Thursday, 2 July 2015

शीर्षक



सबसे पहले आते हैं अक्षर 
अक्षर गढ़ते हैं शब्द 
शब्द से बनते है वाक्य 
वाक्य बनाते हैं पृष्ठ 
पृष्ठों से बनते हैं अध्याय 
अध्याय मिलकर लेते हैं आकार पुस्तक का 
अचानक आता है एक शीर्षक 
किसी सामंत की तरह 
मिट जाती है सबकी पहचान 
सब जाने जाते हैं उस शीर्षक से। 


1 comment:

अकारज_22

उ से विरल होते गरम दिन रुचते। मैं सघन होती सर्द रातों में रमता। उसे चटकती धूप सुहाती। मुझे मद्धिम रोशनी। लेकिन इन तमाम असंगतियां के बीच एक स...