ज़्यादातर लोग किसी शहर में रहते भर हैं। लेकिन कुछ लोग उस शहर में जीते हैं,उस शहर को जीते हैं। वो शहर उनमें और वे शहर में घुल जाते हैं। शहर उनकी आत्मा में उतर जाता है और वे शहर की आत्मा में। शहर उनकी शिराओं में खून की माफ़िक बहने लगता है। फिर किसी एक दिन वो शहर कलम की मार्फत शब्द शब्द सफ़े दर सफ़े उतरता जाता है और शहर एक खूबसूरत किताब में तब्दील हो जाता है।
ऐसी ही एक किताब को हम नाम 'आग और पानी'के नाम से जानते हैं। शहर है बनारस। और उसका रहवासी व्योमेश शुक्ल एक दूसरे में घुले हुए। व्योमेश बनारस को जीते हैं और बनारस उनमें। वही बनारस जब उनके दिल से होता हुआ उनकी कलम से शब्द दर शब्द बाहर आता तो 'आग और पानी' में तब्दील ना हो जाता तो और क्या हो जाता।
व्योमेश से कभी मिला नहीं। फेसबुक पर उन्हें फॉलो करता हूँ। उसी से जाना वे आला दर्ज़े के रंगकर्मी हैं। वे मंच पर खूबसूरत और भव्य दृश्य बनाने में सिद्धहस्त हैं। वे अपनी लेखनी से भी बनारस शहर के ऐसे ही खूबसूरत दृश्य बनाते।
किताब की सबसे सुंदर बात ये है कि इसमें कुछ लंबे आलेख हैं,साक्षात्कार है,ससंस्मरण हैं, चरित्र चित्रण हैं और स्निपेट्स भी हैं। ये विविधता रुचती है,मन मोहती है। इसमें संगीत अंतर्धारा के रूप में बहता है,कंटेंट में भी और भाषा में भी। संगीत और संगीतकारों पर कितना कुछ है और कितना समृद्ध करता चलता है आपको। और हो भी क्यों ना। वे राम की शक्तिपूजा जैसे कालजयी रचना की देशभर में लाजवाब संगीतमयी प्रस्तुति देते हैं। संगीत के निःसंदेह जानकार हैं और इसीलिए उनके गद्य में लय है, वो किसी संगीत सा बहता है।
'आग और पानी' दरअसल बनारस के सांस्कृतिक इतिहास का दस्तावेज है।
जब आपको कुछ अच्छा मिलता है तो और ज़्यादा की आस होने लगती है। बनारस केवल धार्मिक सांस्कृतिक नगरी भर नहीं है। इसलिए कुछ मिसिंग लगता है। बनारस और भी बहुत कुछ है। पूर्वी उत्तर प्रदेश और सीमांत बिहार की आर्थिक राजधानी है ये। घाट हैं, पंडे हैं। नाव हैं, नाविक हैं। जुलाहे हैं,बनारसी साड़ियां हैं। विश्वनाथ मंदिर है,ज्ञानवापी मस्जिद है। बुद्ध हैं,सारनाथ है। और भी बहुत कुछ है बनारस। व्योमेश की नज़र और उनकी कलम से देखना निश्चित ही रोचक होगा।
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और अंत में एक बात रुख़ प्रकाशन की। अब तक दो किताबें पढ़ी हैं। एक 'आग और पानी'। दूसरी सुशोभित की 'मिडफील्ड'। दोनों बेहतरीन किताबें हैं। कंटेंट से भी और रूप सज्जा से भी। किताबों पर खासी मेहनत की गई है। आवरण से लेकर प्रिंटिंग तक। सबसे बड़ी बात प्रूफ की गलती सिरे से नदारद है जो आज के समय की बड़ी बहुत बड़ी बात है। पढ़ने का आनंद द्विगुणित हो जाता है। निःसंदेह बेहतरीन पुस्तकों के लिए अनुराग वत्स भी बधाई के पात्र हैं।
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