ज़िन्दगी
सर्दियों के किसी इतवार की अलसुबह सी
अलसाई अलसाई
बिस्तर में ही गुज़र बसर हो जाती है
ना आगे खुद बढती है
ना बढ़ाने की इच्छा होती है।
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ये खेल सत्र मानो कुछ खिलाड़ियों की दीर्घावधि से लंबित पड़ी अधूरी इच्छाओं के पूर्ण होने का सत्र है। कुछ सपने देर से पूरे होते हैं,पर होते ...
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