुत ही अच्छा हिंदी अनुवाद किया है पूर्वा याज्ञीक कुशवाहा ने किया है।हमारी पूरी शिक्षा प्रणाली और विशेष रूप से प्राथमिक के सन्दर्भ में बहुत ही प्रासंगिक पुस्तक है ये।हमारी शिक्षा प्रणाली ही ऐसी है जिसमें हम बच्चे की नैसर्गिक प्रतिभा का मार कर बहुत ही टाइप्ड किस्म का इंसान बनाते हैं।हमारी शिक्षा डॉक्टर, इंजीनियर,अफसर,बाबू तो पैदा करती है पर इंसान नहीं।निसंदेह अगर हमें अपने बच्चों को बेहतर इंसान बनाना है तो हेडमास्टर कोबायाशी के स्कूल तोमोए गाकुएन की तरह के इनोवेटिव तरीके ढूंढने ही होंगे।प्राथमिक शिक्षा से जुड़े नीति नियंताओं,अफसरों,शिक्षकों और निसंदेह अभिवावकों को भी ये किताब कम से कम एक बार ज़रूर पढ़नी चाहिए और कोबायाशी का कथन कि 'उनकी महत्वाकांक्षाओं को कुचलों नहीं,उनके सपने तुम्हारे सपनों से कहीं विशाल हैं' को ब्रह्म वाक्य की तरह अपने ज़ेहन में बनाए रखना चाहिए।

No comments:

Post a Comment

अकारज 23

वे दो एकदम जुदा।  ए क गति में रमता,दूजा स्थिरता में बसता। एक को आसमान भाता,दूजे को धरती सुहाती। एक भविष्य के कल्पना लोक में सपने देखता,दूजा...