Saturday, 1 October 2016

तीन त्रयी

             


                        दो चीजों का बचपन में जबरदस्त शौक था क्रिकेट देखने और फ़िल्मी गीत सुनने का।सिनेमा देखने का भी शौक था पर उस शिद्दत से पूरा नहीं हो पाता था जैसे ये दोनों शौक। बचपन से तरुणाई के संक्रमण काल में जब क्रिकेट का जादू सर चढ़ के बोल रहा था उस समय भारतीय फिरकी गेंदबाजों का पूरे क्रिकेट जगत में दबदबा था। उस समय इरापल्ली प्रसन्ना,बिशन सिंह बेदी और चंद्रशेखर की त्रयी अपनी अपने पूरे शबाब पर थी और फिरकी गेंदबाजी की कला अपने सुनहरे दौर में बल्कि कहें अपने चरमोत्कर्ष पर थी। यही वो समय था क्रिकेट की इस त्रयी की तरह हिंदी फिल्म संगीत में तीन गायकों की त्रयी छाई हुई थी-मुकेश,मोहम्मद रफ़ी और किशोर कुमार की। ये हिंदी फिल्म संगीत का भी सुनहरा दौर था।ये वो समय था जब क्रिकेट लगातार पॉपुलर हो रहा था और एक इलीट खेल जनसाधारण के खेल में रूपांतरित हो रहा था।इसके ठीक विपरीत उसी समय हिंदी सिनेमा में एक नए तरह के सिनेमा का उदय हो रहा था न्यू वेव सिनेमा के नाम से। यहाँ लोकप्रिय सिनेमा से विशिष्ट सिनेमा का उदय हो रहा था। सिनेमा में नए प्रयोग हो रहे थे। जहाँ क्रिकेट अपना एलीट चरित्र बदल कर जनसाधारण के खेल में तब्दील  हो रहा था वहीं लोकप्रिय हिंदी सिनेमा से एक एलीट सिनेमा उभार पर था और इस सिनेमा की तीन बेहद संजीदा अभिनेत्रियों की त्रयी इस सिनेमा को नयी ऊचाईयां प्रदान कर रही थीं। ये त्रयी थी शबाना आज़मी,दीप्ती नवल और स्मिता पाटिल की।ये तीन त्रयी एक दूसरे के समानान्तर भी चलती हैं और एक दूसरे का अतिक्रमण कर  नए कॉम्बिनेशन भी बनाती चलती हैं।

                              सबसे पहले प्रसन्ना को देखिए। सीधे सरल से, हंसमुख। वैसी ही सरल सी गेंदबाजी। हल्का सा तिरछा छोटा सा रनअप,आसान सा बॉलिंग एक्शन,धीमी गति से ऊंची उड़ान वाली ऑफ ब्रेक गेंदबाजी,वे सिर्फ गेंद की ऊंचाई और लंबाई से बल्लेबाज़ को भरमाते,शॉट खेलने के लिए निमंत्रण देते और उन्हें गलती करने के लिए मज़बूर करते। प्रसन्ना के साथ मुकेश को देखिए। प्रसन्ना जैसे ही सीधे सरल से मुकेश भी। वैसी ही सरल सी उनकी गायकी। हल्की सी दर्द भरी मीठी सी आवाज़। शास्त्रीयता के आतंक से मुक्त उनके नग़में भावनाओं के उठान से दिल को छूते हैं और मन के आकाश पर फ़ैल जाते हैं।अब इनके साथ दीप्ती नवल को रखिए। उनके जैसा ही सहज सरल सौम्य मासूम सा चेहरा।  वैसी ही सहज अदाकारी। कोई साथ वाले घर की साधारण लड़की सी।ये तीनों मिलकर एक ऐसी त्रयी की निर्मिति करते हैं जिसकी प्रतिभा अपने सरलतम रूप में शिखर तक उठान पाती है।   

                                   बिशन सिंह बेदी-अपेक्षाकृत एक गंभीर व्यक्तित्व।बाएं हाथ के ऑर्थोडॉक्स लेग स्पिनर। किताबी नियमों जैसी एकदम नपी तुली सधी गेंदबाजी।ओवर दर ओवर एक ही जगह गेंद फेंक सकते थे और बल्लेबाज़ केवल उसको रोक भर सकता था बिना कोई रन बनाए। क्लासिक लेग स्पिन के श्रेष्ठ उदाहरण थे बेदी। यहाँ बेदी के साथ रफ़ी को खड़ा कीजिए। रफ़ी-सहज लेकिन धीर गंभीर। वैसा ही उनका गायन अपेक्षाकृत अधिक गंभीर,कुछ शास्त्रीयता का पुट लिए हुए। यहाँ स्मिता पाटिल उनके साथ आकर स्वतः खड़ी हो जाती हैं। वे बहुत ही गंभीर अभिनेत्री थीं। कला फिल्मों में ही नहीं कमर्शियल फिल्मों में भी बेहतरीन अभिनय किया। अपने अभिनय से उन्होंने अदाकारी को बुलंदियों तक पहुंचाया।ये तीनों एक साथ आकर एक ऐसी त्रयी का निर्माण करते हैं जहाँ प्रतिभा अपने शास्त्रीय रूप में प्रस्फुटित होती है और उठान पाती है। 

                                  किशोर कुमार ने संगीत की विधिवत शिक्षा नहीं ली थी। लेकिन उनमें प्रतिभा कूट कूट कर भरी थी। वे मनमौजी और स्वच्छन्द तबियत के मालिक थे। उनके गीतों में भी वैसा ही उल्लास उत्सव मनमौजीपन झलकता है। वे बहुत अच्छा गाते तो बहुत खराब भी गा सकते थे।यहाँ चंद्रशेखर किशोर से टक्कर लेते हैं। वे भी प्रतिभा के धनी थे। जब उनका दिन होता तो वे अपने बूते मैच जिता देते। इतनी घातक गेंदबाज़ी करते कि उन्हें खेलना विश्व के किसी बल्लेबाज़ के लिए लगभग नामुमकिन होता। अगली ही इनिंग में वे बहुत ही खराब गेंदबाज़ी कर सकते थे। इन दोनों के साथ त्रयी बनाती हैं शबाना। उन जैसी ही अनिश्चितता लेकिन अपार संभावनाओं से भरी। प्रतिभा की उनमें भी कोई कमी नहीं। तमाम कला फिल्मों में शानदार अदाकारी की लेकिन कई कमर्शियल फिल्मों में हद दर्ज़े के ख़राब अदाकारी भी की।ये ये एक ऐसी त्रयी थी जिसमें अपार संभावनाओं वाले रॉ टेलेंट में विस्फोट होता तो सर्वश्रेष्ठ निकल कर आता वरना बहुत साधारण सा घटित होता।दरअसल बचपन से किशोरावस्था की दहलीज़ की और बढ़ाते हुए अन्य चीज़ों के साथ ये त्रयी भी आकर्षण के केंद्र में थीं और ये भी कि ये चीज़ों को देखने का एक नज़रिया भर है और कुछ नहीं।      









             

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