ज़िन्दगी
सर्दियों के किसी इतवार की अलसुबह सी
अलसाई अलसाई
बिस्तर में ही गुज़र बसर हो जाती है
ना आगे खुद बढती है
ना बढ़ाने की इच्छा होती है।
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वे दो एकदम जुदा। ए क गति में रमता,दूजा स्थिरता में बसता। एक को आसमान भाता,दूजे को धरती सुहाती। एक भविष्य के कल्पना लोक में सपने देखता,दूजा...
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