हवा बदल गई है
अब हवाएँ ज़हरीली हो गई हैं
धुआं हवाओं को धमकाता है
फ़िज़ाओं में ज़हर मत घोलों
हवाएँ स्तब्ध हैं
निस्पंद हैं
जिससे एक निर्वात पैदा हो गया है
और उसमें सब ऊपर नीचे हो रहे हैं
बिना पेंदी के।
उ से विरल होते गरम दिन रुचते। मैं सघन होती सर्द रातों में रमता। उसे चटकती धूप सुहाती। मुझे मद्धिम रोशनी। लेकिन इन तमाम असंगतियां के बीच एक स...
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