सबसे पहले आते हैं अक्षर
अक्षर गढ़ते हैं शब्द
शब्द से बनते है वाक्य
वाक्य बनाते हैं पृष्ठ
पृष्ठों से बनते हैं अध्याय
अध्याय मिलकर लेते हैं आकार पुस्तक का
अचानक आता है एक शीर्षक
किसी सामंत की तरह
मिट जाती है सबकी पहचान
सब जाने जाते हैं उस शीर्षक से।
उ से विरल होते गरम दिन रुचते। मैं सघन होती सर्द रातों में रमता। उसे चटकती धूप सुहाती। मुझे मद्धिम रोशनी। लेकिन इन तमाम असंगतियां के बीच एक स...
Its awesome
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